ऐनी आपा के नाम से मशहूर क़ुर्तुल ऐन हैदर उर्दू साहित्य की मशहूर कथाकार थीं। क़ुर्तुल ऐन हैदर का जन्म 1927 में उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ़ में उर्दू के जाने-माने लेखक सज्जाद हैदर यलदरम के यहाँ हुआ था। उनकी मां बिन्ते-बाक़र भी उर्दू की लेखक रही हैं। आज उनकी पुण्यतिथि है।
हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार कमलेश्वर ने कहा था, ‘अमृता प्रीतम, इस्मत चुगताई और क़ुर्तुल ऐन हैदर जैसी विद्रोहिणियों ने हिंदुस्तानी अदब को पूरी दुनिया में एक अलग स्थान दिलाया। जो जिया, जो भोगा या जो देखा, उसे लिखना शायद बहुत मुश्किल नहीं, पर जो लिखा वह झकझोर कर रख दे, तो तय है कि इसमें कुछ खास बात होगी।’
आइये जानते हैं क़ुर्तुल ऐन हैदर से जुड़ी बातें…
– 1945 में जब वह 17-18 वर्ष की थीं तो उनकी कहानी का संकलन ‘शीशे का घर’ सामने आया। उनका पहला उपन्यास ‘मेरे भी सनमख़ाने’ भी 19 साल में प्रकाशित हुआ।
– हैदर ने शुरूआती तालीम लखनऊ में हासिल की। अलीगढ से इंटर और फिर लख़नऊ से ही बीए और एमए किया। बाद में उन्होंने लंदन के हीदरलेस आर्ट्स स्कूल से भी पढाई की।
– भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद वे पाकिस्तान चली गईं, लेकिन जल्द ही वे 1960 में भारत लौट आईं और यहीं बस गईं।
– उनका उपन्यास ‘आग का दरिया’ आजादी के उपर लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना जाता है।
– निदा फाजली ने ‘आग का दरिया’ के बारे में कहा है कि जिन्ना ने हिन्दुस्तान के 4500 सालों के इतिहास में से मुसलमानों के 1200 सालों की तारीख को अलग करके पाकिस्तान बनाया था। हैदर ने इसे लिख कर उन अलग किए गए 1200 सालों को हिंदुस्तान में जोड़ कर उसे फिर से एक कर दिया।
– उनके महत्वपूर्ण उपन्यासों में सफ़ीन-ए-ग़मे दिल, आख़िरे-शब के हमसफर, गर्दिशे-रंगे-चमन, चांदनी बेगम है। वहीं, उनकी महत्वपूर्ण कहानियों के संकलन में सितारों से आगे, शीशे का घर, पतझड़ की आवाज, रोशनी की रफ्तार शामिल है।
– उन्होंने कुछ जीवनी उपन्यास भी लिखे, जिनमें ‘सीता हरन’, ‘चाय के बाग’ और ‘अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो’ प्रसिद्ध है।
– विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर वो जामिया मिलिया इस्लामिया (दिल्ली) व अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और अतिथि प्रोफेसर के रूप में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से भी जुड़ी रहीं।
– उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, पद्मभूषण, पद्मश्री और इकबाल सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।
– 21 अगस्त 2007 को उनकी मृत्यु हो गई मगर उनकी कलम के जादू का असर अभी तक बरकरार है।