Shravan Putrada Ekadashi Vrat 2019: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष श्रावण पुत्रदा एकादशी 11 अगस्त दिन रविवार को मनाई जा रही है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है, जिसके फल स्वरूप पुत्र की प्राप्ति होती है। इस व्रत में कुछ लोग भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा करते हैं। पुत्रदा एकादशी देश भर में मनाई जाती है। उत्तर भारत में पौष शुक्ल पक्ष एकादशी को विशेष रूप से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कब है श्रावण पुत्रदा एकादशी
हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी (Sharavana Putrada Ekadashi) कहते हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह एकादशी हर साल सावन के दौरान अगस्त महीने में आती है। इस बार पुत्रदा एकादशी 11 अगस्त को है।
श्रावण पुत्रदा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
इस बार श्रावण पुत्रदा एकादशी का प्रारंभ 10 अगस्त 2019 को दोपहर बाद 3 बजकर 39 मिनट से होगी। जो अगले दिन 11 अगस्त 2019 को शाम 4 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। उसके बाद श्रावण पुत्रदा एकादशी का समापन हो जाएगा। वहीं पारण का टाइम 12 अगस्त 2019 को सुबह 6 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 38 मिनट तक रहेगा।
श्रावण पुत्रदा एकादशी का महत्व
श्रावण पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। साथ ही इस व्रत के प्रभाव से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि नि:सतान दंपति अगर पूरे तन, मन और जतन से इस व्रत को करें तो उन्हें संतान सुख अवश्य मिलता है।
श्रावण पुत्रदा एकादशी की व्रत विधि
जो लोग श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें तड़के उठकर भगवान विष्णु का पूरे मनोयोग से स्मरण करना चाहिए। उससे बाद स्नान आदि कर साफ और सुथरे वस्त्र धारण करें। घर में मौजूद भगवान विष्ण की मूर्ति के आगे दीप प्रज्वलित करें। इसके अलावा भगवान विष्णु की फोटो और मूर्ति को स्नान कराकर वस्त्र पहनाएं। विष्णु भगवान को फलों का भोग लगाएं। पूजा करते वक्त तुलसी, मौसमी फल और तिल का प्रयोग करें। पूरे दिन निराहार रहें और शाम के समय श्रावण पुत्रदा की कथा सुनने के बाद सिर्फ फलाहार करें। अगले दिन बारह ब्राहम्णों को खाना खिलाएं तथा उसके आप भी भोजन ग्रहण करें।
श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
श्री पद्मपुराण के अनुसार द्वापर युग में महिष्मतीपुरी का राजा महीजित बड़ा ही शांतिप्रिय और धर्म प्रिय था, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। राजा के शुभचिंतकों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई तो उन्होंने बताया कि राजन पूर्व जन्म में एक अत्याचारी, धनहीन वैश्य थे।
इसी एकादशी के दिन दोपहर के समय वे प्यास से व्याकुल होकर एक जलाशय पर पहुंचे, तो वहां गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया और स्वयं पानी पीने लगे। राजा का ऐसा करना धर्म के अनुरूप नहीं था। अपने पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप वे अगले जन्म में राजा तो बने, लेकिन उस एक पाप के कारण संतान विहीन हैं।
महामुनि ने बताया कि राजा के सभी शुभचिंतक अगर श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, तो निश्चय ही उन्हें संतान रत्न की प्राप्ति होगी। इस प्रकार मुनि के निर्देशानुसार प्रजा के साथ-साथ जब राजा ने भी यह व्रत रखा, तो कुछ समय बाद रानी ने एक तेजस्वी संतान को जन्म दिया। तभी से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाने लगा।