संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष ने कोरोना बाद की दुनिया के लिए वैश्विक सहयोग का आह्वान किया (आईएएनएस साक्षात्कार)

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संयुक्त राष्ट्र, 1 जून (आईएएनएस)। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष तिजानी मुहम्मद-बंदे ने कहा है कि ऐसे समय में जब सभी देश कोरोनावायरस महामारी से जूझ रहे हैं, दुनिया के नेताओं को गरीबी दूर करने और सहयोग बढ़ाने की योजना हर हाल में बनानी चाहिए।

तिजानी मुहम्मद-बंदे ने आईएएनएस के साथ एक विशेष बातचीत में कहा, यदि इंसानों के बीच अंतरसंबंधों की कोई जरूरत या मांग थी, तो इस महामारी ने हमारे लिए इसे बहुत स्पष्ट कर दिया है। वैसे मनुष्य परिस्थितियों की परवाह नहीं करता है।


उन्होंने किसी भी देश का नाम लिए बिना कहा कि सभी देशों को एक-दूसरे पर निर्भर रहने की सीख मिल गई है और ऐसे भी कुछ देश हैं, जो दूसरों की तुलना में सबक सीखने में सुस्त हैं।

उन्होंने विकासशील देशों के बीच दक्षिण-दक्षिण सहयोग के महत्व की बात की, जो वैश्विक समस्याओं से निपटने के लिए राष्ट्रों के साथ मिलकर काम करने के लिए एक मॉडल हो सकता है।

मुहम्मद-बंदे (62) एक नाइजीरियाई राजनयिक एवं शिक्षक हैं और संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा 193 सदस्यों की वास्तविक प्रतिनिधि निकाय है। वह ऐसे समय इसकी अध्यक्षता कर रहे हैं, जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे दर्दनाक संकट का सामना कर रही है।


चूंकि लॉकडाउन की वजह से संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय और न्यूयॉर्क में इन-पर्सन बैठकें संभव नहीं हो पा रही थीं, लिहाजा उन्हें महासभा (जनरल असेंबली) का कामकाज जारी रखने के लिए तत्काल नए तरीके इजाद करने पड़े। उनके नेतृत्व में महासभा ने मतदान और चुनाव कराने के नए तरीकों को अपनाया और संकट से निपटने के लिए अपने एजेंडे में भी बदलाव किया।

मुहम्मद-बंदे ने कहा, “सभी देशों ने महसूस किया कि विशेष रूप से कठिनाई के समय उन्हें एक संदेश भेजने के लिए एक साथ आना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र महत्वपूर्ण है।”

उन्होंने न्यूयॉर्क में वीडियो-टेलीकांफ्रेंसिंग के माध्यम से हुई इस खास बातचीत के दौरान कहा कि इस संकट ने वास्तव में हमें काम करने के तरीके के बारे में सोचने पर मजबूर किया है। उन्होंने कहा कि हम बहुत जरूरी मामलों पर विभिन्न देशों के साथ विचार साझा करते हैं, मगर अब हमने यह सीखा है कि हमें महामारी के संबंध में भी ऐसा करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जहां विकास के लिए वित्त पोषण की आवश्यकता है, जो गरीबी से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं दूसरों से सीखने के संदर्भ में (तकनीकी) मुद्दों सहित सहयोग की भी आवश्यकता है।

बंदे एक राजनयिक बनने से पहले नाइजीरिया में उस्मान डैनफोडियो विश्वविद्यालय के कुलपति और नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी एंड स्ट्रैटेजिक स्टडीज के महानिदेशक रह चुके हैं। शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े होने के नाते मुहम्मद-बंदे ने शिक्षा पर भी जोर दिया है। उनका कहना है कि सार्वभौमिक शिक्षा (यूनिवर्सल एजुकेशन) सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी असमानताओं पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, दुनिया भर में लाखों बच्चों की शिक्षा बाधित हुई है। कुछ देशों में शिक्षा की निरंतरता बनाए रखने के कुछ साधन उपलब्ध हैं, जबकि अन्य देशों में ऐसा नहीं है। यह अपने आप में दुनिया के लिए गंभीर महत्व का मुद्दा है।

उन्होंने विशेष रूप से विकासशील देशों द्वारा दुनिया के अन्य हिस्सों के नागरिकों के लिए दी जा रही छात्रवृत्ति के महत्व को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा, “यह मित्रता पैदा करता है और देशों के लिए अन्य देशों की स्थितियों को बेहतर तरीके से समझने को आसान बना देता है।”

उन्होंने कहा, “आपके देश जैसे देशों ने भी इस एजेंडे को न सिर्फ क्षेत्र के संबंध में, बल्कि पूरी दुनिया के संबंध में आगे बढ़ाने की देश की क्षमता को प्रदर्शित किया है। नाइजीरिया ने ऐसा किया है और अन्य देश भी इसे कर रहे हैं।”

उन्होंने कह, “मैं समझता हूं कि सभी देशों को जिम्मेदारी दिखानी चाहिए, जो मदद करने में सक्षम हैं, उन्हें लगातार एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।”

मुहम्मद-बंदे ने कहा कि विकासशील देशों के लिए यह जरूरी है कि वे अफ्रीकी संघ जैसे क्षेत्रीय संगठनों, और अन्य संगठनों जैसे राष्ट्रमंडल और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के साथ मिलकर काम करें।

उन्होंने कहा कि इन माध्यमों से दूसरों के अनुभव से सबक सीखना, और राष्ट्रों को अपने अनुभवों से मिले सबक को साझा करना बहुत जरूरी है।

–आईएएनएस

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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