सरकार के पास बड़े सुधारों को लागू करने का अवसर (आईएएनएस स्पेशल)

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भारत कोविड-19 महामारी से लड़ने में एक सराहनीय काम कर रहा है। वैश्विक क्षितिज पर जब इस महामारी ने अपने पैर पसारने आरंभ किए, तो भारत ने अन्य देशों से अलग इस महामारी को बहुत गंभीरता से लिया और हम यह भी कह सकते हैं कि इसके बढ़ते वेग से आगे रहने का प्रयास किया, फिर चाहे वह अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों की सबसे पहले स्क्रीनिंग हो, बीमार व्यक्तियों को क्वारंटाइन करने या राष्ट्रीय लॉकडाउन की घोषणा हो, केंद्र सरकार के फैसलों में कहीं भी कोई संकोच या लचीलापन नहीं मिलता है।

स्पष्ट रूप से सरकार की पहली प्राथमिकता लोगों को इस वायरस से बचाना है। हमारे देश में जब मामले बहुत कम थे, हमने तभी लॉकडाउन का फैसला कर लिया था। सरकार के इस फैसले ने जहां वायरस के प्रसार की गति को कम किया, वहीं हमारे तंत्र को आवश्यक स्वास्थ्य संरचना स्थापित करने का समय भी दिया। इसके पश्चात सरकार का सारा ध्यान लॉकडाउन के कारण लोगों को होने वाली कठिनाइयों की ओर स्थानांतरित हुआ, गरीबो को भोजन, माईग्रेन्ट लेबर को रहने की व्यवस्था आदि। और अब तेजी से चरणबद्ध रूप में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।


इस बात को स्वीकार करना होगा कि लॉकडाउन के कारण हमारी अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। इस महामारी की वजह से वैश्विक आर्थिक गति अचानक बहुत धीमी हो गई है। एक के बाद एक देश लॉकडाउन की घोषणा कर रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था, जो विकास की धीमी गति के दौर के बाद दुरस्त होने की राह पर थी, इस महामारी ने उसे अपने घुटनों पर ला दिया है।

कोविड -19 एक अप्रत्याशित और अनिश्चित घटना है। इसको देखते हुए सही समय पर उचित कार्रवाई, यह सुनिश्चित करेगी कि इस महामारी का असर हमारे ऊपर कम से कम हो। हमारा आगे का रोडमैप यह तय करेगा कि कोविड-19 से हमारी रिकवरी, आर्थिक भाषा में वी, यू या एल किस आकार में होगी। वैश्विक आर्थिक दर की गंभीरता के अनुरुप भारत सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करेगी। भारत की ताकत हमारी युवा जनसांख्यिकी, मजबूत लोकतंत्र और बड़ी बाजारू मांग है। पहले दो कारक तो इस संकट से अप्रभावित ही रहेंगे, लेकिन आर्थिक अनिश्चितता, नौकरियों की हानि और वित्तीय समस्याओं के कारण सकल बाजार की मांग कम हो जाएगी। इसलिए, कोविड -19 महामारी के काबू में आने के बाद सरकार मांग बाजार को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित करेगी।

एमएसएमई क्षेत्र, अन्य छोटे उद्यमों और एनबीएफसी का व्यवसाय इस महामारी के कारण प्रमुख रुप से बाधित हुआ है। सामाजिक सुरक्षा उपायों की अनुपस्थिति में निजी क्षेत्र को इस भार को वहन करने के लिए बाध्य करना कठिन है। एमएसएमई के लिए क्रेडिट की उपलब्धता में पहले से ही एक जोखिम की रुकावट मौजूद है। इसलिए क्रेडिट गारंटी योजनाओं को अधिक मजबूत बनाना होगा और सरकार को क्रेडिट के जोखिम के कुछ हिस्से को साझा करने पर विचार करना ही होगा। हालांकि, एमएसएमई क्षेत्र के लिए ऋण की उपलब्धता ही एकमात्र मुद्दा नहीं है, व्यापार की निरंतरता के लिए मजबूत बैलेंस शीट की आवश्यकता होती है, जिसकी एमएसएमई क्षेत्र में भारी कमी है।


वैश्वीकरण से वापसी की प्रवृत्ति, जो वैश्विक वित्तीय संकट 2008 के बाद शुरू हुई और 2016 के अमेरिकी चुनावों के बाद जिसमें और तेजी आई, उस प्रवृत्ति के और बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है। दुनिया अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को फिर नए सिरे से परिभाषित करेगी। सम्बन्धों में गैर-आर्थिक आयाम अधिक महत्वपूर्ण हो जाएंगे और सभी देश आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करेंगे। हालांकि, वैश्वीकरण का दौर पूरी तरह खत्म नहीं हो पाएगा, क्योंकि वर्तमान युग में कोई भी देश पूर्ण आत्मनिर्भर नहीं हो सकता है। भारत महत्वपूर्ण उत्पादों में आत्मनिर्भर होने का प्रयास चालू रखेगा, यह केवल आयात शुल्क बढ़ाने से नहीं होगा, क्योंकि वैश्विक प्रतिस्पर्धा भी घरेलू उत्पादक क्षमता को बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

कोविड -19 के प्रकोप के कारण चीन में लॉकडाउन की घोषणा बाकी देशों के लिए एक बड़ा झटका था। इसने एक देश पर निर्भरता के खतरों को उजागर किया है। कई बहुराष्ट्रीय निगम ‘रिस्क डाइवर्सिफिकेशन स्ट्रैटेजी’ पर काम करते हुए चीन से बाहर जाने का मन बना रहे हैं, लेकिन भारत को इस तरह के बदलाव का फायदा अपने आप नहीं मिलेगा। भारत के लिए बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों की बढ़ती हुई लोकप्रियता एक चुनौती है। इससे पार पाने के लिए सरकार को पुराने नियम-कानूनो में बदलाव करना होगा, जो कि निजी पहल की राह में रुकावट पैदा करते है।

भारत सरकार विनिर्माण क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए एक नई ‘राष्ट्रीय विनिर्माण नीति’ तैयार कर सकती है। अन्य देशों की तुलना में यहां व्यवसाय करने की लागत अधिक है। अनुपालन, रसद, बिजली, भूमि आदि की लागत बहुत अधिक है। यह सही समय है कि हम विशेष रूप से भूमि और श्रम क्षेत्रों में भी सुधार करें। संकट के इस दौर ने दिखाया है कि अर्थव्यवस्था को सुचारू तौर पर चलाने में प्रवासी मजदूरों का कितना योगदान होता है और इसलिए आगे जाकर हमें प्रवासी कामगारों के लिए एक बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर सेटअप की भी जरूरत होगी, ताकि बड़े पैमाने पर मजदूरों के पलायन को दोबारा रोका जा सके। प्रवासी कामगारो को पुन: काम पर वापस लाना बड़ी चुनौती है।

इस संकट ने राज्यों की जन कल्याणकारी क्षमताओं के पहलू पर ध्यान केंद्रित किया है, क्योंकि हमारे संविधानिक ढांचे में अंतिम कड़ी प्रदेश सरकारो के कार्यो पर ही निर्भर है। भारतीय निजी क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं और वर्तमान जैसे संकटों के समय में सरकार को अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र को आगे लाने के लिए एक तंत्र तैयार करने की आवश्यकता होगी। सुशासन, नीतियों और कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए बिग डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग सरकारों की क्षमताओं में बड़े पैमाने पर सुधार ला सकता है।

आधार कार्ड और डीबीटी जैसी व्यवस्थाओं पर आधारित भारत का जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभ को अंतिम व्यक्ति तक सीधा पहुंचाने का कार्य अमेरिका और चीन से बहुत अलग है, जिसने दुनिया के लिए एक नई मिसाल कायम की है। सरकारी हस्तक्षेप और परिदृश्य नियोजन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग करने से योजनाओं के बेहतर निष्पादन, प्राकृतिक आपदाओं निपटना, कृषि उत्पादन को बढ़ाना आदि को लागू करने की अपार संभावनाएं सामने हैं।

विस्तृत योजना और मानक संचालन प्रक्रिया (स्टेन्र्ड ऑपरेटिगं प्रोसीजर) के द्वारा ही लॉकडाउन उठाया जाएगा। जैसा कि अभी 15 अप्रैल की घोषणाओं में किया गया। भारत की मुद्रास्फीति नियंत्रण में है और कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में भी कमी बनी है, इसलिए केंद्र एफआरबीएम अधिनियम के अन्तर्गत फिसकल डेफिसिट जैसे कुछ विशेष प्रावधानों में सीमित समय के लिए ढील दी जा सकती है। एफआरबीएम अधिनियम के अंदर राज्यों से उधार लेने की सीमा को भी शिथिल किया जा सकता है, जैसा रिजर्व बैंक ने अपनी घोषणा में किया है। मांग को पुनर्जीवित करना, बाजार में नकदी की सुनिश्चिता और बड़े आर्थिक सुधार ही आगे का रोडमैप है। भारत वर्तमान संकट का मुकाबला अपनी पूरी ताकत से कर रहा है और हम अन्य देशों के समक्ष एक मिसाल कायम कर रहे हैं।

(लेखक भारतीय जनता पार्टी के आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

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