मूवी रिव्यू : ‘सुपर 30’ ने देश भर में कमाल किया, लेकिन ऋतिक की फिल्म चूकती नज़र आ रही है!

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बॉलीवुड में इस समय बॉयोपिक्स का शानदार दौर चल रहा है। असल जीवन के नायक-नायिकाओं की कहानियां फिल्मों के जरिए लोगों तक पहुंच रही हैं और दर्शक समाज में बदलाव लाने वाले लोगों से प्रभावित भी हो रहे हैं। ऐसी ही कहानी है ‘सुपर 30’ की, जो पटना के  जाने-माने गणितज्ञ आनंद कुमार की जिंदगी पर आधारित है।

फिल्म की कहानी

सुपर 30 के कहानी की शुरुआत होती है फ्लैशबैक के साथ। एक बेहतरीन स्टूडेंट आनंद का एडमिशन क्रैबिंज यूनिवर्सिटी में होता है लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते उसका एडमिशन नहीं हो पाता है। आनंद के पिता की मौत हो जाती है और उसे अपनी मां के हाथों के बने पापड़ बेचकर घर चलाना पड़ता है।


हालांकि आनंद की किस्मत बदलती है जब उन्हें लल्लन सिंह का साथ मिलता है। लल्लन सिंह का किरदार आदित्य श्रीवास्तव ने निभाया है। लल्लन आईआईटी की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए एक कोचिंग सेंटर चलाता है और आनंद को बतौर टीचर शामिल कर लेता है। हालांकि जब आनंद को एहसास होता है कि उसके जैसे कई बच्चे अपने सपनों का आर्थिक तंगी के चलते बलिदान कर रहे हैं तो वो अपनी कंफर्टेबल जिंदगी को छोड़कर फ्री कोचिंग सेंटर खोलता है।

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फिल्म रिव्यू

आपको निर्देशक विकास बहल की फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी सधा लगेगा, लेकिन  सेकंड हाफ में कहानी थोड़ी मेलोड्रमैटिक होकर खिंचती नजर आती है। अगर आप बिहार या भोजपुरी से ताल्लुक रखते हैं तो इस फिल्म में  ऋतिक रोशन का एक्सेंट आपको थोड़ा निराश कर सकता है। हालांकि, ऋतिक ने आनंद कुमार लगने की कोशिश की है लेकिन अपने ब्राउन मेकअप शेड्स में वे कई सीन्स में प्रभावी नहीं लगते हैं। जहां उनकी स्किन का काफी ध्यान रखा गया वही एक्टर की आंखों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। फिल्म में ऋतिक की नैचुरल हरी आंखें एहसास नहीं होने देती कि वे ऋतिक नहीं बल्कि आनंद कुमार हैं।


पंकज त्रिपाठी फिल्म में एजुकेशन मिनिस्टर के तौर पर दिखते हैं जिनका कोचिंग बिजनेस शानदार चल रहा है वहीं मृणाल के पास थोड़े से स्क्रीन स्पेस में खास कुछ करने को नहीं था लेकिन ऋतिक के साथ सीन्स में वे प्रभावी लगती हैं। अनुराग कश्यप की कई फिल्मों में नजर आ चुके आदित्य श्रीवास्तव अपनी अदाकारी से एक बार फिर चौंकाते हैं।

‘सुपर 30’ बच्चों की भूख, बेबसी और उनके अविष्कारों को विकास ने कहानी में इमोशनल ढंग से पिरोया है। ‘राजा का बेटा राजा नहीं रहेगा’, ‘आपत्ति से अविष्कार का जन्म होता है’ जैसे संवाद आपको तालियां पीटने पर मजबूर कर देते हैं, लेकिन अगर क्लाइमैक्स की बात करें तो आप कह सकते हैं कि ये और असरकारक हो सकता था।

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हालांकि 2 घंटे 42 मिनट की ये फिल्म थोड़ी लंबी लगती है। फिल्म में ऋतिक की मृणाल के साथ लव स्टोरी वाला हिस्सा इस कहानी में कोई प्रासंगिकता नहीं रखता है। सुपर 30 के कुछ हिस्से ज्यादा ही नाटकीय लगते हैं। मसलन एक बच्चा जो आनंद के सुपर 30 का हिस्सा होने से एक नंबर से रह जाता है, वो ना केवल कुछ घंटों की मेहनत के बाद शानदार म्यूजिकल परफॉर्मेंस देता है बल्कि कई महीनों की ट्रेनिंग का हिस्सा ना बनने के बाद भी आईआईटी का एग्जाम निकाल देता है। अजय-अतुल के संगीत में उदित नारायण और श्रेया घोषाल का गाया, ‘जुगरफिया’ गाना मधुर बन पड़ा है। रेडियो मिर्ची के चार्ट पर यह गाना दसवें पायदान पर है। आनंद कुमार के 30 बच्चे बने सभी कलाकारों ने नैसर्गिक अभिनय किया। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और लेखन भी अच्छा है जो फिल्म का सफल बनान में सहायक है। फिल्म अच्छी है जिसे एक बार जरूर देखा जा सकता है।

आनंद कुमार के नेतृत्व में सुपर 30 ने देश भर में कमाल किया है। हालांकि विकास बहल के नेतृत्व में ये फिल्म अपना कमाल दिखा पाने में कहीं ना कहीं चूकती नज़र आ रही है।

क्यों देखें : अगर आपको बॉयोपिक्स मे दिलचस्पी है और आप अंडरडॉग्ज के संघर्ष और उनकी जीत का जश्न मनानेवाली कहानी को पसंद करते हैं तो इस फिल्म को जरूर देखें।

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