Muharram procession: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मुहर्रम का जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी है। कोर्ट ने जुलूस निकालने के लिए अनुमति लेने की याचिका पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हम इसकी अनुमति देते हैं तो अराजकता फैलेगी और एक समुदाय विशेष को कोरोना फैलाने लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा और हम ऐसा नहीं चाहते हैं।
हालांकि जब याचिकाकर्ता ने जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा की इजाजत का हवाला दिया गया तो कोर्ट ने कहा कि वह एक जगह की बात थी। हमने हर संभावित खतरे को देखकर ही सावधानी के साथ इसकी इजाजत दी। लेकिन पूरे देश में जुलूस निकालने को लेकर कोई जनरल आदेश नहीं दिया जा सकता है।
हम बतौर कोर्ट सभी की ज़िंदगी को खतरे में नहीं डाल सकते है। हां, अगर आपने किसी स्थान विशेष की बात की होती वहां के संभावित खतरे के बारे में आंकलन किया जा सकता था। इसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से केवल लखनऊ में मुहर्रम (Muharram) जुलूस की इजाजत मांगी गई।
इस मांग के लिए ये हवाला दिया गया कि शिया समुदाय के काफी लोग वहां रहते है। कोर्ट ने इसके लिए याचिकाकर्ता को इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि मुहर्रम जुलूस पूरे देश में जगह-जगह निकलेगा, इसलिए हर राज्य सरकार की मंज़ूरी या उनका पक्ष सुनना जरूरी है।
कोर्ट ने कहा कि वो अपनी याचिका में 28 राज्य की सरकारों को भी वादी बनाएं, जिसके बाद इसकी सुनवाई होगी। आपको बता दें कि राजधानी दिल्ली में ताजिया का सिलसिला मुगलकालीन समय से ही चला आ रहा है, पर 700 सालों में ऐसा पहली बार होगा कि मोहर्रम पर ताजिये तो रखे जाएंगे, लेकिन इनके साथ निकलने वाला जुलूस नहीं निकल सकेगा।
हजरत निजामुद्दीन औलिया दरगाह शरीफ के प्रमुख कासिफ निजामी ने कहा कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय यानी 1947 में भी दरगाह से ताजियों के साथ निकालने वाले जुलूस पर पाबंदी नहीं लगी थी, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से दिल्ली और केंद्र सरकार से धार्मिक सामूहिक कार्यक्रम की अनुमति नहीं है.