SUPVA के छात्र धरना प्रदर्शन पर, प्रशासन ने 14 छात्रों को निष्कासित कर दर्ज कराई FIR

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रोहतक के स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफॉर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स (SUPVA) में एक बार फिर छात्र और प्रशासन आमने-सामने हैं। SUPVA के फिल्म एंड टेलीविज़न विभाग के छात्र 6 मई से हड़ताल पर हैं। संस्थान में पहले से चल रहे बैचलर्स इन फिल्म एंड टेलीविज़न विभाग में सीटें बढ़ाने और नए शैक्षणिक सत्र में नए कोर्स शुरू करने के विरोध में छात्र धरना दे रहे हैं।


आपको बता दें कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने धरना दे रहे 14 छात्रों को निष्कासित कर उन पर FIR दर्ज करवा दी है। सभी छात्रों पर असॉल्ट यानी मार-पीट का चार्ज लगाया गया है। हालांकि अब  निष्कासित छात्रों ने चंड़ीगढ़ हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की है।

पुलिस ने छात्रों को संस्थान से 250 मीटर की दूरी पर धरना प्रदर्शन करने के आदेश दिए हैं। छात्रों के अनुसार ये प्रशासन द्वारा उनकी आवाज दबाने की कोशिश है।


दरअसल, SUPVA इस सत्र में सभी विभागों में कुछ नए कोर्सेज शुरू करने जा रहा है जबकि छात्रों का कहना है कि पहले से चलाए जा रहे कोर्सेज के लिए ही पर्याप्त बजट और सुविधाएं कम पड़ रही हैं। यहां न लैब है न फिल्म मेकिंग में इस्तेमाल होने वाले सभी उपकरण। ऐसे में नए कोर्स के चालू होने से उनकी परेशानियां और बढ़ जाएंगी।

यहां पढ़ रहे छात्रों का कहना है कि वो लागातार प्रशासन और वाइस चांसलर के सामने अपनी आवाज उठा रहे हैं, लेकिन प्रशासन उनकी बातें सुनने की बजाय उल्टा उन्हें प्रताड़ित कर रहा है।

संस्थान के एक छात्र ने न्यूज्ड से बात करते हुए कहा, ‘‘यूनिवर्सिटी सभी विभागों में मास्टर डिग्री प्रोग्राम शुरू करने जा रही है। लेकिन फिल्म और टेलीविजन विभाग में सिनेमा के क्षेत्र में मास्टर डिग्री नहीं हो रही, बल्कि मास कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री की शुरुआत की जा रही है जो पूरी तरह अप्रासंगिक है।’’

छात्रों का कहना है कि वो मास्टर डिग्री प्रोग्राम के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन वो फिल्म और टेलीविजन के क्षेत्र में मास्टर डिग्री चाहते हैं, जैसे कई अन्य विश्वविद्यालय फिल्म अध्ययन में मास्टर डिग्री प्रदान करते हैं। नया कोर्स लाना, फिल्म और टेलीविजन संस्थान को खत्म करने की एक कोशिश है। न तो मास्टर डिग्री मौजूदा सिलेबस से संबंधित है और न ही ये यूनिवर्सिटी के विजन में है।

सीटें बढ़ाने का भी हो रहा है विरोध

छात्रों के अनुसार फिल्म एंड टेलीविजन विभाग में संस्थान के पास 5 छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। ऐसी हालत में सीटों को बिना किसी तैयारी के बढ़ाना छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। न्यूज्ड से बात करते हुए एक अन्य छात्र ने बताया कि हमारा पाठ्यक्रम 12 सीटों के हिसाब से तैयार किया गया था। 15 छात्रों को फिट करने के लिए, विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम को बदलने की योजना बना रहा है। जिसके लिए वे प्रैक्टिकल और प्रोजेक्ट्स में कटौती करने जा रहे हैं , जो पूरे शैक्षणिक माहौल को खराब करेगा।

गौरतलब है कि साल 2011 में जबसे ये संस्थान अस्तित्व में आया है, यहां छात्र अपनी मांगों को लेकर लगातार लड़ाई लड़ते आ रहे हैं। उत्तर भारत में ये फिल्म और टेलीविजन का एकमात्र सरकारी संस्थान है।

सुविधाओं का आभाव

पिछले सालों में छात्रों द्वारा कई विरोध प्रदर्शन किए गए लेकिन उसके बाद भी  विश्वविद्यालय में अभी तक बॉयज हॉस्टल, मिनी ऑडिटोरियम, शूटिंग फ्लोर, साउंड स्टूडियो, फिल्म लाइब्रेरी के कामकाज पूरी तरह से लंबित पड़े हैं। ज्यादातर स्टूडियो सालों से काम नहीं कर रहे हैं। आवश्यक उपकरणों की भारी कमी है। हर विभाग को योग्य फैकल्टी की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

छात्रों के अनुसार यूनिवर्सिटी के एडमिन बेशर्मी से कहते हैं कि फिल्म और टेलीविजन के छात्र अपने प्रोजेक्टस को बनाने में सरकार के पैसे (विश्वविद्यालय के फंड) को बर्बाद कर रहे हैं। एडमिन का ये भी कहना है कि छात्र यहां फिल्म निर्माण का अध्ययन करके अपना पैसा और समय दोनों व्यर्थ बर्बाद कर रहे हैं । इस संबंध में छात्रों ने सोशल मीडिया के माध्यम से भी अपना विरोध जताया है। यूट्यूब और फेसबुक पर वीडियो पोस्ट किए हैं।

न्यूज्ड ने इस संबंध में यूनिवर्सिटी के प्रशासन का पक्ष जानने की कोशिश की, लेकिन हमें उनका कोई जवाब नहीं प्राप्त हुआ।

यहां पढ़ रहे छात्रों का ये भी आरोप है कि यूनिवर्सिटी के कुलपति राजबीर सिंह अपने पद के लिए योग्य ही नहीं हैं  और वे अपने राजनीतिक हथकंडे अपनाकर छात्रों को परेशान कर रहे हैं।

सोमवार को छात्रों ने मुंह पर पट्टी बांधकर कैंपस में शांति मार्च भी निकाला। उनका कहना है कि प्रशासन उनकी मागों की अनदेखी कर रहा है और कुलपति बात करने तक को तैयार नहीं हैं।  जाहिर है छात्रों और प्रशासन के बीच संवाद की कमी साफ तौर पर देखी जा सकती है। ऐसे में यहां पढ़ रहे छात्रों का भविष्य दांव पर लगा है। प्रशासन का रवैया उनकी मुसीबतें और बढ़ा रहा है।

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