एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किसी सम्मेलन में हिन्दी साहित्य को लेकर कुछ टिप्पणी कर दिया था। उन्होंने किसी कवि का नाम लेते हुए कहा था कि इनसे अच्छा कवि हिन्दी साहित्य में हो ही नहीं सकता। यह बात जब सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ तक पहुंची तो उनसे रहा नहीं गया वो तत्काल प्रभाव से गांधी जी के पास पहुंचे और उनकी बातों का विरोध जताना शुरु कर दिया। उन्होंने कहा आपने हिन्दी साहित्य को कितना पढ़ा है जो आपने यह फैसला कर लिया कि उनसे अच्छा कवि कोई नहीं हो सकता। क्या आपको पता है आपके इस कथन से हिंदी कवियों को कितना दुख होगा।
‘महाप्राण’ निराला व्यक्तित्व के बेहद सरल इंसान थे वो हमेशा सादे कपड़ों में रहा करते थे। वह हमेशा दूसरों ता दर्द समझते थे। एक बार एक वृद्ध महिला ने निराला जी को बेटा कहकर उनसे भीख मांगी। निराला जी ने जैसे ही सुना कि वृद्ध महिला ने उन्हें बेटा कहा है उन्होंने भेंट में मिले एक हजार रुपए उस महिला को दे दिए।
21 फरवरी 1896 को निराला का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में वसंत पंचमी के दिन हुआ था। ‘निराला’ के पिता का नाम पं. रामसहाय था। वह बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर ज़िले में एक सरकारी नौकरी करते थे। निराला का बचपन बंगाल के इस क्षेत्र में बीता जिसका उनके मन पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है। तीन वर्ष की अवस्था में उनकी माँ की मृत्यु हो गयी और उनके पिता ने उनकी देखरेख का भार अपने ऊपर ले लिया।
15 वर्ष की आयु में निराला का विवाह मनोहरा देवी से हो गया था। निराला जी ने पत्नी के ज़ोर देने पर ही उन्होंने हिन्दी सीखी। आगे चल कर निराला जी के पत्नी की मृत्यु उनकी 20 वर्ष की अवस्था में ही हो गयी थी।
निराला जी ने 1922 से 1923 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय’ का संपादन किया। इसके बाद 1923 के अगस्त से ‘मतवाला’ के संपादक मंडल में भी काम किया। इनके इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय और वहाँ से निकलने वाली मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे।
इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य भी किया। वे हिन्दी के महान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद में निराला जी ने अपनी आखिरा सांस ली।
निराला जी की रचनाएं-
काव्यसंग्रह
अनामिका (1923)
परिमल (1930)
गीतिका (1936)
अनामिका (द्वितीय) (1939)
तुलसीदास (1939)
कुकुरमुत्ता (1942)
अणिमा (1943)
बेला (1946)
नये पत्ते (1946)
अर्चना(1950)
आराधना 91953)
गीत कुंज (1954)
सांध्य काकली
अपरा (संचयन)
उपन्यास
अप्सरा (1931)
अलका (1933)
प्रभावती (1936)
निरुपमा (1936)
कुल्ली भाट (1938-39)
बिल्लेसुर बकरिहा (1942)
चोटी की पकड़ (1946)
काले कारनामे (1950) {अपूर्ण}
चमेली (अपूर्ण)
इन्दुलेखा (अपूर्ण)
कहानी संग्रह
लिली (1934)
सखी (1935)
सुकुल की बीवी (1941)
चतुरी चमार (1945)
देवी (1948)
निबन्ध-आलोचना
रवीन्द्र कविता कानन (1929)
प्रबंध पद्म (1934)
प्रबंध प्रतिमा (1940)
चाबुक (1942)
चयन (1957)
संग्रह (1963)[9]
इलाहाबाद में एक पत्थर तोड़ती महिला पर लिखी उनकी कविता आज भी सामाजिक यथार्थ का एक आईना मानी जाती है।
वह तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार पेड़
वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार
श्याम तन, भर बंधा यौवन
नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन
गुरु हथौड़ा हाथ
करती बार-बार प्रहार
सामने तरू-मालिका अट्टालिका प्राकार