बिहार का ‘लेनिनग्राद’ कहा जाने वाला बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र इस बार के चुनाव में सबसे ‘हॉट सीट’ बन गया है। यहां दोनों गठबंधनों (एनडीए और महागठबंधन) के बीच कड़ी टक्कर है। जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को भाकपा (सीपीआई) ने उम्मीदवार बनाकर मुकाबले को त्रिकोणीय और दिलचस्प बना दिया है।
बिहार की राजधानी पटना से 125 किलोमीटर दूर स्थित बेगूसराय लोकसभा सीट को कभी कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था। 1952 से लेकर 2009 के लोकसभा चुनाव तक किसी भी बीजेपी या जनसंघ के उम्मीदवार को बेगूसराय संसदीय सीट से जीत नसीब नहीं हुई थी। यह सिलसिला 2014 के चुनाव में टूटा जब दिवंगत सांसद भोला सिंह ने राजद के तनवीर हसन को कड़े मुकाबले में पटखनी दी थी। इससे पहले यह सीट जदयू के हिस्से में थी। 2009 में डॉ. मोनाजिर हसन ने इस सीट पर सीपीआई के कद्दावर नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को पराजित कर कब्जा जमाया था।
बहरहाल, इस बार राजद ने फिर से मोहम्मद तनवीर हसन को मैदान में उतारा है। तनवीर हसन एक मिलनसार स्वभाव वाले जमीनी नेता के तौर पर मशहूर हैं। राजद से जुड़े होने के चलते उन्हें यादवों और मुसलमानों का मजबूत समर्थन मिलता रहा है।
छात्र राजनीति से की शुरुआत
तनवीर हसन की राजनीतिक यात्रा 70 के दशक के मध्य में शुरू होती है। उन्होंने छात्र राजनीति से शुरुआत की और धीरे-धीरे मुख्यधारा की राजनीति में घुस गए। हसन ने अपनी स्कूली शिक्षा मुंगेर से की। स्कूल के दिनों में ही वह ‘समाजवादी युवजन सभा’ नाम के छात्रसंघ का हिस्सा बने और राजनीति का ककहरा भी सीखा। यह संगठन प्रखर समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी से जुड़ा था।
राजनीति से लगाव के चलते तनवीर हसन ने जॉर्ज फर्नांडीस, मधु लिमये, मधु दंडवते जैसे समाजवादी दिग्गजों से प्रभावित हुए और उनका अनुसरण करना शुरू कर दिया। आपातकाल के विरुद्ध 1975 में वह जेपी आंदोलन का हिस्सा बने और जेल भी गए।
लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी से लेकर जनता पार्टी, लोकदल, जनता दल और फिर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जैसी समाजवादी विचारधारा की पार्टियों में तनवीर हसन ने अलग-अलग संगठनात्मक पदों पर रहे। इस दौरान पार्टियां टूटती-बनती रहीं, लेकिन तनवीर हसन के मन में समाजवाद के आदर्श अटल रहे। साल 1985 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल करने में असफल रहे।
तनवीर हसन की शैक्षणिक पृष्ठभूमि की बात करें तो वो काफी पढ़े-लिखे व्यक्ति है। उन्होंने बेगूसराय के जीडी कॉलेज से स्नातक और मिथिला विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर किया है। आगे चलकर उन्होंने ‘रूरल फाइनेंसिंग’ पर अर्थशास्त्र में पीएचडी की। इसके अलावा उनके पास एलएलबी की डिग्री भी है।
आइये डॉ तनवीर हसन के सियासी सफर पर डालते हैं एक नज़र:
1979-80: मिथिला विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य बने।
1985: मास्को, यूएसएसआर में युवा सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
1994-1997: जनता दल यूथ के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त।
2000-2004: अखिल भारतीय युवा महासचिव राजद यूथ विंग।
2005-आज तक: राज्य उपाध्यक्ष, राजद।
1990-2014: विधान सभा सदस्य, राजद।
2014: बेगूसराय से लोकसभा चुनाव लड़े और दूसरे स्थान पर रहे।
कर्पूरी ठाकुर रहे मेंटर
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर के साथ तनवीर हसन का गहरा लगाव था। कर्पूरी ठाकुर के सान्निध्य में हसन ने राजनीतिक संगठन खड़ा करने के गुर सीखे और बिहार के परिदृश्य में सियासत की बारीकियों को बखूबी जाना-समझा। यह कर्पूरी ठाकुर ही थे जिन्होंने हसन को लोकदल की छात्र इकाई का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था। उसी समय, वह मिथिला विश्वविद्यालय के सीनेट के लिए चुने गए, जिसके अंतर्गत ग्यारह जिले आते थे- दरभंगा, मधुबनी, बेगूसराय, समस्तीपुर, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा और सुपौल।
बेगूसराय के चुनावी मैदान में तनवीर हसन
राजद के मजबूत सिपाही के रूप में तनवीर हसन बेगूसराय के चुनावी मैदान में डटे हैं। छात्र राजनीति के दिनों से लेकर आज तक उनकी छवि एक ऐसे नेता की रही है जो सांप्रदायिकता के खिलाफ सामाजिक न्याय व धर्मनिरपेक्षता की आवाज़ बुलंद करता हो। अपने विनम्र स्वभाव और जमीन से जुड़े नेता होने की वजह से जनता उन्हें पसंद करती है। लेकिन, राजनीति के पुराने खिलाड़ी और राजद में बड़ा कद रखने वाले हसन मीडिया की चमक-दमक से अक्सर दूर ही रहे।
राजद नेतृत्व ने मुस्लिम- यादव (एम-वाई) समीकरण को ध्यान में रखते हुए बेगूसराय से तनवीर हसन को प्रत्याशी बनाया है। पिछली बार वह जीत से कुछ कदम दूर रह गए थे। लेकिन इस बार बेगूसराय में मुकाबला त्रिकोणीय है। हसन को हराने वाले बेगूसराय के सांसद और बीजेपी के वरिष्ठ नेता भोला सिंह का निधन हो चुका है। काफी ना-नुकुर करने के बाद गिरिराज सिंह बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतरे हैं। नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ जनता में एंटी-इन्कम्बेंसी भी है। 29 अप्रैल को होने वाले चौथे चरण के चुनाव में यहाँ वोट डाले जाने हैं। अब देखना ये है कि तनवीर हसन बेगूसराय में जीत का परचम लहरा कर बिहार में महागठबंधन की नैया पार लगा पाएंगे या नहीं।