उम्मीद है कि ‘बाटला हाउस’ तथ्यों पर आधारित होगी : पूर्व पुलिस आयुक्त

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नई दिल्ली, 11 जुलाई (आईएएनएस) जॉन अब्राहम की बहुचर्चित फिल्म ‘बाटला हाउस’ का ट्रेलर जब से लांच हुआ है, तभी से मुठभेड़ों की प्रमाणिकता पर सवाल उठने लगे हैं। दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त नीरज कुमार, जो इस ऑपरेशन में नंबर दो थे, का कहना है कि यह ‘निश्चित रूप से फर्जी नहीं था।’ उन्होंने कहा, उम्मीद है कि कोई सिनेमाई स्वतंत्रता नहीं ली गई होगी, क्योंकि यह एक अत्यंत संवेदनशील मामला है।

‘बाटला हाउस’ दिल्ली पुलिस की सात सदस्यीय विशेष प्रकोष्ठ (स्पेशल सेल) की टीम और संदिग्ध इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों के बीच 19 सितंबर 2008 को हुई गोलीबारी पर केंद्रित है। इंडियन मुजाहिदीन के ये आतंकवादी 13 सितंबर, 2008 को दिल्ली में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में कथित तौर पर शामिल थे और स्पेशल सेल की टीम उन्हें गिरफ्तार करने बाटला हाउस गई थी।


कुमार घटना के दौरान दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त व 2012 से 2013 तक आयुक्त रहे। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि फिल्म तथ्य के साथ दिखाई जाएगी।

नीरज कुमार ने लंदन से एक ईमेल के जरिए आईएएनएस को बताया, “मैं उम्मीद करूंगा कि सिनेमाई स्वतंत्रताएं नहीं ली गई होंगी, क्योंकि यह एक अत्यंत संवेदनशील मामला है। लेकिन फिर भी, यह उम्मीद करना बहुत अधिक हो सकता है। फिल्म निमार्ताओं को अपने दर्शकों को साधना है और आमतौर पर तथ्यों में बदलाव हो सकते हैं। कथा को अधिक नाटकीय और व्यापक बनाने के लिए तथ्य अति आवश्यक हैं।”

‘बाटला हाउस’ में जॉन अब्राहम डीसीपी संजीव कुमार यादव का रोल निभा रहे हैं, जिन्होंने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। फिल्म कथित मुठभेड़ मामले की फिर से जांच करने की कोशिश करेगी।


घटना के समय, कई लोगों ने कहा कि पुलिस ने निर्दोष छात्रों की हत्या की और उन्हें आतंकवादी करार दिया। जॉन, एक शीर्ष पुलिस वाले की अपनी भूमिका में 8 जुलाई को लांच किए गए टीजर में आरोपी की मासूमियत पर सवाल उठाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

टीजर में जॉन कहते दिख रहे हैं, “हम नहीं कहते कि वे छात्र नहीं थे, मगर क्या वे बेकसूर थे?”

कुमार ने फर्जी मुठभेड़ जैसे आरोपों से इंकार करते हुए कहा, “यह निश्चित रूप से एक फर्जी मुठभेड़ नहीं थी। यह कल्पना करना मूर्खतापूर्ण होगा कि दिल्ली पुलिस अपने ही एसीपी, जो सबसे सक्षम अधिकारियों में से एक था, को मारने के लिए एक फर्जी मुठभेड़ करेगी। यहां तक कि कांस्टेबल को भी उसकी बांह में गोली लगी।”

कुमार ने कहा, “भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा की गई एक जांच ने पुलिस को क्लीन चिट दे दी थी और इसकी रिपोर्ट को सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार किया था। इन घटनाओं के बावजूद पुलिस पर उंगली उठाना न केवल शहीद एसीपी, एनएचआरसी और सर्वोच्च न्यायिक निकाय के लिए अपमानजनक है।”

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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