उप्र : पैंगोलिन का शिकार करने पर 4 युवकों के खिलाफ मुकदमा

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फतेहपुर, 12 जनवरी (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में किशुनपुर थाने में संरक्षित वन्यजीव पैंगोलिन का शिकार करने पर शनिवार को चार युवकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। फतेहपुर के जिला वन अधिकारी (डीएफओ) पी.एन. राय ने बताया, “शुक्रवार से सोशल मीडिया में दो वीडियो बड़ी तेजी से वायरल हो रहे थे। एक वीडियो में संरक्षित वन्यजीव की अनुसूची-एक में शामिल पैंगोलिन (चींटीखोर) को एक युवक साइकिल के कैरियर में बांधता हुआ दिखाई देता है, जबकि दूसरे में कुछ लोग उसे धारदार हथियार से काटते हुए दिख रहे हैं।”

राय ने बताया, “इन वीडियोज की जांच की गई तो ये किशुनपुर थाना क्षेत्र के पौली गढ़वा गांव के गोंदौरा के जंगल का होना पाया गया। वीडियो में दिख रहे युवकों की पहचान पौली गढ़वा गांव निवासी हरिश्चंद्र, खिलाड़ी, कमलेश और लखन के रूप में हुई।”


उन्होंने बताया, “वन रक्षक अनूप कुमार शुक्ला की तहरीर पर किशुनपुर थाने में चारों युवकों के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा-9, 39, 49ए और 51 के अंतर्गत शनिवार को मुकदमा दर्ज कराया गया है। इन धाराओं में अधिकतम सात साल तक की सजा हो सकती है।”

डीएफओ ने बताया, “जंगल में पैंगोलिन का अवशेष नहीं मिल पाया। आरोपी संभवत: उसे पका कर खा गए होंगे।”

‘पैंगोलिन’ दुर्लभ प्रजाति का संरक्षित वन्यजीव है। भारत में इसकी कीमत 10-15 लाख रुपये के आस-पास है, जबकि विदेशों में यह करोड़ों रुपयों में बिकता है। सरीसृप श्रेणी में आने वाले इस जीव के केराटिन से शक्तिवर्धक दवाएं बनती हैं।


डीएफओ राय ने बताया, “संरक्षित वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित वन्य जीवों की अनुसूची-एक में इसे 43वां स्थान मिला हुआ है। इसका वैज्ञानिक नाम फोलिडोटा है। यह सरीसृप श्रेणी का जीव है।”

राय ने बताया, “विलुप्त प्रजाति का यह जीव भारत की छोटी पहाड़ियों के अलावा श्रीलंका, नेपाल, भूटान और अफ्रीका में पाया जाता है। यह स्तनधारी जीव छोटे डायनासोर की तरह दिखता है। इसके संरक्षण के लिए समूचे विश्व में हर साल फरवरी के तीसरे शनिवार को ‘वल्र्ड पैंगोलिन डे’ भी मनाया जाता है।”

डीएफओ राय ने बताया, “पैंगोलिन के शरीर में शल्कनुमा संरचना होती है, जिसमें केराटिन पाई जाती है। चिकित्सा वैज्ञानिक इसी केराटिन से शक्तिवर्धक दवाएं इजाद करते हैं, जिससे इनकी तस्करी भी होती है। इसी शल्कनुमा संरचना से यह जीव अपनी रक्षा भी करता है। यह बहुत ही शर्मीला किस्म का जीव है, खतरा का आभास होते ही कुंडली मारकर बैठ जाता है। गहरे भूरे रंग के इस जीव की लंबाई दो मीटर के आस-पास और वजन अधिकतम करीब 35 किलोग्राम होता है। इसका मुख्य भोजन चीटी या दीमक है, इसीलिए इसे ‘चीटीखोर’ भी कहते हैं।”

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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