सूर्य और छठी मैया को समर्पित त्योहार ‘छठ पूजा’ (Chhath Puja) को बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में बड़ी धूम- धाम से मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में लोग उपवास और पूजा कर सूर्य देव का धन्यवाद करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैया सूर्य देव की बहन है। कहा जाता है, छठ पर्व में सूर्य देव की उपासना करने से छठी मैया प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
कब है ‘छठ पूजा?
यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। हिंदू नववर्ष के पहले महीने चैत्र के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ का पर्व मनाया जाता है, इसलिए इसे ‘चैती छठ’ (Chaiti Chhath) कहा जाता है। वहीं, कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भी यह पर्व मनाया जाता है, जिसे ‘कार्तिक छठ’ (Karthik Chhath) कहा जाता है।
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इस वर्ष चैती छठ 9 से 12 अप्रैल तक मनाई गई थी। अब अक्टूबर माह में कार्तिक छठ मनाई जाएगी, जिसका आरंभ 31 अक्टूबर 2019 को होगा और 3 नवंबर 2019 को इसका समापन होगा।
‘छठ पूजा’ का महत्व
बिहार में इस पूजा का खास महत्व होता है। इस महापर्व को छठ पूजा, छठी माई पूजा, डाला छठ, सूर्य षष्ठी पूजा और छठ पर्व के नामों से भी जाना जाता है।चार दिनों के इस पर्व में नहाय खाय, खरणा, संध्या घाट और भोरवा घाट शामिल है।
धार्मिक महत्व के अलावा, इन अनुष्ठानों से बहुत सारे वैज्ञानिक तथ्य जुड़े हुए हैं। इस पूजा के दौरान, श्रद्धालु सूर्योदय या सूर्यास्त के दौरान नदी तट पर प्रार्थना करते हैं। विज्ञान में यह बात साबित की गई है कि इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें काफी कम होती हैं और इस दौरान सूर्य के प्रकाश में रहना शरीर के लिए फायदेमंद होता है।
इसे ‘छठ’ क्यों कहा जाता है?
नेपाली और हिंदी भाषा में छठ शब्द का अर्थ छह है। क्योंकि यह त्योहार कार्तिक महीने के छठे दिन मनाया जाता है, इसलिए इस त्योहार का नाम ‘छठ’ रखा गया है।
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क्यों मनाया जाता है यह पर्व?
छठ पूजा से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि प्राचीन काल में, द्रौपदी और हस्तिनापुर के पांडवों ने अपनी समस्याओं को हल करने और अपने खोए हुए राज्य को वापस पाने के लिए छठ पूजा मनाई थी। यह भी कहा जाता है कि इस पूजा को उस युग के ऋषि करते थे। वे किसी बाहरी साधन से ऊर्जा लेने की बजाय, सीधे सूर्य की किरणों से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए यह किया करते थे।