महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) जैन समुदाय में बहुत बड़े पर्व के रूप में मनाई जाती है। जैन धर्म के 24वें तीर्थकार महावीर का चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को जैन धर्म के मानने वाले लोग महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) के तौर मनाते हैं। इस बार यह तिथि 6 अप्रैल और दिन सोमवार को है। भगवान महावीर ने लोगों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का पाठ पढ़ाया। जैन धर्म में इस पर्व की खास मान्यताएं हैं।
भगवान महावीर का जन्म 599 ईसवी पूर्व में हुआ
भगवान महावीर ने अंहिसा परमो धर्म का संदेश दुनिया भर में फैलाया इनके बचपन का नाम वर्धमान था इनका जन्म 599 ईसवी पूर्व में बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशाला के घर हुआ। वर्धमान ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए महज तीस की उम्र में राजमहल के सुखों का त्याग दिया था उसके बाद उन्होंने तोमय साधना का रास्ता अपना लिया। जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने 12 वर्षों की कठोर तपस्या कर अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी। इसिलए उन्हें महावीर के नाम से पुकारा गया।
भगवान महावीर ने पांच व्रतों का पालन करने को कहा
भगवान महावीर ने अपने हर भक्त को अहिंसा, सत्य, अस्तेय, बह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया है। साथ ही उन्होंने साधु साध्वी, श्रावक और श्राविका-इन चार तीर्थों की स्थापना की। इसलिए वह तीर्थकार भी कहलाए भगवान महावीर ने सालों से चल रही सामाजिक विसंगतियों को दूर करने के लिए भारत की मिट्टी को चंचन बनाया। उन्होंने जात-पात के भेदभव से ऊपर उठकर समाज के कल्याण की बात कही।
जैन धर्म में महावीर जयंती कैसे मनाई जाती है?
जैन धर्म में विश्वास करने वाले लोग महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) वाले दिन जैन मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्तियों का अभिषेक करते हैं। इसके बाद मूर्ति को रथ में बैठाकर शोभायात्रा निकलते हैं। इस यात्रा में जैन समुदाय के लोग हिस्सा लेते हैं। साथ ही कई जगह पंडाल भी लगाए जाते हैं जहां पर गरीब व जरूरतमंद लोगों की मदद की जाती है। इस त्यौहार को सबसे ज्यादा राजस्थान और गुजरात में बनाया जाता है क्योंकि यहां पर जैन धर्म को मानने वाले लोग अधिक संख्या में रहते हैं।