नई दिल्ली। चंद्र ग्रहण (Lunar eclipse) पूरी दुनिया में एक समय पर ही शुरू होता है और एक साथ ही खत्म होता है लेकिन यह इस बात पर निर्भर है कि वहां पर रात्रि का कौन सा समय चल रहा है। किसी जगह पर शाम को चंद्रोदय के वक्त या उसके बाद दिखेगा और कहीं सुबह चंद्रास्त के आस-पास होगा।
चंद्र ग्रहण तब लगता है, जब सूरज (Sun) और चांद (Moon) के बीच पृथ्वी आ जाती है। ऐसे में सूरज की रोशनी चांद तक पहुंच नहीं पाती है। जब चांद पैनंबरा की तरफ जाता है तो चांद हमें धुंधला सा दिखाई पड़ता है। इसे पैनंबरा चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
जब तब चांद का कुछ हिस्सा पैनंबरा में होता है और थोड़ा सा हिस्सा बाहर होता है तो आंशिक चंद्र ग्रहण लगता है। चंद्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा (Purnima) को ही होता है। चंद्र ग्रहण से दो सप्ताह पहले या बाद में सूर्य ग्रहण होता है।
पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण होने के पीछे का कारण
चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है लेकिन हर पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण नहीं होता है। जिसके पीछे का कारण ये है कि पृथ्वी की कक्षा पर चंद्रमा की कक्षा का झुके होना। इसलिए हर बार चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश नहीं करता और उसके ऊपर या नीचे से निकल जाता है।
जबकि सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या के दिन होते हैं क्योंकि चंद्रमा का आकार पृथ्वी के आकार के मुकाबले लगभग 4 गुना कम है। इसकी छाया पृथ्वी पर छोटी आकार की पड़ती है इसीलिए पूर्णता की स्थिति में सूर्य ग्रहण पृथ्वी के एक छोटे से हिस्से से ही देखा जा सकता है।
चंद्र ग्रहण की स्थिति में धरती की छाया चंद्रमा के मुकाबले काफी बड़ी होती है। इसलिए इससे गुजरने में चंद्रमा को ज्यादा वक्त लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सूरज और चांद के बीच धरती इसी दिन आती है।