सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश किया निरस्त, कहा- प्रेम क्षति का मुआवजा अलग से नहीं दिया जा सकता

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक ताजा फैसले में कहा है कि दाम्पत्य सुख की क्षति के मुआवजे में ही प्रेम और वात्सल्य की क्षति भी कवर होगी। इसके लिए अलग से मद बनाकर मुआवजा तय नहीं किया जा सकता। यह फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने दाम्पत्य सुख की क्षति के साथ प्रेम और वात्सल्य खो जाने का मुआवजा देने के हाईकोर्ट (High Court) के आदेश को निरस्त कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि मुआवजा (Compensation) देने की एक समान प्रणाली होनी चाहिए। यह पहले ही तय किया जा चुका है कि सड़क दुर्घटना में हुई मौत के मामले में तीन मदों में मुआवजा तय होगा। ये मदें हैं, संपत्ति का नुकसान, साथी (दाम्पत्य सुख, माता-पिता का सुख और भाई बहन के साथ का सुख) के अभाव का नुकसान तथा अंतिम संस्कार का खर्च।


जबकि प्यार-मोहब्बत के नुकसान का खर्च उक्त साथी में शामिल है, उसे अलग से मद का आधार नहीं बनाया जा सकता। हाईकोर्ट और मोटर ट्रिब्यूनल दाम्पत्य सुख और अन्य सुख के खो जाने की क्षति का मुआवजा दिलवा सकते हैं लेकिन इसके साथ प्रेम की क्षति का मुआवजा अलग से नहीं दिया जा सकता। कोर्ट  ने यह फैसला बीमा कंपनी (Insurance Company) और पीड़ित पक्ष दोनों की अपील पर दिया।

जिस मामले को संज्ञान में लेकर कोर्ट (Court) ने अपना फैसला सुनाया वो इस तरह है कि साल 1998 में एक महिला के पति की सड़क दुर्घटना (Road accident) में मृत्यु हो गई थी। पीड़िता का पति कतर (Qatar) में काम करता था और छुट्टी पर पंजाब (Punjab) के राजपुरा में आया हुआ था।

इस मामले में मोटर दावा न्यायाधिकरण ने 50 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया। लेकिन पत्नी ने हाईकोर्ट (High Court) में अपील की। हाईकोर्ट ने इस मुआवजे की राशि को बढ़ा दिया जिसके खिलाफ बीमा कंपनी सुप्रीम कोर्ट आई थी। इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।


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