World Hepatitis Day 2020: भारत में वायरल हेपेटाइटिस के मामलों में कमी लाना एक बड़ी चुनौती

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World Hepatitis Day 2019: दुनिया के 325 मिलियन लोग हेपेटाइटिस B और C से संक्रमित, 80% पीड़ितों में आज भी इलाज की कमी

World Hepatitis Day 2020: वायरल हेपेटाइटिस न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में चिंता का एक प्रमुख विषय बना हुआ है। हालांकि, दुनिया की आधी आबादी हेपेटाइटिस के वायरस की चपेट में है लेकिन इसके कारण हर जगह भिन्न हैं।

डब्ल्युएचओ द्वारा साझा किए गए हालिया आंकड़ों के अनुसार, 29 करोड़ से भी ज्यादा लोग हेपेटाइटिस की बीमारी से ग्रस्त हैं लेकिन उन्हें इसके बारे में कोई खबर नहीं है। जागरुकता में कमी के कारण लोग जांच को महत्व नहीं देते हैं, जिसके कारण ऐसे मरीज अपनी जान गंवा बैठते हैं।


विश्व हेपेटाइटिस दिवस 2020 के अवसर पर, जिसका थीम ‘फाइंड द मिसिंग मिलियंस’ है, हम लोगों को बीमारी के बारे में जागरुक करने का उद्देश्य रखते हैं। हालांकि, थोड़ी सावधानी बरतने से हम इस घातक बीमारी से बच सकते हैं। इसमें हेपेटाइटिस का टीका लगवाना, संक्रमित सुई या सिरिंज का इस्तेमाल न करना, संक्रमित व्यक्ति के साथ संभोग के दौरान गर्भनिरोधक का इस्तेमाल, इस्तेमाल की गई शेविंग ब्लेड या रेज़र का इस्तेमाल न करना आदि शामिल है।

हेपेटाइटिस ई (एचईवी), भारत में हेपेटाइटिस की महामारी का प्रमुख कारण है। भारत में गंभीर हेपेटाइटिस के लगभग 15-30% मामले एचबीवी के कारण है। एचसीवी पीलिया से संबंधित हेपेटाइटिस का असामान्य कारण है लेकिन अधिकांश पोस्ट-ट्रांसफ्युज़न का कारण बनता है। राष्ट्रीय केंद्र के एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम द्वारा 2015 से 2019 तक वायरल हेपेटाइटिस के कुल 315 मामले दर्द किए गए थे, जिसमें से 99 मामले अकेले 2019 के शामिल थे।

वायरल हेपेटाइटिस में मरीज को बुखार, कमजोरी, उल्टी, भूख न लगना, वजन कम होना, अस्वस्थ महसूस करना आदि समस्याएं होती हैं। इसके बाद पीलिया की समस्या होती है जहां पीलिया होते ही बुखार उतर जाता है। हालांकि, हेपेटाइटिस एक आम बीमारी है, फिर भी अधिकतर लोग इसमें और पीलिया में कोई फर्क नहीं समझते हैं। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि पीलिया और हेपेटाइटिस एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। पीलिया लिवर को प्रभावित करने वाली बीमारी का संकते देता है, जबकी हेपेटाइटिस खुद एक बीमारी है जो लिवर में सूजन की समस्या को दर्शाता है।


बीमारी का निदान लिवर फंक्शन टेस्ट के जरिए किया जाता है, जो हाइपरबिलिरुबिनेमिया के मिलाव और ट्रांसएमिनस में 3-5 गुना वृद्धि को दर्शाता है। वायरल हेपेटाइटिस के अधिकांश मरीज 4-6 हफ्तों में ठीक हो जाते हैं। लेकिन कुछ लोगों में यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है, जिसे एक्यूट लिवर फेलियर कहते हैं और इसमें जान का खतरा ज्यादा होता है।

शिक्षा रोकथाम की कुंजी है
वायरल हेपेटाइटिस को हमारे देश से खत्म करना एक चुनौती भरा काम है। लोगों को हेपेटाइटिस, समय पर जांच, इलाज और उपलब्ध इलाजों के बारे में शिक्षित और जागरुक करना बेहद जरूरी है। जनता और स्वास्थ्य कर्मियों को शिक्षित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी, जिससे वायरल हेपेटाइटिस के मरीजों की समय पर पहचान के साथ आसानी से उनका इलाज किया जा सके।

इस बात का खास ख्याल रखने कि आवश्यकता है कि इंजेक्शन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सुइयां और सीरिंज बिल्कुल साफ और संक्रमण रहित हों। देश भर के सभी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को टीका लगाना चाहिए क्योंकि उन्हें रक्त जनित संक्रमण आसानी से हो सकता है। एचएवी और एचईवी की रोकथाम के लिए बेहतर स्वच्छता और पीने के लिए साफ पानी उपलब्ध कराने जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय जरूरी हैं।

ब्लड बैंक में स्वैच्छित रक्तदान को प्रोत्साहित करने से रक्तदान के लिए सुरक्षित खून मिलेगा। लेकिन स्क्रीनिंग टूल के रूप में, न्यूक्लिएक एसिड टेस्टिंग (एनएटी) एचआईवी, एचबीवी और एचसीवी के संक्रमण की पहचान सीरोलॉजिकल टेस्ट से बहुत पहले कर देता है। हमारे देश में बदलती एपिडेमियोलॉजी के कारण एचएवी टीकाकरण को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है। जब हमारे देश में एचएवी टीकाकरण उपलब्ध होगा तो इसकी मदद से गर्भावस्था की दूसरी/तीसरी तिमाही में वायरल हेपेटाइटिस से ग्रस्त होने वाली महिलाओं की मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। वैश्विक एचबीवी प्रसार पर, पहले ही शिशु के टीकाकरण का विस्तार और प्रदर्शन किया जा चुका है। भारत में वायरल हेपेटाइटिस की रोकथाम के लिए बहुत से काम अधूरे पड़े हैं और भारत सरकार देश को इस बीमारी से मुक्त करने के लिए पहले ही कई कार्यक्रमों की स्थापना कर चुकी है।

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