यूएन रोहिंग्या प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने वाले देश निभा सकते थे बेहतर भूमिका

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ढाका, 4 जनवरी (आईएएनएस)। बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमन ने कहा है कि रूस और चीन सहित जिन देशों ने हाल ही में 75वें संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में पारित रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति पर अपनाए गए एक प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया है, वे अपनी बेहतर भूमिका निभा सकते थे।

31 दिसंबर, 2020 को अपनाए गए इस प्रस्ताव के खिलाफ नौ देश रहे, 130 राष्ट्रों ने इसका समर्थन किया, जबकि 25 देश अनुपस्थित रहे।


चीन और रूस के अलावा बेलारूस, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, फिलीपींस, वियतनाम और जिम्बाब्वे ने इस प्रस्ताव पर अपना विरोध जताया है।

मोमन ने रविवार को अपने कार्यालय में संवाददाताओं से बात करते हुए कहा, प्रस्ताव के खिलाफ जिन देशों ने मतदान किया है, वे एक बेहतर भूमिका निभा सकते थे। हम उनसे नाराज नहीं हैं। यह रणनीतिक फैसला है और हम रिजल्ट से खुश हैं।

उन्होंने आगे कहा, हमें इस बात की खुशी है कि फैसले के ऐलान से पहले उन्होंने हमसे बात की।


दरअसल, म्यांमार और बांग्लादेश के साथ त्रिपक्षीय चर्चा के माध्यम से चीन समाधान ढूंढ़ने की दिशा में प्रयत्नशील है।

मोमेन ने कहा है कि रोहिंग्याओं का मुद्दा एक बड़ी चुनौती बना हुई है। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा कि इस साल प्रत्यावर्तन की प्रक्रिया की फिर से शुरुआत को लेकर हम आशावादी हैं।

विदेश मंत्री ने इस बात की भी जानकारी दी कि 1 जनवरी को म्यांमार के विदेश मंत्रालय में अपने समकक्षों को पत्र लिखकर उन्होंने समग्र मुद्दे पर विचार-विमर्श किया है।

उन्होंने आगे बताया कि म्यांमार एक मित्र देश है और बांग्लादेश इस समस्या के समाधान के लिए अन्य उपायों का पता लगाने से पहले द्विपक्षीय स्तर पर चर्चा करने की कोशिश कर रहा है।

एक सवाल के जवाब में, विदेश मंत्री ने कहा कि चीन म्यांमार और बांग्लादेश के साथ एक त्रिपक्षीय चर्चा के माध्यम से इस मुद्दे पर समाधान ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा है।

मोमेन ने कहा, हम तैयार हैं। चर्चा के अगले राउंड के लिए एक तारीख के निर्धारित होने के बाद हम बैठेंगे।

इधर जापान के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, जापान ने भी हमें मदद देने का आश्वासन दिया है। अब इसकी रूपरेखा कैसे तैयार की जानी है, इस पर अभी भी हमने कुछ नहीं सोचा है।

बांग्लादेश का मानना है कि अगर 11 लाख रोहिंग्या शरणार्थियों पर ध्यान नहीं दिया गया और उन्हें अपनी मातृभूमि में लौटने का अवसर नहीं प्रदान किया गया, तो वे सभी क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधित जोखिम में पड़ जाएंगे।

मोमेन के मुताबिक, शांति के बिना विकास संभव नहीं है।

इससे पहले, प्रत्यावर्तन के दो प्रयास निर्थक हो गए क्योंकि एक तो म्यांमार रोहिंग्याओं के बीच विश्वास की कमी को दूर करने में विफल रहा और साथ ही इनकी वापसी के लिए राखाइन प्रांत का माहौल भी अनुकूल नहीं था।

बांग्लादेश और म्यांमार ने 23 नवंबर, 2017 को प्रत्यावर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

16 जनवरी, 2018 को दोनों देशों ने मिलकर फिजिकल अरेंजमेंट संबंधी एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया, जिसके तहत रोहिंग्या मुसलमानों को अपनी मातृभूमि में लौटने के मद्देनजर सुविधा मुहैया कराना था।

–आईएएनएस

एएसएन/एसजीके

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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