संयुक्त राष्ट्र, 8 अगस्त (आईएएनएस)| सदियों पुरानी भाषाओं के ‘ऐतिहासिक विध्वंस’ को रोकने का आवाह्न करते हुए संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने कहा कि आज बोली जाने वाली 7000 स्थानीय भाषाओं में प्रति 10 में से चार भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, शुक्रवार को ‘इंटरनेशनल डे ऑफ वल्र्डस इंडिजेनियस पीपल्स’ मनाने की अपील करते हुए संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों ने बुधवार को कहा कि देशी वक्ताओं के खिलाफ चल रहे भेदभाव के पीछे ‘राष्ट्र-निर्माण’ सबसे बड़ी वजह रही।
विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा, “ऐसी नीतियां समय के साथ-साथ किसी संस्कृति और यहां तक कि लोगों को कमजोर हो सकती हैं और नष्ट भी कर सकती हैं।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि वहीं स्वदेशी भाषाओं ने अभिव्यक्ति और विवेक की स्वतंत्रता दी है जो लोगों की गरिमा, संस्कृति और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं।
विशेषज्ञों और ‘स्पेशल रेपोर्टर’ के नाम से प्रसिद्ध संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त जांचकर्ताओं ने दशकों से स्थानीय भाषाओं का समर्थन करने वाले राज्यों की प्रशंसा की। विशेषज्ञों के दल में मानवाधिकार परिषद (एचआरसी) और आर्थिक तथा सामाजिक परिषद (इकोसोक) को रिपोर्ट करने वाले पैनल हैं।
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