उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के ललितपुर (Lalitpur) से एक ऐसा मामला सामने आया है जो देश की न्याय व्यवस्था को भी कठघरे में खड़ा कर देता है। एक शख्स जो कि रेप के आरोप में पिछले 20 सालों से जेल में था, उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है।
कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि अभियुक्त पिछले 20 सालों से जेल में है जबकि कानूनन इसे 14 साल बाद रिहा कर दिया जाना चाहिए था। कोर्ट ने जेल को फटकार लगाई और पूछा है कि 14 साल में रिहा कर देने संबंधी कानून का पालन क्यों नहीं किया गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे कैदियों को 14 साल बाद रिहा करने की शक्तियों का इस्तेमाल न करने के लिए राज्य सरकार पर तल्ख टिप्पणी की है।
न्यायमूर्ति डा. के जे ठाकर तथा न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने ललितपुर के एक व्यक्ति की जेल अपील को स्वीकार करते हुए दिया। बता दें कि विष्णु जब 16 साल का था तो साल 2000 में अनुसूचित जाति की एक महिला ने उस पर रेप का आरोप लगाया था। सेशन कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोप में विष्णु को 10 साल और एससीएसटी एक्ट के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
अब इलाहाबाद कोर्ट ने पाया है कि मामले में रेप के कोई सबूत ही नहीं हैं। जब रेप होने का दावा किया गया तब पीड़िता गर्भवती थी और उसके शरीर पर रेप की पुष्टि करने के लिए कोई सबूत नहीं पाया गया था। ये FIR भी पति और ससुर ने घटना के तीन दिन बाद लिखाई थी। पीड़िता ने इसे अपने बयान में भी स्वीकार किया है।
कोर्ट ने कहा सत्र न्यायालय ने सबूतों पर विचार किए बगैर गलत फैसला दिया। इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 व 433 में राज्य व केंद्र सरकार को शक्ति दी गई है कि वह 10 से 14 साल की सजा भुगतने के बाद आरोपी की रिहाई पर विचार करे। राज्यपाल को अनुच्छेद 161 में 14 साल सजा भुगतने के बाद रिहा करने का अधिकार है। 20 साल जेल में बिता चुका है और ये समझ से परे है कि सरकार ने उसे रिहा क्यों नहीं किया।
केस की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा काट रहे बंदियों की 14 साल की सजा पूरी करने के बाद भी रिहाई न होने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। कोर्ट ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिना किसी गंभीर अपराध के कैदी 20 साल से जेल में बंद है और राज्य सरकार रिहाई के लिए बने कानून का पालन नहीं कर रही है।
कोर्ट ने विधि सचिव से कहा है कि वह सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी करें कि वे अपने जिलों की जेलों में दस से 14 साल तक की सजा काट चुके बंदियों की रिहाई की संस्तुति सरकार को भेजें।
This post was last modified on February 23, 2021 10:30 AM
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