62 प्रतिशत भारतीय तिब्बत में मानवाधिकार मुद्दे पर चीन के साथ जोखिम को तैयार : सर्वेक्षण

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नई दिल्ली, 20 जनवरी (आईएएनएस)। भारत के लगभग 62 प्रतिशत लोग तिब्बत में मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों का जोखिम उठाने को तैयार हैं, क्योंकि पिछले एक साल में बड़ी संख्या में भारतीयों की धारणा चीन विरोधी हो गई है।

आईएएनएस-सीवोटर सर्वेक्षण देश भर के सभी 543 संसदीय क्षेत्रों में पिछले साल 25 दिसंबर को 3,000 लोगों पर किया गया। 62.2 प्रतिशत भारतीय तिब्बत में मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के साथ संबंध बिगड़ने का खतरा मोल लेने को तैयार हैं।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि 19 फीसदी लोग तिब्बत में मानवाधिकारों के संरक्षण का जोखिम उठाने के बावजूद चीन के साथ संबंध सुधारना चाहते हैं।

इस बीच, 11 फीसदी लोगों ने कहा कि वे इस मुद्दे पर कुछ नहीं कह सकते।

सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 63.8 फीसदी पुरुष और 60.5 फीसदी महिलाएं तिब्बत में मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के साथ बिगड़ते संबंधों के जोखिम के पक्ष में हैं, जबकि 19.9 फीसदी पुरुष और 18.2 फीसदी महिलाएं चीन के साथ संबंध सुधारना चाहते हैं, भले ही इससे तिब्बत में मानवाधिकारों के संरक्षण का जोखिम है।

सर्वेक्षण के अनुसार, 9.2 प्रतिशत पुरुष और 12.7 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे टिप्पणी नहीं कर सकते हैं या वे इस बारे में नहीं जानते हैं।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि पूर्वोत्तर में 76.9 प्रतिशत, उसके बाद पश्चिम में 69.2 प्रतिशत और पूर्वी भारत में 68.3 प्रतिशत लोग तिब्बत में मानवाधिकारों पर चीन के साथ बिगड़ते संबंधों का खतरा मोल लेने के लिए तैयार हैं।

सर्वेक्षण में आगे कहा गया है कि तिब्बत में मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के साथ बिगड़ते संबंधों के जोखिम के पक्ष में दक्षिण भारत में केवल 66.3 प्रतिशत लोग हैं।

इसने यह भी कहा कि पूर्व में 18.3 प्रतिशत लोग, उत्तर में 16.7 प्रतिशत लोग, दक्षिण में 25.6 प्रतिशत लोग, पश्चिम में 16 प्रतिशत लोग और पूर्वोत्तर में 23.1 प्रतिशत लोग चीन के साथ संबंध सुधारना चाहते हैं, भले ही तिब्बत में मानवधिकार के सुरक्षा का जोखिम हो।

जबकि, पूर्व में 8.1 फीसदी, उत्तर में 14.3 फीसदी, दक्षिण में 10.9 फीसदी, पश्चिम में 10 फीसदी और पूर्वोत्तर में शून्य फीसदी ने कोई टिप्पणी नहीं की।

सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि लगभग दो-तिहाई भारतीय चीन के साथ बिगड़ते रिश्ते की कीमत पर भी तिब्बत के मुद्दे का समर्थन करना चाहते हैं।

सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि तिब्बत में मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों को खतरा उठाने वालों में 25-34 साल के बीच के लोगों सबसे आगे आए, जिसके बाद 35-44 वर्ष की आयु के 65.6 प्रतिशत लोग इसमें शामिल हुए।

इस बीच, सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि 18-24 वर्ष के आयु वर्ग के बीच के 21.1 प्रतिशत लोग, इसके बाद 45 से 54 वर्ष के बीच 20.3 प्रतिशत लोग चीन के साथ संबंधों में सुधार करना चाहते हैं, भले ही इससे तिब्बत में मानवाधिकारों के संरक्षण का जोखिम हो।

सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि भारतीय मध्यम शिक्षा समूह के 70 प्रतिशत और उच्च शिक्षा के 68.7 प्रतिशत लोग तिब्बत में मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के साथ बिगड़ते संबंधों के जोखिम के पक्ष में हैं, जबकि निम्न शिक्षा वाले 22 प्रतिशत लोग चीन के साथ संबंधों में सुधार करना चाहते हैं, भले ही इससे तिब्बत में मानवाधिकारों की सुरक्षा को जोखिम हो।

इसने आगे कहा कि मध्यम आय वर्ग के 66.3 प्रतिशत लोग और उच्च आय वाले 64.9 प्रतिशत लोग तिब्बत में मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के साथ बिगड़ते संबंधों के जोखिम के पक्ष में हैं, जबकि उच्च आय वर्ग के 24.3 प्रतिशत लोग और निम्न आय वर्ग के 20 प्रतिशत लोग तिब्बत में मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए खतरा होने पर भी चीन के साथ संबंध सुधारना चाहते हैं।

सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि ग्रामीण भारत में 59.7 प्रतिशत लोग और शहरी भारत में 58.2 प्रतिशत लोग तिब्बत में मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों के पक्ष में हैं, जबकि ग्रामीण भारत में 21 प्रतिशत और शहरी भारत में 14.6 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो चीन के साथ संबंधों में सुधार करना चाहते हैं, भले ही वह तिब्बत में मानवाधिकारों की सुरक्षा का जोखिम हो।

–आईएएनएस

आरएचए/एएनएम

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