नई दिल्ली, 14 जुलाई (आईएएनएस)| सीमा कोहली की कलाकारी को देखना समृद्ध संकेतों और आध्यात्मिकता के साथ परिभाषित अजंता की गुफाओं में चित्रित जातक कथाओं के देखने के जैसा है।
बेल्जियम के म्यूजियम ऑफ सेक्रेड आर्ट (एमओएसए) में छह महीने की अवधि वाले एक लंबे शो में उनकी 200 से अधिक कलाकृतियों का प्रदर्शन अभी जारी है।
यूरोपीय देश में इस व्यापक प्रदर्शन का अनावरण 15 जून से किया गया और इसका शीर्षक है ‘द सलेस्चल रेवलेशंस’ यानि कि स्वर्गीय आविर्भाव। इस प्रदर्शनी में कोहली द्वारा रचित कलाकृतियों के संगम को देखा जा सकता है जिस पर उन्होंने दिल्ली के राजिंदर नगर इलाके में स्थित अपने स्टूडियो में काम किया है और पिछले सात वर्षो में म्यूजियम द्वारा उनके इन कलाकृतियों को संग्रह किया गया है।
अपने कैनवस में गोल्ड और सिल्वर लिव्स के प्रयोग के लिए मशहूर सीमा की इन चित्रकारियों में आकाशीय प्राणी, खगोलीय रूपांकनों के साथ महिलाओं की प्रतिकृति, प्रकृति जैसी कई चीजों का वर्णन है।
अपने इस काम की शुरुआत में बात करते हुए 1960 में पैदा हुईं सीमा ने कहा कि बचपन से ही वह आध्यात्म के एक सुखद वातावरण में रही हैं।
2008 में ललित कला अकादमी पुरस्कार प्राप्त इस कलाकार ने यहां आईएएनएस को बताया, “आध्यात्म से दूर रहना संभव नहीं था। हर एक चीज पर सवाल उठाया गया, यहां तक कि मौत को लेकर भी। मेरी मां की दादी का निधन हो गया और हम तब 2-3 साल के थे हमें भी श्मशान ले जाया गया। हमें उस दिन से बताया गया कि ‘चाइजी’ अब यहां नहीं है, वह चली गई हैं। यह महज उनका शरीर है जिसका अंतिम संस्कार हम करने जा रहे हैं। यह सब तार्किक रूप से समझाया गया था।”
उन्होंने आगे यह भी कहा, “जब मैं 18 साल की थी, तब मैंने सोचा कि आत्मत्याग एक मार्ग है। मैं सबकुछ छोड़कर चली जाना चाहती थी। मैं हरिद्वार में अपने पारिवारिक गुरु के पास गई, लेकिन मेरे पिता मुझे वापस लेकर आए।”
उन्होंने कहा, “जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, आप समझने लगते हैं आप जो कुछ भी हैं उससे आप बदलाव लाते हैं। यदि मै बिल्कुल साधारण तरीके से आध्यात्म के बारे में पूछताछ करती तो मैं काफी कुछ खो देती। मैं आत्मत्याग के रूप में जितना कर पाने में समर्थ होती उससे कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से मैंने अपनी कलात्मक यात्रा को जारी रखा।”
विश्व मंच पर भारत की चर्चित समकालीन कलाकारों में से एक कोहली की इन कलाकृतियों में और भी कई सारी चीजें हैं, वह चित्रकारी करती हैं, मूर्तियां बनाती हैं, तस्वीरें भी बनाती हैं जिनमें आध्यात्म को धर्म से बढ़कर देखा जा सकता है।
उनका कहना है कि हर एक चीज की शुरुआत विश्वास से होती है और इसके बाद वह धर्म से जुड़ती है। दूसरे धर्मो और उनके विश्वासों को लेकर भी उनके विचार खुले हैं। वह आध्यात्म को धर्म से बढ़कर देखती हैं।
उनका कहना है, “उनके परिवार की वजह से ही दूसरे धर्मो के बारे में समझना उनके लिए आसान रहा।”
इस साल अक्टूबर में उनकी इन कलाकृतियों की प्रदर्शनी दिल्ली में आर्ट इवेंट जेरुसलम बिएनेल के इंडिया पवेलियन में होगी।
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