उन्नाव, 23 जुलाई (आईएएनएस)| देश के लिए जान की बाजी लगाने वाले आजादी के महानायक चंद्रशेखर आजाद का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव में हुआ था।
आजादी दिलाने वाले इस वीर सपूत की धरती इन दिनों सरकार की कृपादृष्टि की बाट जोह रही है।
बहुत सरकारी आईं और चली गईं, पर आज तक इस गांव में आजाद का संग्रहलाय या उनकी स्मृति को संजोने लायक कोई चीज नहीं बन सकी है।
इस गांव के लोगों का कहना है कि सरकार उनकी याद स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और उनके जन्मदिवस पर ही आती है। उसके बाद आजाद को याद कर सिर्फ उनके परिजन रोते रहते हैं। यह उपेक्षा आजाद की आत्मा को भी कटोचती होगी।
इस पुण्यस्थली पर रहने वाले लोगों ने बताया कि सिर्फ खास अवसरों पर ही बड़े नेता, मंत्री और प्रशासनिक अधिकारी यहां आते हैं, वरना कोई झांकने तक नहीं आता।
इस इलाके के जानकार और शहीद स्मारक ट्रस्ट के मंत्री राजन शुक्ला ने बताया कि बदरका गांव के साधारण परिवार में मां जगरानी देवी की कोख से 7 जनवरी, 1906 को जन्मे अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। यहां पर चंद्रशेखर आजाद की माता जगरानी देवी लगभग 14 साल रहीं। इसके बाद संपूर्णानंद मुख्यमंत्री बनने के बाद उनको मध्यप्रदेश ले गए। जब तक यहां रहीं, उन्होंने हर साल चंद्रशेखर जी की जयंती और पुण्यतिथि मनाती रही हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि आजाद मंदिर, जिसमें चंद्रशेखर आजाद की मां की मूर्ति लगी हुई है, अब दीवारों का प्लास्टर अंदर लगी ईंट दिखा रहा है।
राजन शुक्ला का कहना है कि प्रधानमंत्री, मंत्री और नेतागण यहां आए, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। शुक्ला ने आजाद की जन्मस्थली को किसी के द्वारा गोद लिए जाने की मांग उठाई, ताकियह संवर जाए।
शहीद स्मारक ट्रस्ट के मंत्री राजेश शुक्ला ने बताया कि जनपद के आला अधिकारी तो आजाद के नाम पर बने ट्रस्ट से भी कोई मतलब नहीं रखते हैं। चंद्रशेखर आजाद की मूर्ति का कोई ध्यान रखने वाला नहीं है। इसकी साफ-सफाई और पूजा-पाठ में जो खर्च आता है, उसको कोई देखने वाला नहीं है। स्थानीय लोगों की मदद से ही यहां पर कभी कोई कार्यक्रम हो पाता है।
एक अन्य ग्रामीण श्रीकृष्ण कुशवाहा ने बताया कि मुलायम सरकार में इसे पर्यटन स्थल घोषित करने की बात हुई थी। उस समय के पर्यटन मंत्री शिवपाल यादव ने यहां पर शूटिंग रेंज भी बनवाने को कहा था। 14 लाख रुपये की घोषणा भी हुई थी। लेकिन वह आज तक किन कागजों में दफन हो गए, पता नहीं चल पा रहा है। यहां के लोग आजाद जी के नाम पर एक स्कूल की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
उन्नाव के जिलाधिकारी देवेंद्र पांडेय ने कहा, “मैंने खुद जाकर बदरका के हालात को जाना है। वहां पर रंगाई-पुताई का कार्य कराया है। उसे पर्यटन के रूप में अगर विकसित करने के फंड आया है तो उसे दिखवाया जाएगा।”
ज्ञात हो कि क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली और जन्मदिन को लेकर बहुत विवाद भी है। कुछ लोग उनका जन्म स्थान मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में भाबरा गांव में बताते हैं। प्रचलित तारीख है 23 जुलाई, 1906 लेकिन 2006 में प्रदेश सरकार की एक कमेटी ने कुछ और ही दावा किया।
दरअसल, साल 2006 में एक सांसद ने उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को पत्र लिखकर कहा था कि आजाद भले ही झाबुआ में जन्मे, लेकिन चूंकि उनकी शहादत उप्र में हुई इसलिए प्रदेश सरकार को उनकी जन्म शताब्दी मनानी चाहिए।
इधर उन्नाव के बदरका गांव के लोग उनके जन्मदिन पर मेला लगाते आ रहे हैं। और सरकार के मंत्री तक उसमें आते रहे, इसलिए इस पत्र के बाद यूपी सरकार ने एक कमेटी बना दी, जिसका काम था कि वो इस बात के सबूत जुटाए कि आजाद का जन्म दरअसल उन्नाव में ही हुआ था।
कमेटी का निष्कर्ष ये था कि दरअसल आजाद का जन्म उन्नाव में हुआ था और 23 जुलाई नहीं, 7 जनवरी 1906 को हुआ था। कमेटी की रिपोर्ट के बारे में खबर लखनऊ अंक में 21 जून, 2006 को प्रकाशित भी हुई थी। गांव वालों का दावा है कि आजाद की माता जी 14 साल यहां रहे। उनका ननिहाल भी बदरका है। इसमें विवाद की कोई बात ही नहीं है।
आजादी की लड़ाई में धन की समस्या आने पर इन्होंने अपने साथियों के साथ 9 अगस्त 1925 को काकोरी स्टेशन पर रेल का खजाना लूट असलहों का प्रबंध किया। काकोरी कांड के बाद आजाद अग्रेजों के आंख की किरकिरी बने रहे। जीते जी कभी पुलिस के हाथ नही लगे। आजादी की लड़ाई में 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में इनको अंग्रेज सिपाहियों ने घेर लिया, जिनसे मोर्चाबंदी करते हुए जब इनके पिस्तौल में एक गोली बची तो अपनी कनपटी में लगा ‘भारत माता की जय’ बोलते हुए शहीद हो गए।
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