आम बजट में अनाथ बच्चों का भी रहे ध्यान

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 नई दिल्ली, 24 जनवरी (आईएएनएस)| सामाजिक विकास के क्षेत्र में कार्यरत सभी लोगों को आगामी केंद्रीय बजट (2019-20) से कई उम्मीदें हैं।

  हम चाहते हंै कि भारत के जो बच्चे माता-पिता के प्यार और देखभाल से वंचित हैं, उनके लिए देखभाल के विशेष कार्यक्रम को बढ़ावा दिया जाए।

माता-पिता की गरीबी, मृत्यु, माता या पिता में से किसी एक के छोड़ देने, चाहे जिस वजह से बच्चे माता-पिता की देखभाल से वंचित रह गए, वे अधिक खतरों के साये में जी रहे हैं। लिहाजा, उनकी सुरक्षा पर अधिक ध्यान देना जरूरी है।

आज भारत में 2 करोड़ से अधिक ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें माता-पिता की पूरी देखभाल नहीं मिली, क्योंकि उनके माता-पिता या दोनों मंे एक नहीं हैं। वर्ष 2021 तक यह आंकड़ा तेजी से बढ़कर 2.4 करोड़ हो सकता है। सामाजिक विकास के क्षेत्र में सक्रिय होने के नाते हम बाल कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने में सरकार से बेहतर बजट सहयोग की अपेक्षा के साथ नियंत्रण एवं संतुलन के सभी प्रावधान चाहते हैं और यह भी उम्मीद करते हैं कि कार्यक्रम की पहुंच इतनी व्यापक हो कि भारत के उन बच्चों को इसका लाभ मिले, जिन्हें माता-पिता की देखभाल नहीं मिली।

हाल में केंद्र सरकार द्वारा बाल देखभाल संस्थानों (सीसीआई) के पूरे देश में हुए सर्वे से बहुत चिंताजनक तथ्य सामने आए। जैसे कि बच्चों के बचाव एवं सुरक्षा के उपायों में बहुत कमी, इन संस्थानों की निगरानी व्यवस्था का अधूरापन और परिवार से बिछुड़े बच्चों को माता-पिता से दुबारा मिलाने के प्रयासों में कमी।

इन समस्याओं को दूर करने के लिए जरूरी है कि माता-पिता की देखभाल से वंचित बच्चों को गैर-सांस्थानिक परिवेश में पलने-बढ़ने का अवसर दिया जाए। ऐसे बच्चों के लिए परिवार की तरह देखभाल (एफएलसी) का मॉडल पेश किया जाए। यह उन बच्चों के लिए देखभाल का बेहतर विकल्प होगा जो माता-पिता के साथ नहीं रह सकते। इससे उन्हें पलने-बढ़ने के लिए घर का प्यार भरा माहौल मिलेगा और वे अपने सभी अधिकारों का उपयोग कर पाएंगे।

हमें यह अफसोस है कि 2018-19 के केंद्रीय बजट में बच्चों के हिस्से कुल वित्तीय संसाधनों की केवल 3.24 प्रतिशत राशि आई जो 2017-18 के बजट से 0.08 प्रतिशत कम थी और 2014-15 की तुलना में तो 4.52 प्रतिशत की बड़ी गिरावट थी। इसलिए राष्ट्रीय बाल कार्य योजना (एनपीएसी) की अनुशंसाओं को लागू करने के लिए 2019-20 के बजट में कम से कम 5 प्रतिशत की वृद्धि चाहिए। इससे सीसीआई की बेहतर व्यवस्था होगी और बच्चों की देखभाल की गुणवत्ता भी सुधरेगी।

आज का भारत युवाओं का देश है। इसकी आबादी का लगभग 40 प्रतिशत (2011 की जनगणना) बच्चे हैं। हमारे नीति निर्माता भी बच्चों को सबसे महत्वपूर्ण संपदा मानते हैं। लिहाजा, बच्चों के जीवित रहने, उनकी अच्छी सेहत, विकास के अधिक अवसर, सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन के लिए राष्ट्र के निवेश में सबसे अधिक महत्व बच्चों को देना होगा। बच्चों के लिए हमारे आज के प्रयास से हमारे देश की तरक्की की ऱफ्तार, गुणवत्ता और चरित्र निर्धारित होगा।

उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए और मां-बाप की देखभाल से वंचित बच्चों को परिवार का माहौल देने के लिए भारत में पर्याप्त संख्या में विशेषज्ञ कार्मिकों को बहाल करना और प्रशिक्षण देना बहुत जरूरी है। यह भी देखना होगा कि बच्चों के लिए किए जा रहे कार्यो की विशालता के मद्देनजर बड़ी संख्या में कार्मिक तैनात किए जाएं। यह भी जरूरी है कि सभी कार्मिक सुयोग्य प्रोफेशनल हों। इसलिए सरकार से हमारा निवेदन है कि सीसीआई के हित में कौशल विकास के विशेष पैकेज या प्रोग्राम के लिए इस बजट में विशेष प्रावधान करे।

इसके अतिरिक्त माता-पिता की देखभाल से वंचित बच्चों के विकास के लिए अधिक से अधिक लोगों को योगदान के लिए प्रोत्साहित करते हुए व्यक्तिगत स्तर पर आयकर में उपलब्ध छूट के ऊपर और उसके अतिरिक्त 25 प्रतिशत की छूट और सीएसआर के लिए अतिरिक्त लाभ दिए जाएं। इससे आने वाले समय में देश को इसकी जनसंख्या का बड़ा लाभ होगा।

(लेखिका अनुजा बंसल एसओएस भारत बाल ग्राम की महासचिव हैं)

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