इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोहत्या कानून पर जताई चिंता, कहा-‘यूपी में निर्दोष लोगों के खिलाफ हो रहा है इसका दुरुपयोग’

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को गोहत्या निरोधक कानून 1955 के प्रावधानों के गलत इस्तेमाल को लेकर चिंता जाहिर की है। हाई कोर्ट ने कहा कि इस कानून का दुरुपयोग कर निर्दोष लोगों को फंसाया जा रहा है। अक्सर फॉरेंसिक सबूत बिना ही किसी भी मीट को गोमांस बता दिया जाता है।

कथित गोहत्या और बीफ बिक्री मामले में आरोपी रहमुद्दीन की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने अपने आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून 1955 के प्रावधानों का गलत इस्तेमाल कर उन्हें जेल भेजा जा रहा है।

हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया है, ‘निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ गोहत्या निरोधक कानून का गलत प्रयोग किया जा रहा है। जब भी कोई मांस बरामद किया जाता है, तो इसे सामान्य रूप से गाय के मांस (गोमांस) के रूप में दिखाया जाता है, और वो भी बिना इसकी जांच या फॉरेंसिक विश्लेषण किए बगैर ही।

इस तरह के अधिकांश मामलों में, मांस को विश्लेषण के लिए नहीं भेजा जाता है। कई व्यक्तियों को ऐसे अपराध के लिए जेल में रखा गया है जो शायद कभी किए ही नहीं गए थे और जो कि 7 साल तक की अधिकतम सजा होने के चलते प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रायल किए जाते हैं।’

हाई कोर्ट ने 19 अक्टूबर के आदेश में कहा था कि वैसी गायें जो अब बूढ़ी हो गई हैं या फिर दूध नहीं देती, उनका भी देखभाल की जरूरत है, क्योंकि गाय के मालिक उन्हें इसी अवस्था में छोड़ देते हैं। इसलिए अगर सरकार गो रक्षा के लिए गोहत्या निरोधक कानून लाती है तो उसे इस बारे में भी सोचना चाहिए।

हाई कोर्ट ने कहा कि गोशालाएं दूध ना देने वाली गायों और बूढ़ी गायों को स्वीकार नहीं करती और  उन्हें सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ देती है। दूध देने वाली गायों को भी उनका मालिक दूध निकालने के बाद सड़कों पर कचरा, पॉलिथीन आदि खाने के लिए छोड़ देता है।

सड़क पर गायों और मवेशियों से वहां से गुजरने वालों के लिए भी खतरा होता है। जिस वजह से ऐसे हादसों में मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी की रिपोर्टें भी आती हैं। चारागाह अब कई दिखाई नहीं देते और ऐसे में ये जानवर यहां-वहां भटकते हैं और फिर फसलें नष्ट करते हैं।

कोर्ट ने कहा कि गाय चाहे सड़कों पर दिखें या फिर खेतों में, उनके परित्याग करने से या मालिकों द्वारा छोड़ दिए जाने से समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अगर उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून को उसकी भावना के तहत लागू करना चाहती है तो उन्हें गाय आश्रय में या मालिकों के साथ रखने के लिए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।

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