Ambedkar Jayanti 2019: संविधान के मुख्य शिल्पकार थे डॉ. भीमराव अम्बेडकर, मरणोपरांत मिला भारत रत्न

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हिंदुस्तान के आधुनिक इतिहास में डॉ. भीमराव अंबेडकर उन प्रमुख नामों से एक हैं जिहोंने स्वतंत्र भारत की नींव रखी। अपना महत्वपूर्ण योगदान दे कर डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारत के इतिहास में स्वयं को हमेशा के लिए अमर कर दिया।

14 अप्रैल भारतीय इतिहास के हिसाब से एक महत्वपूर्ण दिन है। आज ही के दिन भारत के संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म हुआ था। भारत के साथ विश्व भर में अम्बेडकर जयंती का बहुत महत्त्व है। इस दिन को समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। भारत रत्न से सम्मानित डॉ. भीमराव आंबेडकर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘विश्व का प्रणेता’ कहकर सम्मानित किया गया।

14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश में जन्में डॉ भीमराव अंबेडकर को बाबा साहेब भी कहा जाता है। वह महार जाति से सम्बन्ध रखते थे जिसे अछूत माना जाता था। आर्थिक कमज़ोरी और सामाजिक भेदभाव के बावजूद विषम परिस्थियों में उन्होंने अपनी पढाई पूरी की। छुआछूत के बावजूद प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया और 1913 में बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से मासिक वजीफे की मदद से एमए के लिए अमेरिका चले गए और 1921 में लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स से एमए की डिग्री ली। 1925 में बाबा साहेब को बॉम्बे प्रेसिडेंसी समिति ने साइमन आयोग के लिए नियुक्त किया जिसका विरोध पूरे भारत में किया गया।

डॉ. अंबेडकर प्रारम्भ में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और वकील के तौर पर कार्य कर, राजनीती में सक्रिय हो गए। समाज में दलितों के साथ होने वाले भेदभाव को काफी करीब से देखने वाले बाबा साहेब ने आगे चल कर भारत के संविधान को लिखा और दलितों व पिछड़े वर्ग को उनके अधिकार दिलाये।

29 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र भारत के संविधान रचना के लिए संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद के लिए बाबा साहेब को नियुक्त किया गया। उन्होंने आजाद भारत में कानून मंत्री के तौर पर कार्य किया 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल मसौदे को रोके जाने के बाद अंबेडकर ने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया।

बौद्ध धर्म ग्रहण करने वाले अंबेडकर का मानना था कि, हिंदू धर्म के अंदर दलितों को कभी भी उनका अधिकार नहीं मिल सकता है। 6 दिसंबर, 1956 को संविधान के इस रचयिता और दलितों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले इस महान नेता ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया।

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