अप्रैल-जून तिमाही में और नीचे जा सकती है जीडीपी वृद्धि दर

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नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)| अधिकांश संकेतक कमजोर घरेलू मांग और सुस्त निवेश माहौल की ओर इशारा कर रहे हैं, लिहाजा भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में और घट सकती है। जीडीपी के आधिकारिक आंकड़े सामने आने के बाद अधिकांश शोध फर्मों ने पिछली तिमाही में सुस्त वृद्धि की भविष्यवाणी करते हुए वित्त वर्ष 2020 के लिए अपने अनुमान को संशोधित किया है।

वित्त वर्ष 2020 की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर घटकर 6.7 फीसदी (छह साल का निचला स्तर) पर आ गई। जबकि इससे पहले इसके 7.3 फीसदी पर रहने का अनुमान लगाया गया था। इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड-रा) ने 28 अगस्त को कहा था कि चालू वित्त वर्ष में मंद वृद्धि वाला लगातार तीसरा साल होगा। इसने इसके लिए मुख्य रूप से उपभोग की मांग में कमी, मॉनसून में देरी, विनिर्माण में गिरावट और निर्यात को प्रभावित करने वाले वैश्विक व्यापार में मंदी को जिम्मेदार ठहराया है।

फिच ग्रुप की फर्म ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “तिमाही आधार पर भी वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही में लगातार पांचवीं बार सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट दर्ज की गई है। इंड-रा को इसके 5.7 फीसदी तक रहने की उम्मीद है।”

इसके अलावा अन्य फर्मों ने भी समान रूप से अर्थव्यवस्था के नकारात्मक ²ष्टिकोण को प्रस्तुत किया है। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने वित्त वर्ष 2020 में वृद्धि दर 6.4 फीसदी रहने की बात कही है।

कुछ दिन पहले गोल्डमैन सैक की रिपोर्ट में कहा गया था कि मौजूदा मंदी जून 2019 तक 18 महीनों तक चली है। 2006 के बाद से यह सबसे लंबी अवधि है। इसने आगे कहा कि नीति निर्माताओं ने वर्तमान मंदी को कम करने के लिए काम किया है, मगर यह पहले की अपेक्षा कम कारगर साबित हुई हैं।

गौरतलब है कि सरकार ने 23 अगस्त को अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और निवेश बढ़ाने के उपायों की घोषणा की थी। इस दिशा में बैंकों की स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकारी बैंकों को अग्रिम भुगतान के तौर पर 70 हजार करोड़ रुपये दिए जाने की घोषणा भी की गई थी।

इंड-रा के प्रमुख अर्थशास्त्री सुनील कुमार सिन्हा का मानना है कि ये उपाय केवल मध्यम अवधि के लिए ही वृद्धि लाने में सहायक होंगे। उन्हें हालांकि उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर बढ़कर 7.4 फीसदी हो जाएगी।

कई सेक्टर में आई इस मंदी के दौर में सरकार के लिए जीडीपी में पर्याप्त बढ़ोतरी करना एक चुनौतीपूर्ण काम हो गया है।

 

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