“जिन्दगी बाद-ए-फना तुझको मिलेगी ‘हसरत’
तेरा जीना तेरे मरने की बदौलत होगा”
ये जोश भर देने वाला शेर है उस शायर का जिसने मात्र 26 साल की उम्र में देश के लिए हंसते हंसते अपनी जान दे दी थी। ये शेर है अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ का। 19 दिसम्बर, 1927 को जिस दिन काकोरी केस में अशफाक को फांसी होनी थी। उन्होंने जंजीरें खुलते ही आगे बढ़कर फांसी का फंदा चूम लिया और बोले, “मेरे हाथ लोगों की हत्याओं से जमे हुए नहीं हैं। मेरे खिलाफ जो भी आरोप लगाए गए हैं, झूठे हैं। अल्लाह ही अब मेरा फैसला करेगा।” इतना कहकर उन्होंने वो फांसी का फंदा अपने गले में डाल लिया।
अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ और माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम थीं। इन्हें बचपन से ही खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलाने में बहुत मजा आता था। अशफ़ाक़ुल्लाह अपने चार भाइयो में सबसे छोटे थे।
अशफ़ाक़ुल्लाह हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। शायद इसीलिए इनकी रामप्रसाद बिस्मिल से बहुत बनती थी। एक बार की बात है। शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में भीड़ गए। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुस्लिम मंदिर पर हमला करने की कोशिश में थे। इस बात की जानकारी होते हुए अशफ़ाक़ुल्लाह पिस्तौल निकाल कर गुस्से में कहा कि, ‘मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं।’
साल 1922 में असहयोग आन्दोलन अभियान शुरू हुआ था। इसी वक्त बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में मीटिंग रखी थी। अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से यहीं हुई थी। कई बार तो बिस्मिल और अश्फाक मुशायरों में साथ साथ शायरी भी करते थे।
जब महात्मा गांधी ने चौरी-चौरा कांड के बाद असयोग आंदोलन वापस ले लिया था तब हजारों की संख्या में युवा खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगे थे। अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ भी उन्हीं में से एक थे। उन्हें ये बात लगने लगी कि अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इसीलिए वो शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए। इसके बाद दोनों घनिष्ठ हो गए। काकोरी कांड में दोनों ने मिलकर ट्रेन लूटी थी।
एक बार दिल्ली के तत्कालीन एसपी तस्द्दुक हुसैन ने बिस्मिल और खां की दोस्ती में दरार लाने की कोशिश की थी। उन्होंने खां को बिस्मिल के खिलाफ भड़काना चाहा था। इसके जवाब में खां ने कहा था कि, खान साहब! पहली बात, मैं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को आपसे अच्छी तरह जानता हूं। और जैसा आप कह रहे हैं, वो वैसे आदमी नहीं हैं। दूसरी बात, अगर आप सही भी हों तो भी एक हिंदू होने के नाते वो ब्रिटिशों, जिनके आप नौकर हैं, उनसे बहुत अच्छे होंगे।
This post was last modified on October 22, 2020 2:10 PM
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