नई दिल्ली। असम के करीमगंज जिले के अहमद अली को रिक्शा खींचते हुए एक दिन खुद के निरक्षर होने पर ग्लानि का अहसास हुआ। यह वाकया 1970 के दशक के आखिरी वर्षो का है। वह यह सोचकर दुखी थे कि उनके बच्चे भी उसी की तरह निरक्षर रह जाएंगे और उनको अपनी रोजी-रोटी के लिए रिक्शा चलाना पड़ सकता है।
मधुरबंद गांव के मूल निवासी अली अब 82 साल के हो चुके हैं और वह गुवाहाटी से करीब 300 किलोमीटर दूर करीमगंज में रहते हैं।
उन्होंने अक्सर बच्चों को स्कूल जाते और वहां शिक्षा ग्रहण करते देखा था। कभी-कभी वे बच्चों को अपनी रिक्शा में स्कूल ले जाने और स्कूल से उनके घर लाने का काम भी करते थे।
अपने बच्चे को उचित शिक्षा नहीं दे पाने में अली की विवशता ने उनको झकझोर कर रख दिया और उन्होंने फैसला लिया उनको कुछ ऐसा करना चाहिए कि उनके बच्चे समेत आनेवाली पीढ़ी के गरीब बच्चे उनकी तरह शिक्षा से वंचित न रहें।
इसके बाद से अब तक अली ने नौ स्कूल बनाए हैं और उनके अकेले दम पर किए गए इस प्रयास की चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में की है।
अली ने कहा, “मुझे लगता है कि यह अल्ला की मेहरबानी और स्थानीय लोगों की दुआएं थीं कि मैंने जो चाहा वह कर सका।”
दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान आईएएनएस से बातचीत में अली ने कहा, “मैं गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा सका। मेरे गांव के लोग गरीब थे और इस कारण स्कूल जाने से लाचार बच्चों को देखकर मुझे दुख होता था। मैं अब गरीब परिवारों के बच्चों को पढ़ाई छोड़ते नहीं देखना चाहता हूं।” अली कार्यक्रम में बतौर अतिथि आमंत्रित थे।
उन्होंने अपनी जमीन का एक हिस्सा बेचकर पहला स्कूल खोला, जबकि जमीन का दूसरा हिस्सा स्कूल का भवन बनाने के लिए दान में दे दिया। इसके अलावा स्कूल के लिए धन की व्यवस्था भी उन्होंने अपनी दैनिक कमाई व बचत के पैसे से की। हालांकि उनको कुछ दान भी मिला।
उन्होंने कहा, “इलाके के कुछ लोगों ने भी मेरी मदद की।”
स्कूल के लिए धन की कमी नहीं हो इसके लिए वह सुबह में रिक्शा चलाते थे और रात में लकड़ी काटते थे। वह लकड़ी बेचकर मिले धन का उपयोग स्कूल बनाने और उसका संचालन करने में करते थे।
उन्होंने कहा, “इलाके में एक भी स्कूल नहीं था। मुझे लगता था कि जब मेरे बच्चे पैदा होंगे तो उनको भी कोई स्कूल नहीं मिलेगा। मेरे पहले बेटे के जन्म के बाद मेरी यह चिंता गहरा गई।”
उन्होंने कहा कि लड़कियों के स्कूल की कोई अहमियत नहीं थी। लड़के स्कूल जाते थे और शिक्षा ग्रहण करते थे, लेकिन लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं।
अली ने एक शिक्षा अधिकारी से मुलाकात की जिनको वह अपनी रिक्शा में ले जाते थे। उनकी मदद से अली ने 1978 में गांव में एक मध्यविद्यालय की स्थापना की।
उन्होंने कहा, “इसकी स्थापना के शीघ्र बाद मुझे महसूस हुआ कि हमें पहले एक प्राथमिक विद्यालय की जरूरत है। इसके बाद 1980 में तीन निम्न प्राथमिक विद्यालय (कक्षा-1 से लेकर पांच तक) खोले गए।”
अली ने मधुरबंद और आसपास के इलाके में अब तक तीन निम्न प्राथमिक विद्यालय, पांच मध्य विद्यालय (छठी से आठवीं कक्षा तक) और एक उच्च विद्यालय खोले हैं।
अली ने कहा, “मैं हालांकि निरक्षर हूं लेकिन लोगों से सम्मान पाता हूं। वे मुझसे आशीर्वाद मांगते हैं। मुझे गांव के बच्चों को स्कूल जाते देख खुशी होती है।”
पिछले साल प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ मासिक रेडियो कार्यक्रम में अली का जिक्र किया था, जिसके बाद वह चर्चा में आए।
अली को इस बात का गर्व है कि प्रधानमंत्री ने उनके कार्य की सराहना की। वह मोदी से मिलने की आकांक्षा रखते हैं।
उनसे जब पूछा गया कि वह मोदी से क्या बात करेंगे तो उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि उनके सारे स्कूल सरकार से मान्यता प्राप्त हो ताकि स्कूल के लिए पैसे की कभी समस्या पैदा न हो। उन्होंने कहा, “मैं उनसे एक जूनियर कॉलेज और अगर संभव हो तो एक कॉलेज बनाने की मांग करूंगा।”
(यह साप्ताहिक फीची श्रंखला आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम की सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है।)
This post was last modified on February 25, 2019 1:22 AM
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