नई दिल्ली, 13 मार्च (आईएएनएस)| इसे चाहे अवसरवादिता कहें या राजनीतिक चालबाजी, भारत के राजनीतिक परिधि में कुछ पार्टियां और नेता ऐसे हैं, जो विचारधारा के स्तर पर उदार रहे हैं और उन्होंने तीसरा मोर्चा, भाजपा और कांग्रेस की अगुवाई वाली गठबंधन सरकारों का हिस्सा बनने से परहेज नहीं किया है। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के नेता रामविलास पासवान और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) पिछले दो दशकों के दौरान अधिकांश सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा रहे हैं, लेकिन दोनों आगामी लोकसभा चुनाव में अपने गठबंधन में बने हुए हैं।
पासवान, वी.पी. सिंह की सरकार, संयुक्त मोर्चा सरकार, भाजपा नीत पहली राजग सरकार, पहली संप्रग सरकार और अब मौजूदा मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं।
वरिष्ठ नेता का यह लोकसभा सदस्य के रूप में नौवां कार्यकाल है और वह बिहार विधानसभा के लिए पहली बार 1969 में चुने गए थे।
पासवान विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के छह प्रधानमंत्रियों के अधीन केंद्र में मंत्री रह चुके हैं।
वह वी.पी. सिह सरकार का हिस्सा थे और एच.डी. देवेगौड़ा, आई.के.गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं।
पासवान ने भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पहले कार्यकाल में 2002 गुजरात दंगों के विरोध में इससे नाता तोड़ लिया था। उन्होंने उसके बाद कांग्रेस से हाथ मिला लिया और संप्रग सरकार में शामिल हो गए।
वह 2009 लोकसभा चुनाव हार गए और 2014 चुनाव से पहले, कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के चुनाव हारने की संभावना व परिस्थिति की वजह से फिर से राजग में शामिल हो गए।
पासवान 2019 लोकसभा चुनाव के लिए राजग के साथ बने हुए हैं और सत्तारूढ़ गठबंधन पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर हमला करने के बाद अच्छी स्थिति में दिख रही है।
द्रमुक भी संयुक्त मोर्चा का हिस्सा रही है और इसके अलावा कांग्रेस व भाजपा की अगुवाई वाली गठबंधन का भी हिस्सा रही है।
कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, क्योंकि पार्टी सरकार से राजीव गांधी की हत्या पर जैन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर द्रमुक को गठबंधन से बाहर करना चाहती थी।
पार्टी बाद में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार, संप्रग सरकार का हिस्सा बनी।
हालांकि संप्रग सरकार से जुड़ने के बाद द्रमुक इसी गठबंधन का हिस्सा बनी हुई है और पार्टी ने तमिलनाडु में संप्रग गठबंधन में सबसे पहले अपना स्थान पक्का किया है।
जनता दल (यूनाइटेड) भी एक ऐसी पार्टी है, जिसने राजग का साथ छोड़ दिया था और भाजपा की विरोधी पार्टियों के साथ हाथ मिला लिया था। लेकिन बाद में पार्टी फिर से राजग में वापस लौट गई।
बसपा प्रमुख मायावती भी भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री रहीं थीं, लेकिन अब वह भाजपा की विरोधी हैं।
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