अटल टनल, दोस्ती और प्रेम का एक बंधन

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मनाली, 30 सितम्बर (आईएएनएस)। दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हिमाचल प्रदेश के पर्यटन स्थल से बाहर निकले भले ही वर्षो बित गए हैं, लेकिन स्थानीय लोगों और राज्य के प्रति उनके प्रेम, लगाव के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिमाचल प्रदेश के लाहौल घाटी में रोहतांग र्दे के नीचे बनाई गई 9.02 किलोमीटर लंबी घोड़े की नाल के आकार की सिंगल-ट्यूब, टू-लेन सुरंग का उद्घाटन करने के लिए इस शनिवार को यहां आ रहे हैं। कई स्थानीय लोग अभी भी जोर देकर कहते हैं कि यह वाजपेयी का कर्ज चुकाने का तरीका था, जहां वह एकांत में अपना समय बिताना पसंद करते थे।

सुरंग जोकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का एक सपना था और जिसका नामकरण मरणोपरांत उनके नाम पर किया गया, इसका निर्माण सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा 3,200 करोड़ रुपये की लागत के साथ 10 साल की कड़ी मेहनत के बाद पूरा किया गया है।

मनाली के बाहरी इलाके में स्थित प्रिनी के निवासियों, जहां अटल ने कॉटेज बनाया था, कहा कि सुरंग का निर्माण होने के पीछे वाजपेयी का हाथ है। इस सुरंग को समुद्र तल से 3,000 मीटर ऊपर और रोहतागं दर्रे के नीचे बनाया गया है।

कई लोगों का मानना है कि सुरंग का निर्माण एक वादा था जो वाजपेयी ने अपने दोस्त ताशी डावा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेता से किया था।

डावा के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से रिटायर बेटे राम देव ने आईएएनएस को बताया, “अपनी नियमित बातचीत के दौरान, जो बड़े पैमाने पर वाजपेयी के कॉटेज (प्रिनी) में होती थी, वे रोहतांग र्दे को पार करते समय लाहौल के लोगों की कठिनाइयों पर विस्तार से चर्चा करते थे।”

उन्होंने कहा कि वाजपेयी और डावा 1942 में वडोदरा में आरएसएस द्वारा आयोजित एक प्रशिक्षण शिविर के दौरान दोस्त बने।

डावा उर्फ अर्जुन गोपाल, लाहौल-स्पीति जिले के थोलंग का निवासी थे।

उद्घाटन के दौरान मोदी द्वारा झंडी दिखाकर रवाना की जाने वाली बस में सुरंग के माध्यम से यात्रा करने वाले पहले 15 यात्रियों की फेहरिस्त में शामिल राम देव ने कहा कि रोहतांग र्दे की कठिनाइयों से बचने के लिए सुरंग के निर्माण की आवश्यकता के लिए लड़ने वाले उनके पिता की मृत्यु इसे पार करने के दौरान 2 दिसंबर 2007 को हो गई।

भावुक राम देव ने कहा, “वह अस्वस्थ थे और उन्हें एक वाहन से मनाली के अस्पताल में ले जाया जा रहा था, जैसे ही हम रोहतांग र्दे को पार कर रहे थे, अचानक उनकी सांसें फूलने लगी और फिर उनका देहांत हो गया। ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

उन्होंने कहा, “सही अर्थो में, सुरंग, जो कठिनाइयों को कम करेगी और मनाली और लाहौल के बीच सभी मौसम में कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगी, दोस्ती का एक बंधन है।”

उनकी एक मुलाकात को याद करते हुए उन्होंने कहा कि जब वाजपेयी 1998 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे, तो मेरे पिता दिल्ली में लाहौल घाटी के लोगों के प्रतिनिधिमंडल के साथ उनसे मिले थे।

लाहौल के लोग, जो काफी हद तक बौद्ध हैं, का मानना है कि सुरंग का निर्माण क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि लाएगा।

वाजपेयी के कॉटेज के पास एक होटल चलाने वाले प्रेम ठाकुर ने वाजपेयी की डावा के साथ मुलाकात को याद किया।

ठाकुर ने आईएएनएस को बताया, “जब भी वाजपेयी जी प्रीनी में जाते थे, तो वे स्थानीय लोगों से मिलते थे। वह कहते थे कि ताशी डावा उन्हें सुरंग बनाने के वादे को याद दिलाना नहीं भूलते थे।”

वाजपेयी ने आखिरी बार जून 2006 में कॉटेज का दौरा किया था।

तब से कुटिया ने वीरान रूप धारण कर लिया है। पड़ोसी उन दिनों को याद करते हैं जब वाजपेयी प्रधानमंत्री के रूप में हर गर्मियों में यहां आते थे और स्थानीय लोगों के साथ घुलमिल जाते थे।

सुरंग से मनाली और केलांग के बीच 46 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी और यात्रा में करीब तीन घंटे कम लगेंगे।

–आईएएनएस

वीएवी-एसकेपी

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