Bala Movie Review: आजकल नौजवानों में बाल झड़ने की शिकायत आम बात है। नहाते वक्त या फिर शीशे के सामने कंघी करते वक्त बाल टूटने और गिरने की समस्या से तीस साल के आस-पास की उम्र के ज्यादातर युवा परेशान हैं। भरी जवानी में गंजापन हावी होने लगता है तो लोग-बाग आपका मज़ाक उड़ाने लगते हैं। फिर आदमी इसे दूर करने के लिए तमाम तरह के नुस्खे आजमाता है। ऐसे ही गंजापन से जूझ रहे एक इंसान के दर्द को निर्देशक अमर कौशिक ने फिल्म बाला में आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) के जरिए सामने लेकर आए हैं।
हर वो आदमी जिसने कम उम्र में ही अपना बाल खोया है और गंजेपन के लिए उपहास का पात्र बना है, उसकी जुबां बनकर आयुष्मान ने फिल्म में हंसाते-गुदगुदाते एक संदेश दिया है। अखबार के विज्ञापन को कहानी में बदलकर बड़े परदे पर उतारने वाले डायरेक्टर अमर कौशिक और कहानीकर नीरेन भट्ट ने शानदार काम किया है।
कानपुर की एक मिडिल क्लास फैमिली से आने वाले बालमुकुंद शुक्ला यानी कि ‘बाला’ (Bala) अपने सिर के झड़ते बालों से परेशान है। बालमुकुंद बचपन में अपने लंबे बालों और एटीट्यूड से पहचाने जाते थे। बाला वाकई में स्टैंड अप कॉमेडियन बनना चाहता है, लेकिन परिस्थिति के सामने घुटने टेकने को मजबूर आम आदमी की तरह प्राइवेट कंपनी में लग जाता है। कंपनी ने उसे लड़कियों की फेयरनेस क्रीम बेचने में लगा रखा है। लेकिन 25 की उम्र में ही बाला (Ayushmann Khurrana) का बाल झड़ना शुरू हो जाता है और बाला इसे रोकने के लिए सैकड़ों नुस्खे अपनाता है। आखिरकार वह इसका तोड़ ढूंढने में कामयाब रहता है और फिर उसे मिलती है एक टिकटॉक स्टार (यामी गौतम), जिसे दुनिया का बनावटीपन हद दरजे तक पसंद है। भूमि पेडनेकर बाला के क्लासमेट लतिका त्रिवेदी का किरदार निभा रही हैं, जो अपने सांवले रंग की वजह से बचपन से लोगों का ताना सुनती आईं हैं। इन तीनों किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है फिल्म की कहानी।
फिल्म की शुरुआत में ही आप को कनपुरिया इस्टाइल और लखनऊआ लफ्फेबाजी की झलक मिलती है। बाला (Bala) यानी आयुष्मान खुराना का अभिनय आपको बाँध कर रखेगा। स्टैंडअप कॉमेडी करनी हो या फिर अपनी गर्लफ्रेंड के सामने हकीकत खुल जाने के बाद की समझदारी, आयुष्मान की कलाकारी फिल्म में सब पर भारी है। फिल्म की एक्ट्रेसेस भूमि पेडनेकर और यामी गौतम की अदाकारी अच्छी है। हालांकि, भूमि अपने डार्क स्किन लुक में थोड़ी अजीब लगती हैं। वहीं बाला के पिता बने सौरभ शुक्ला, लतिका की मां सीमा पहवा, बाला के भाई बने धीरेंद्र कुमार गौतम की एक्टिंग शानदार है। जावेद जाफरी का इस्तेमाल ठीक से नहीं हो पाया है। फिल्म की कहानी, डायलॉग, स्क्रीनप्ले, संगीत और एक्टिंग बेहतरीन है। अमर कौशिक ने स्त्री के बाद लगातार दूसरी फिल्म में दर्शकों को प्रभावित किया है। मनोरंजन के साथ मैसेज देनेवाली फिल्मों के शौकीन लोग यह फिल्म देख सकते हैं।
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