नई दिल्ली, 10 नवंबर (आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में कोर समिति की बैठक बुलाई है, जिसमें वह दो विकल्पों पर विचार कर रही है, जिसके अंतर्गत उसके पास राज्यपाल के प्रस्ताव को स्वीकार करने और 105 विधायकों के साथ बहुमत परीक्षण में उतरने या फिर सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद प्रस्ताव अस्वीकार कर विपक्ष में बैठने का विकल्प है।
भाजपा इस पर विचार कर रही है कि शिवसेना को घेरने के लिए कौन सा विकल्प सही रहेगा। विकल्प 1 : बहुमत परीक्षण और ‘अंतरात्मा की आवाज की अपील’ : महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सरकार बनाने के लिए सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा को आमंत्रित किया है, इस पर जवाब देने का समय सोमवार तक है। भाजपा अपने 105 विधायकों और 15-20 निर्दलीय और समर्थन देने के प्रति प्रतिबद्धता जताने वाली छोटी पार्टियों के विधायकों के सहयोग से बहुमत परीक्षण के लिए जा सकती है। इसके बाद भी पार्टी 145 के जादुई आंकड़े से दूर रहेगी। भाजपा 288 सदस्यीय विधानसभा में सभी विधायकों से उनकी अंतरात्मा की आवाज और राम मंदिर व अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के आधार पर समर्थन देने की अपील कर सकती है।
एक सूत्र का कहना है कि अगर भाजपा इस तरह की अपील के साथ आगे बढ़ेगी, बहुमत परीक्षण के दौरान शिवसेना के पास भाजपा के विरुद्ध वोट देने का विकल्प नहीं होगा, क्योंकि ऐसा करना राम मंदिर के खिलाफ वोट करने जैसा होगा। उद्धव ठाकरे ने नवंबर में ही अपने परिजनों के साथ अयोध्या की यात्रा थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत सरकार से राम मंदिर के निर्माण के लिए तिथि घोषित करने की मांग की थी। वहीं, इस वर्ष चुनाव जीतने के बाद उद्धव व उनके बेटे आदित्य ठाकरे ने एकबार फिर अयोध्या का दौरा किया था और अध्यादेश की मांग की थी।
भाजपा के सूत्र का कहना है कि अगर शिवसेना भाजपा द्वारा राममंदिर के नाम पर समर्थन करने की अपील किए जाने के बाद भी भाजपा के खिलाफ वोट करती है तो यह उसके लिए ‘राजनीतिक आत्महत्या’ साबित होगी।
विकल्प 2 : प्रस्ताव ठुकराना, विपक्ष में बैठना : अगर भाजपा प्रस्ताव ठुकरा देती है तो भगत सिंह कोश्यारी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना या दूसरे सबसे बड़े चुनाव पूर्व गठबंधन राष्ट्रवादी कांग्रस पार्टी (राकांपा)-कांग्रेस को सरकार बनाने का प्रस्ताव दे सकती है। भाजपा उस स्थिति में कह सकती है कि वह विपक्ष में बैठेगी।
शिवसेना अपने 56 विधायकों के साथ सरकार नहीं बना सकती और न ही 98 विधायकों के साथ राकांपा-कांग्रेस गठबंधन सरकार बना सकती है। निर्दलीय विधायकों की मदद से भी 145 के आंकड़े को नहीं छुआ जा सकता। एक गैरभाजपा सरकार तभी संभव है जब शिवसेना, कांग्रेस-राकांपा गठबंधन कर साथ आएगी।
शिवसेना हिंदुत्व की राजनीति करती आई है और हमेशा कांग्रेस के खिलाफ रही है, तब ऐसा करने का मतलब होगा अपनी पहचान खोना।
भाजपा अनुच्छेद 370, समान अचार संहिता, तीन तलाक पर कांग्रेस के रुख का इस्तेमाल शिवसेना पर हमला करने के लिए कर सकती है।
भाजपा सूत्र ने कहा, “मैं नहीं जानता पार्टी क्या निर्णय लेगी, लेकिन ये दोनों कारक भाजपा द्वारा सोमवार को राज्यपाल के प्रस्ताव का जवाब दिए जाते समय महत्वपूर्ण होंगे।”
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