भारत हजारों साल की संस्कृति का खजाना : मोदी

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 नई दिल्ली, 18 फरवरी (आईएएनएस)| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि भारत हजारों साल की संस्कृति का खजाना है जो लंबी अवधि की गुलामी और हमलों के बावजूद अक्षुण्ण है।

 उन्होंने कहा कि विभिन्न संस्कृतियों की मोतियों के मनकों से देश बहु-आयामी बनता है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविद द्वारा टैगोर सांस्कृतिक सद्भावना पुस्कार प्रदान किए जाने के बाद मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि संस्कृति किसी भी राष्ट्र की प्राणवायु होती है।

उन्होंने कहा, “इसी से राष्ट्र की पहचान और अस्तित्व को शक्ति मिलती है। किसी भी राष्ट्र का सम्मान और उसकी आयु भी संस्कृति की परिपक्वता और सांस्कृतिक जड़ों की मजबूती से ही तय होती है।”

प्रधानमंत्री ने कहा, “टैगोर सांस्कृतिक सद्भावना पुस्कार के सभी विजेताओं को मैं हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। श्री राजकुमार सिंहाजित सिंह, श्री राम सुतार जी और छायानट का सम्मान, कला का सम्मान है, संस्कृति का सम्मान है और ज्ञान का सम्मान है।”

उन्होंने कहा, “भारत हजारों साल की संस्कृति का खजाना है जो लंबी अवधि की गुलामी और हमलों के बावजूद अक्षुण्ण है। यह अगर संभव हो पाया है तो उसके पीछे स्वामी विवेकानंद जी और गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर जैसे मनीषियों का योगदान रहा है।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का सांस्कृतिक सामथ्र्य एक रंग-बिरंगी माला जैसा है, जिसको उसके अलग-अलग मनकों के अलग-अलग रंग शक्ति देते हैं। कोस-कोस पर बदले पानी चार कोस पर वाणी, यही भारत को बहुसांस्कृतिक और बहुआयामी बनाता है।

उन्होंने कहा, “भारत की इसी शक्ति को गुरुदेव ने समझा और रवींद्र संगीत में इस विविधता को समेटा। रवींद्र संगीत में पूरे भारत के रंग हैं और यह भाषा के बंधन से भी परे है।”

उन्होंने कहा, “गुरुदेव हर सीमा से परे थे। वह प्रकृति और मानवता के प्रति समर्पित थे। गुरुदेव पूरे विश्व को अपना घर मानते थे, तो दुनिया ने भी उन्हें उतना ही अपनापन दिया। ‘काबुलीवाला’ कहानी आज भी अफगान लोगों की जुबान पर है।”

मोदी ने कहा, “गुरुदेव, लोक-कला और पारंपरिक नृत्यों को देश की एक संस्कृति का परिचायक मानते थे। मणिपुरी नृत्य के शिक्षक नबाकुमार सिंहा जी इनसे कितना प्रभावित थे, यह शांतिनिकेतन में जाकर पता चलता है।”

उन्होंने कहा, “गुरुदेव की रचना और संदेश काल, स्थान और परिस्थितियों से परे हैं। मानवता की रक्षा के उनके तर्क को आज मजबूत करने की जरूरत है। आज दुनिया जिन चुनौतियों से जूझ रही है, उसमें टैगोर को पढ़ना और उनसे सीखना काफी प्रासंगिक है।”

टैगोर के योगदान और मानवता की भावना को पुष्ट करने में संस्कृति की भूमिका की उनकी समझ को पहचान दिलाने के लिए 2012 में एक करोड़ रुपये के इस सालाना अवार्ड की स्थापना की गई।

राष्ट्रपति कोविंद ने प्रवासी भारतीय केंद्र में अपने संबोधन में कहा कि टैगोर उल्लेखनीय प्रतिभाशाली व्यक्ति और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सांस्कृति आइकॉन थे।

उन्होंने कहा, “वह लेखक से कहीं अधिक संगीतज्ञ, कलाकार, शिक्षाविद और अति संवदेनशील आध्यामिक विद्वान थे। उनको भारत के राष्ट्रगान की रचना के लिए रोज याद किया जाता है। वह हमारे सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक आइकॉन हैं।”

उन्होंने टैगोर को अंतर्राष्ट्रवादी बताया और कहा कि वह मां भारती के पुत्र और विश्वभारती के अधिवक्ता थे।

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