बेंगलुरू | मैसूर साम्राज्य के पूर्व शासक टीपू सुल्तान पहले भारतीय थे, जिन्होंने रॉकेट विकसित किया और 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों के खिलाफ उसका इस्तेमाल किया।
राज्य पुरातत्व विभाग के सहायक निदेशक आर.एस. नायका के अनुसार, टीपू ने गुप्त रूप से सैकड़ों युद्धक रॉकेट बनाए और उन्हें अपने राज्य की राजधानी मैसूर के पास श्रीरंगपट्टन में निर्मित एक शस्त्रागार में संग्रहीत करके रखा। यह स्थान बेंगलुरू से लगभग 120 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में मैसूर के पास स्थित है।
नायका ने बेंगलुरू के उत्तर-पश्चिम में लगभग 275 किलोमीटर दूर मलनाड से फोन पर आईएएनएस को बताया, “राज्य के शिवमोगा जिले में नागारा के पास बिदनूर किले में एक खाली पड़े कुएं में टीपू के एक हजार से अधिक जीर्ण-शीर्ण रॉकेट मिले।”
2002 में आसपास के क्षेत्रों में 160 अप्रयुक्त जंग लगे रॉकेटों के पाए जाने और 2007 में उनके टीपू युग के होने की पहचान होने के बाद विभाग इस बात को पता करने के लिए प्रेरित हुआ कि किले में कहीं इस तरह के और भी गोला-बारूद दफन न पड़े हों।
नायका ने कहा, “सूखे कुएं की खुदाई की गई। वहां से बंदूक के पाउडर से मिलती हुई बदबू आ रही थी, जिसके चलते रॉकेट की खोज हो सकी।”
रॉकेट पाउडर के साथ रॉकेटों का पता लगाया जा सके, इसके लिए पुरातत्वविदों, उत्खननकर्ताओं और मजदूरों की 15-सदस्यीय टीम ने जुलाई 2018 के मध्य में तीन दिनों का समय लिया।
शिवमोगा में विभाग के संग्रहालय में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रॉकेट रखे गए हैं।
This post was last modified on November 4, 2019 10:22 AM
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