Bhishma Ashtami 2021: माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाता है। यह भीष्म पितामाह की पुण्यतिथि है। शास्त्रों के अनुसार, भीष्म ने ब्रह्मचर्य के लिए प्रणाम किया था। उन्हों जीवनभर इसका पालन भी किया। भीष्म को उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी निष्ठा और भक्ति के कारण उनकी मृत्यु का समय चुनने का वरदान प्राप्त था।
जिससे जब वो महाभारत के युद्ध में घायल हो गए थे तो उन्होंने अपने वरदान के कारण अपना शरीर नहीं छोड़ दिया। उन्होंने अपना शरीर त्यागने के लिए शुभ क्षण की प्रतीक्षा की।
हिंदू मान्यता के अनुसार, भगवान सूर्यदेव दक्षिण दिशा में 6 महीनों के लिए चलते हैं जो कि अशुभ अवधि मानी जाती है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। जब तक सूर्यदेव उत्तर दिशा में वापस नहीं जाने लगते हैं तब तक हर शुभ कार्य को स्थगित कर दिया जाता है।
ऐसे में पितामह भीष्म ने अपना शरीर त्यागने के लिए माघ शुक्ल अष्टमी को चुना। इस समय सूर्यदेव उत्तर दिशा या उत्तरायण (उत्तरायण) में वापस जाने लगते हैं। आइए जानते हैं भीष्म अष्टमी का शुभ मुहूर्त महत्व।
मध्याहन का समय- सुबह 11 बजकर 27 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 43 मिनट तक
अवधि- 2 घंटे 16 मिनट
अष्टमी तिथि आरंभ- 19 फरवरी, शुक्रवार, सुबह 10 बजकर 58 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त- 20 फरवरी, शनिवार, दोपहर 01 बजकर 31 मिनट तक
मान्यता के अनुसार, भीम अष्टमी का व्रत जो व्यक्ति करता है उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं। साथ ही उन्हें पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन भीष्म पितामह का तर्पण जल, कुश और तिल से किया जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि किस तरह अर्जुन के तीरों से घायल होकर महाभारत के युद्ध में जख्मी होने के बावजूद भीष्म पितामह 18 दिनों तक मृत्यु शैय्या पर लेटे थे। इसके बाद उन्होंने माघ शुक्ल अष्टमी तिथि को चुना और मोक्ष प्राप्त किया।
भीष्म अष्टमी को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार, भीष्म पितामह (देवव्रत) हस्तिनापुर के राजा शांतनु की पत्नी और मां गंगा की कोख से पैदा हुए थे। एक बार राजा शांतनु शिकार खेलते-खेलते गंगा तट पर पहुंचे, जहां से लौटते समय हरिदास केवट की पुत्री मत्स्यगंधा से उनकी मुलाकात हुई। मत्स्यगंधा की सुंदरता पर शांतनु मोहित हो गए और उन्होंने मत्स्यगंधा के पिता से उनका हाथ
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