अखिल भारत हिंदू महासभा (ABHM) ने मंगलवार को विनायक दामोदर सावरकर जयंती के अवसर कक्षा 10 से 12 वीं की बच्चियों के बीच तलवार और कटार बांटी। महासभा के प्रवक्ता अशोक पांडे ने कहा कि सावरकर का सपना “रजनीति का हिन्दुकरण और हिंदूओं का संस्कारिकरण” (राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैन्यीकरण) था।
उन्होंने आगे कहा, “मोदीजी ने सपने के पहले भाग को लोकसभा चुनावों में अपनी शानदार जीत के साथ पूरा किया है। हम अब कटार बांटकर और हिंदू सैनिक बनाकर दूसरे हिस्से को पूरा कर रहे हैं। यदि हिंदू अपने और अपने राष्ट्र की रक्षा करना चाहते हैं, तो उन्हें सीखना चाहिए कि हथियारों का उपयोग कैसे किया जाए”।
महासभा की राष्ट्रीय सचिव पूजा शकुन पांडे ने कहा कि यह हिंदुओं विशेष रूप से युवा पीढ़ी को प्रेरित करने और चाकू से खुद की रक्षा करने का एक कदम था। उन्होंने कहा कि शस्त्र और शास्त्र की सनातन धर्म में दोनों की शिक्षा पर जोर दिया गया है। किसी एक की शिक्षा के बिना आप पूर्ण नहीं हो सकते।
आपको बता दें कि हिंदू महासभा नेता डॉक्टर पूजा शकुन पांडेय उस समय सुर्खियों में आई थी जब 30 जनवरी 2019 को महात्मा गांधी के पुतले को गोली मारने का वीडियो वायरल हुआ था। ये गोलियां हिंदू महासभा की सचिव पूजा शकुल पांडेय ने ही मारी थीं जिन्हें कुछ दिनों बाद ही पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।
साध्वी अब वीर सावरकर की जयंती पर नाबालिग बच्चियों के हाथों में तलवार और कटारी थमाते हुए दिखी हैं। दरअसल, हिंदू महासभा के एक प्रोग्राम में पूजा बच्चियों को तलवार और कटारी थमा रही थीं।
महंत डॉक्टर पूजा शकुन पाण्डेय ने कहा साध्वी ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन परिचय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सावरकर जी सशस्त्र क्रान्ति के पक्षधर थे। उनकी इच्छा विदेश जाकर वहां से शस्त्र भारत भेजने की थी। अतः वे श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति लेकर ब्रिटेन चले गये। लन्दन का ‘इंडिया हाउस’ उनकी गतिविधियों का केन्द्र था। वहां रहने वाले अनेक छात्रों को उन्होंने क्रान्ति के लिए प्रेरित किया। कर्जन वायली को मारने वाले मदनलाल धींगरा उनमें से एक थे।
पूजा ने सावरकर के बारे में बोलते हुए कहा कि 1911 में उन्हें एक और आजन्म कारावास की सजा सुनाकर कालापानी भेज दिया गया। 1921 में उन्हें अंडमान से रत्नागिरी भेजा गया। 1937 में वे वहां से भी मुक्त कर दिए गए पर सुभाषचन्द्र बोस के साथ मिलकर वे क्रान्ति की योजना में लगे रहे। 1947 में स्वतन्त्रता के बाद उन्हें गांधी हत्या के झूठे मुकदमे में फंसाया गया पर वे निर्दोष सिद्ध हुए। वे राजनीति के हिन्दूकरण तथा हिन्दुओं के सैनिकीकरण के प्रबल पक्षधर थे। स्वास्थ्य बहुत बिगड़ जाने पर वीर सावरकर का 26 फरवरी, 1966 को निधन हुआ।
This post was last modified on May 29, 2019 12:01 PM
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