मुजफ्फरपुर: क्या लीची खाने से होता है चमकी बुखार? देखें, राष्ट्रीय लीची शोध केंद्र के डायरेक्टर डॉ विशाल नाथ का इंटरव्यू

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बिहार में चमकी बुखार से करीब 150 बच्चों की असमय मौत हो गई है। मुजफ्फरपुर और इसके आस-पास के जिलों में चमकी बुखार का सबसे ज्यादा प्रकोप देखने को मिल रहा है। मीडिया खबरों के मुताबिक, बच्चों की मौत एक ऐसे जहरीले पदार्थ की वजह से हुई है जो लीची में पाया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक मरने वाले सभी बच्चों में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम के लगभग एक समान लक्षण पाए गए हैं।

मुजफ्फरपुर में बड़े पैमाने पर लीची का उत्पादन होता और इसके बाद इसे देश-विदेश में पहुंचाया जाता है। सबसे ज्यादा बच्चों की मौत की खबरें जिन दो अस्पतालों से आई हैं, वो इलाके लीची के बागों के लिए काफी जाने जाते हैं। इसलिए ये जानना बहुत जरूरी हो गया है कि क्या सच में लीची में पाए जाने वाले जहरीले तत्व के कारण ही बच्चों की मौत हो रही है। इस मसले पर न्यूज्ड  ने मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची शोध संस्थान के निदेशक डॉ विशाल नाथ से बातचीत की है।

आइये जानते हैं क्या बोले डॉ विशाल नाथ:

मुजफ्फरपुर में हो रही मौतों को लीची से जोड़े जाने के सवाल पर डॉ विशाल नाथ ने कहा, “यह महज एक इत्तेफाक़ है कि ये बीमारी उन कुछ क्षेत्रों में फैली है जहाँ लीची की पैदावार होती है।”

उन्होंने कहा कि लीची का उत्पादन देश के लगभग एक लाख हेक्टेयर भूभाग पर हो रहा है। अगर आप मुजफ्फरपुर का आंकड़ा देखें तो यहाँ सिर्फ 8-10 हजार हेक्टेयर पर ही लीची होती है। तो जब देश के अन्य राज्यों में भी बड़े पैमाने पर लीची का उत्पादन हो रहा है तो ऐसी खबरें वहां से क्यों नहीं आ रही हैं? लीची को पौष्टिक फल बताते हुए डॉ विशालनाथ ने कहा कि इसमें विटामिन बी, विटामिन सी, कैल्शियम के साथ कई अन्य पोषक तत्व मौजूद हैं। लीची हमारे देश में 200 से ज्यादा सालों से खाई जा रही है। बड़े पैमाने पर लोग लीची से जुड़े हैं। इसके जरिये अपना कारोबार चला रहे हैं। ऐसे में किसी बीमारी के साथ लीची को जोड़ा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।

डॉ विशाल नाथ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस बीमारी के आलोक में हमारे डॉक्टरों और सरकार को लीची से इतर दूसरे पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि यहाँ के वातावरण, कुपोषण, सामाजिक-आर्थिक दशा, मौसम इत्यादि विषयों पर भी विचार करने की जरूरत है। लीची अपने स्वादिष्ट और पौष्टिक गुणों के लिए मशहूर है। उसे इन सब चीजों में न घसीटा जाए तो अच्छा है।

उन्होंने कहा कि कुछ रिपोर्टों में बताया गया है कि लीची के बीज में ट्रान्सफॉर्म्ड एम्यूनो एसिड, जिसे मिथाइल साइक्लोप्रोपाइल ग्लीसिन (Methyl Cyclopropyl Glycine) भी कहते हैं, पाया जाता है और इसको खाने से बच्चे बीमार हो रहे हैं। हमने इस पर शोध किया तो पता चला कि यह कच्ची लीची के बीज में लगभग नगण्य मात्रा में पाया जा सकता है। लेकिन फल के पकने के बाद बीज में यह ट्रान्सफॉर्म्ड एम्यूनो एसिड नहीं होता है। वैसे भी लोग तो फल खाते हैं, बीज नहीं। तो ऐसे में बीमारी होने का सवाल कहाँ से उठता है।

साथ ही उन्होंने कहा कि मुजफ्फरपुर इलाके में लीची का फल और सीजन तो करीब-करीब समाप्त हो चुका है। बीमारी से बच्चों की मौत की खबरें इसके एक हफ्ते बाद आनी शुरू हुई हैं। इसलिए चमकी बुखार के पीछे वजह लीची खाना नहीं हो सकता है।

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