भीकाजी कामा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य केंद्र बिंदु और पहली महिला क्रांतिकारी थी। आज उनका 158वां जन्मदिन है। भीकाजी कामा का जन्म मुंबई के एक समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता सोराबजी फरंजि पटेल और माता जैजीबाई सोराबजी पटेल शहर में काफी मशहूर थे। उनके पिता सोराबजी- पेशे से एक व्यापारी थे। उनके पिता पारसी समुदाय के नामी हस्तियों में से एक थे। उन्हें विदेश में पहली बार भारत का झंडा फहराने का श्रेय जाता है।
– भीकाजी कामा का जन्म 24 सितम्बर, 1861 को मुंबई के एक समृद्ध और खुले विचारों वाले पारसी परिवार में हुआ।
– कामा की शुरुआती पढ़ाई लिखाई मशहूर ‘एलेक्जेंड्रा गर्ल्स एजुकेशन इंस्टीट्यूशन’ में हुई, जिसे उस जमाने में लड़कियों की शिक्षा के लिए सबसे बेहतर संस्थान माना जाता था। भीकाजी कामा के अंदर आजाद ख्याली की नींव वहीं से पड़ी।
– 1885 में उनकी शादी पेशे से बैरिस्टर रूस्तमजी कामा से हुई। भीकाजी कामा और उनके पति रुस्तमजी कामा के राजनीतिक विचारों में जमीन-आसमान का अंतर था। दोनों के बीच मतभेद इतना बढ़ा के बाद में दोनों को अलग होना पड़ा।
– साल 1896 में मुंबई में भयंकर प्लेग फैला। लोगों को संकट में देख भीकाजी खुद नर्स के रूप में सेवा देने लगीं। बाद में वो खुद इसकी चपेट में आ गईं। बेहतर इलाज के लिए उन्हें यूरोप जाना पड़ा।
– साल 1906 में भीकाजी लंदन पहुंचीं। यहां उनकी मुलाकात स्वतंत्रता संघर्ष में क्रान्तिकारी आंदोलन की कमान संभाल रहे श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल और विनायक दामोदर सावरकर से हुई। लंदन में ही भीकाजी भारतीय राजनीति के पितामह कहे जाने वाले दादा भाई नौरोजी के संपर्क में आईं।
– 1907 में जर्मनी के शहर स्टुटगार्ट में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस का आयोजन किया जा रहा था। इस कांग्रेस में हिस्सा ले रहे सभी लोगों के देशों का झंडा लगा हुआ था। लेकिन भारत के लिए ब्रिटिश झंडा था। मैडम कामा ने एक नया झंडा बनाया और सभा में फहराया। झंडा फहराते हुए भीकाजी कामा ने कहा कि ये भारत का झंडा है जो भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। उन्हें विदेश में पहली बार भारत का झंडा फहराने का श्रेय जाता है।
– यह स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान बनाए गए तमाम अनौपचारिक झंडों में से एक था। इसमें हरे, पीले और लाल रंग की तीन पट्टियां थीं। सबसे उपर हरे रंग की पट्टी में आठ कमल के फूल बने थे जो भारत के आठ प्रांतों को दर्शाते थे। बीच में पीले रंग की पट्टी थी जिस पर वंदे मातरम लिखा हुआ था। सबसे नीचे लाल रंग की पट्टी थी जिस पर सूरज और चांद बने हुए थे। अब यह झंडा पुणे की केसरी मराठा लाइब्रेरी में संरक्षित करके रखा गया है।
– भीकाजी कामा 33 सालों तक भारत से बाहर रहीं। इस दौरान वो यूरोप के अलग अलग देशों में घूम-घूमकर भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के पक्ष में माहौल बनाती रहीं। उन्होंने दुनिया के अलग-अलग देशों में रह रहे भारतीयों से मुलाकात की, कई सम्मेलनों में भाषण दिए और भारत की आज़ादी के समर्थन में क्रांतिकारी लेख लिखे।
– देश की आजादी में अपना सबकुछ वार देने वालीं महान क्रांतिकारी भीकाजी कामा ने 13 अगस्त, 1936 में मुंबई के पारसी जनरल अस्पताल में आखिरी सांस ली थी। उनके मुख से निकले आखिरी शब्द थे- वंदे मातरम।
– 26 जनवरी 1962 को उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया। भारत में कई स्थानों और सड़कों का नाम भीकाजी कामा के नाम पर रखा गया है।
This post was last modified on September 23, 2019 7:07 PM
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