Ramchandra Shukla : हिंदी साहित्य की परिभाषा बदलने वाले साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल, जानें उनसे जुड़ी अहम बातें

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Ramchandra Shukla: आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का नाम हिंदी साहित्य से प्रमुख साहित्यकार में शुमार किया जाता है। उनकी पहचान साहित्यकार के साथ-साथ एक निबंध लेखक के तौर पर भी रही है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था। साल 1888 में वे अपने पिता के साथ राठ हमीरपुर गये और वहीं अपनी शिक्षा की शुरुआत की।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल से जुड़ी खास बातें..

–  आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 4 अक्टूबर 1884, को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था।

–  मिर्ज़ापुर के पण्डित केदारनाथ पाठक, बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ का उनको साथ मिला। यहीं पर उन्होंने हिन्दी, उर्दू, संस्कृत एवं अंग्रेज़ी के साहित्य का गहन अध्ययन प्रारम्भ किया।

–  आचार्य शुक्ल ने अपनी जीवन यात्रा की शुरुआत एक हिंदी कविता और “प्राचीं भारतीयों का परिहार” और उनके पहले अंग्रेजी में प्रकाशित निबंध के रूप में किया गया था, जिसे “भारत क्या करना है” के रूप में जाना जाता है। 1921 में उन्होंने एक और लेख “असहयोग और भारत के गैर-व्यापारिक वर्ग” की रचना की।

–  उनका पहला लेखन “हिंदी साहित्य का इतिहस” एक प्रामाणिक हिंदी साहित्य के रूप में जाना जाता है। इसे हिंदी साहित्य के इतिहास पर लिखी गई सबसे चर्चित किताब माना जाता है।

–  आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखे गए हिन्दी साहित्य का इतिहास को सबसे प्रामाणिक इतिहास माना जाता है। आचार्य शुक्ल जी ने इसे हिन्दी शब्दसागर की भूमिका के रूप में लिखा था जिसे बाद में स्वतंत्र पुस्तक के रूप में 1929  ई० में प्रकाशित किया गया।

–  चिंतामणि उनके द्वारा लिखा गया सबसे प्रसिद्ध निबंध है जो कविता और कविताओं की पहचान करने वाला विस्तार से पढ़ा गया निबंध है। चिंतामणि के रूप में जाना जाने वाला उनका अद्भुत संग्रह मूल रूप से निबंध के दो खंडों में प्रकाशित हुआ था जो कि क्रोध और घृणा जैसी वास्तविक भावनाओं पर आधारित था।

–  सन् 1937 ई. में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद पर रहते हुए ही सन् 1941 ई. में उनकी हृदय गति बन्द हो जाने से मृत्यु हो गई।

This post was last modified on October 4, 2021 11:36 AM

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