उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा एक जाने माने राजनेता के साथ ही एक महान समाज सेवक थे। तीन बार लोकसभा सदस्य और एक बार केंद्रीय मंत्री रहे हेमवती बहुगुणा कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते थे। अपनी बात मनवाने के लिए इंदिरा गांधी को भी नीचा झुकाने वाले नंदन बहुगुणा का राजनीतिक जीवन काफी उतार- चढाव भरा रहा।
कांग्रेस के इस बड़े नेता का जन्म आज ही के दिन यानी 25 अप्रैल, 1919 को उत्तराखंड के बुघाणी गांव में हुआ था। बहुगुणा ने प्रारम्भिक शिक्षा गढ़वाल और आगे की शिक्षा डीएलवी कॉलेज देहरादून और राजकीय विद्यालय इलाहाबाद से पूरी की। अन्य नेताओं की तरह नंदन बहुगुणा ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। साल 1942 में महात्मा गांधी के आवाहन पर बहुगुणा आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में कूदे। नंदन बहुगुणा अंग्रेज़ों के लिए एक बड़ी मुसीबत थे। उस समय अंग्रेजों ने बहुगुणा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 10 हजार रुपये का ईनाम रखा था।
राजनीतिक करियर
बहुगुणा जी का राजनीतिक जीवन 1952 में शुरू हुआ। उन्हें पहली बार वर्ष 1952 में करछना विधानसभा का टिकट मिला जहाँ से वह भारी मतों से विजयी हुए। वह सच्चे मायनों में मजदूरों के नेता थे, जिन्होंने विधानसभा में हमेशा मजदूरों की आवाज बुलंद की।। इसके बाद वह फिर 1957 में चुने गए और 1969 तक विधानसभा के सदस्य रहे। 1974 से 1977 तक वह एक बार फिर उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे। इसी दौरान वह 1952 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति तथा वर्ष 1957 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य रहे। वर्ष 1958 में उद्योग विभाग के उपमंत्री, 1962 में श्रम विभाग के उपमंत्री, वर्ष 1967 में वित्त तथा परिवहन मंत्री रहे।
हेमवती नंदन बहुगुणा वर्ष 1971 में पहली बार लोकसभा के सदस्य चुने गए। वह 1977 तथा 1980 में लोक सभा सदस्य निर्वाचित हुए। 2 मई, 1971 को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में संचार राज्य मंत्री बने। बहुगुणा पहली बार 8 नवम्बर, 1973 से 4 मार्च, 1974 तथा दूसरी बार 5 मार्च, 1974 से 29 नवम्बर, 1975 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उन्हें साल 1977 में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में पेट्रोलियम, रसायन तथा उर्वरक मंत्री बनाया गया। वर्ष 1979 में वह केन्द्रीय वित्त मंत्री बने।
नंदन बहुगुणा को अपनी कार्यकुशलता के चलते जाना जाता था। नंदन बहुगुणा को राजनीति में संगठन और जोड़ तोड़ का ज्ञान था, इसलिए कई दिग्गज नेता उनसे डरते थे। वहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी उनकी क्षमता के कायल थे।
नंदन बहुगुणा ने साल 1984 में अमिताभ बच्चन के खिलाफ चुनाव लड़ा था। अमिताभ ने बहुगुणा को 1 लाख 87 हजार वोट से हरा दिया था। इसके बाद बहुगुणा कांग्रेस छोड़कर लोकदल में आ गए थे। 17 मार्च 1989 को बहुगुणा की बाईपास सर्जरी फेल होने के चलते मृत्यु हो गयी थी।
उन्होंने अपने जीवनकाल में ‘इंडियनाइज़ हम’ नामक पुस्तक भी लिखी।
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