नई दिल्ली, 20 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस के पंजाब प्रभारी व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने किसान आंदोलन के मसले पर कहा कि पूरा मामला सरकार और किसानों के बीच में है। सरकार विपक्ष को ये मौका ही क्यों दे रही है कि हमलावर हो। जहां तक दिगभ्रमित किए जाने की बात है, हमारे किसान मानसिक रूप से अपना भला-बुरा समझने में सक्षम है।
उन्होंने कहा, किसान सीधी मांग कर रहे हैं कि ये तीनों कानून वापस लिए जाएं, क्योंकि ये उनके हित के खिलाफ हैं और खेती-किसानी को बर्बाद कर देंगे। सरकार इन कानूनों को वापस ले ले, मामला खत्म हो जाएगा। विपक्ष के नाम पर सरकार आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। किसान समझ रहे हैं कि इन तीन कानूनों के रहते एमएसपी प्रणाली, सरकारी खरीद की तैयारी और मंडी तंत्र पूरी तरह से खतरे में पड़ जाएगी। ये सब एक-दूसरे से अंतर संबंधित हैं और अगर एक प्रणाली खत्म होगी तो दूसरी भी स्वत: हो जाएगी। इसलिए, किसान जानता है कि ये कानून उनके हित के खिलाफ है और किसानी और खेती दोनों को खत्म कर देगी।
सवाल : जब स्वयं प्रधानमंत्री और सरकार के सभी आधिकारिक लोग आश्वासन दे रहे हैं कि ये कानून किसानों के हित में हैं, ना मंडियां खत्म होंगी ना एमएसपी, तब विरोध क्यों?
जवाब : आप ऐसा कानून ही क्यों लाए हैं, जिसमें आपको आश्वासन देना पड़ रहा है। एक तरफ कानून होगा और दूसरी तरफ सरकार का आश्वासन होगा। कानून चलेगा या सरकार का आश्वासन। आपने कानून बना दिए और ये कानून किसान के हित पर चोट कर रहे हैं और आप कह रहे हैं कि चोट नहीं लगेगी। आप लिखित आश्वासन के बजाय कानून को खत्म कर दें, कल किसान आंदोलन खत्म कर देंगे। ये हक की लड़ाई है और इसमें सारा देश किसानों के साथ है।
सवाल : जब कॉर्पोरेट किसानों से अधिक दाम पर खरीद करें तो इसमें विपक्ष को क्यों एतराज है?
जवाब : अगर कॉर्पोरेट हाउस एमएसपी से ऊंचे दामों में खरीदना चाहते हैं, तो उनको कौन रोक रहा है। वे पहले भी तो खरीद सकते थे, इसके लिए उन्हें कौन से कानून की जरूरत है। वे किसी भी दाम पर खरीदें, उसके लिए क्यों आवश्यक है कि मंडियों को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ा जाए। आज भी मंडियों से दूध और अंडा, मांस खरीदा जाता है। फल-फूल सब्जियां खरीदी जाती हैं। एक बार किसान का मंडियों से संबंध और आधार खत्म हो जाएगा तो किसान बड़े व्यापारियों और पूंजीपतियों के हाथों का गुलाम हो जाएगा। फिर भारत की रीढ़ यहां के किसान कमजोर होते चले जाएंगे।
सवाल : पंजाब जहां आपकी सरकार है, और आप वहां के प्रभारी भी हैं, आरोप है कि आप लोग किसानों को भड़का रहे हैं?
जवाब : पहली बात तो मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि उत्तराखंड में उधम सिंह नगर और हरिद्वार के किसान आंदोलन में नहीं हैं क्या? यूपी में भाजपा की सरकार है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलन में शामिल हैं क्यों? हरियाणा में भी भाजपा की सरकार है और किसान आंदोलन में शामिल हैं। बुनियादी बात है कि जहां-जहां एमएसपी और मंडी सिस्टम मजबूत रहा है, वहां का किसान सबसे ज्यादा चिंतित है। ज्यादातर खरीद धान और गेहूं की होती रही है, जिसमें पंजाब मजबूत है। इसलिए वहां का किसान और अधिक चिंतित है। मेरे गृह प्रदेश उत्तराखंड के किसान भी इस खतरे को समझ रहे हैं और उसको खतरा साफ दिख रहा है।
सवाल : अभी कुछ दिन पहले कुछ किसानों ने कृषि मंत्री से मिलकर अपना समर्थन दिया, किसान भी पार्टियों में बंट गया है क्या?
जवाब : ये सरकारी किसान हैं। सरकार अभी किसान बना रही है। बनाए हुए किसान और स्वाभाविक किसान का अंतर साफ दिखाई दे रहा है। आप किसान आंदोलन को भटकाने के लिए कभी पंजाब की बात कर रहे हैं और कभी शहर और गांव की बात कर रहे हैं। कभी आप पंजाब आंदोलन के साथ खालिस्तान को जोड़ दे रहे हैं और कभी टुकड़ा-टुकड़ा गैंग को जोड़ दे रहे हैं।
दरअसल, उनको उम्मीद नहीं थी किसान आंदोलन इतना मजबूत हो जाएगा। भाजपा को लग रहा था कि जिस तरह से अन्य आंदोलनों को तोड़ दिया है, उसी तरह से इस आंदोलन को भी तोड़ देंगे। इसलिए खालिस्तान और टुकड़ा-टुकड़ा गैंग को इससे जोड़ रहे हैं। पर देश समझदार है, वो बार-बार एक ही बहकावे में नहीं आने वाला। हर आंदोलन को टुकड़े-टुकड़े गैंग कहकर सच्चाई से आप मुंह नहीं मोड़ सकते। किसान और पूरे आंकड़े कह रहे हैं कि किसान की आय लगातार घट रही है। बिहार में तो आपकी सरकार है और मंडी तंत्र भी नहीं है और सरकारी खरीदी नहीं है, फिर किसान की आय क्यों घट रही है? वहां आपका कॉर्पोरेट खरीद के लिए क्यों नहीं जाता?
सवाल : कॉर्पोरेट पर आरोप लगना कितना सही है?
जवाब : हमारी अर्थव्यवस्था के अलग-अलग स्तंभ कॉर्पोरेट हाउसों को दे दिए गए हैं। अदाणी-अंबानी को दे दिया गया है। पेट्रोलियम सेक्टर भी अंबानी के हाथ में आ गया है। कोयला सेक्टर अदाणी के हाथ में दे दिया गया है। साफ तौर पर दिख रहा है कि कुछ कॉर्पोरेट कुछ सेक्टरों को नियंत्रित कर रहे हैं। अब यदि बचा हुआ कृषि क्षेत्र भी हाथ से चला जाएगा तो किसान अपनी जमीन से हाथ धो बैठेगा। तब आप स्थिति समझ सकते हैं। हमारी लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष से नहीं है, हम देश में रहने वाले सभी वर्गो की बात करते रहे हैं। उसमें आम आदमी से लेकर खास आदमी तक शामिल हैं। ये लड़ाई अकेले किसान की नहीं है। ये लड़ाई गरीब की है। किसान इस खतरे को समझ गया है।
–आईएएनएस
एसजीके
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