भोपाल। बुंदेलखंड की अजब कहानी है, मानसून के मौसम में भी इस इलाके में मई-जून की गर्मी जैसे हालात हैं। तालाब और नदियां तो लबा-लब नजर आती हैं, मगर पीने के पानी की किल्लत जारी है, क्योंकि पानी के लिए आए बजट को पानी की तरह बहा दिया गया। बुंदेलखंड पैकेज के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है। अभी हाल ही में आई रिपोर्ट बताती है कि पैकेज में से पानी की उपलब्धता के लिए लगभग 1600 करोड़ की राशि खर्च हुई है। उसके बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं।
बुंदेलखंड को देश का दूसरा विदर्भ कहा जाता है, जहां पानी की समस्या ने जिंदगी को बदरंग बना रखा है। यह वह इलाका है, जिसे कभी जल संचय के उदाहरण के तौर पर देखा जाता था, मगर हालात बदले तो अब यह क्षेत्र सूखाग्रस्त इलाकों में अव्वल हो गया। इस क्षेत्र की स्थिति बदलने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने वर्ष 2008 में राहुल गांधी के दौरे के बाद विशेष पैकेज के तौर पर 7400 करोड़ की राशि का प्रावधान किया, जिसमें से 3860 करोड़ रुपये मध्य प्रदेश के हिस्से में आने थे।
बुंदेलखंड मध्य प्रदेश के छह और उत्तर प्रदेश के सात जिलों को मिलाकर बनता है। मध्य प्रदेश के छह जिलों सागर, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़ पन्ना और दतिया में इस पैकेज से ऐसे काम किए जाने थे, जिससे जल संचय तो हो ही साथ में लोगों को रोजगार के अवसर भी मिले।
अगर बात सिर्फ पानी की उपलब्धता पर हुए खर्च की करें, तो योजना आयोग ने जो ब्यौरा अभी हाल ही में जारी किया है वह बताता है कि 31 दिसंबर, 2018 तक जल संसाधन विभाग को 1340 करोड़ और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के लिए 299 करोड़ रुपये दिए गए। इस तरह दोनों विभाग 1600 करोड़ की रािश खर्च भी कर चुके हैं, मगर पानी का कहां इंतजाम है, यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है।
बुंदेलखंड पैकेज में हुए घपले के खिलाफ बीते एक दशक से लड़ाई लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता और कांग्रेस के प्रदेश सचिव पवन घुवारा ने आईएएनएस से कहा, “बुंदेलखंड पैकेज की राशि से कागजी तौर पर 350 से ज्यादा स्टॉपडैम, 70 से ज्यादा छोटे बांध और 1294 गांव में नलजल योजनाएं बना दी गई हैं। बुंदेलखंड के छह जिलों में गिनती की ही स्थायी जल संचय की संरचनाएं ऐसी होंगी जो अब अस्तित्व में नजर आती है। 1600 करोड़ खर्च हो गए और एक बूंद पानी रोकने का स्थायी इंतजाम नहीं, लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिल रहा, यह सीधे गड़बड़ी की तरफ इशारा करता है। कई अफसर तो जांच के दायरे में भी आए हैं।”
योजना एवं सांख्यिकी के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि जल संसाधन विभाग 1340 करोड़, पीएचई विभाग 29,9़ 51 करोड़, वन विभाग 18,0़37 करोड़ रुपये खर्च कर चुका है। वन विभाग को भी जंगलों में जल संरचनाएं बनानी थीं।
पीएचई विभाग हमेशा से विवादों में रहा। भाजपा के शासनकाल में जंग लगे पाइपों की आपूर्ति के मामले ने तूल पकड़ था और मंत्रियों ने एक-दूसरे को कटघरे में खड़ा कर दिया था। वर्तमान में बहुत कम नल जल योजनाएं ऐसी हैं जो लोगों को पानी उपलब्ध करा रही हों। अधिकांश योजनाओं में कहीं टंकी नहीं बनी तो पाइप लाइन नहीं है और कहीं पाइप है तो टंकी का पता नहीं। कई स्थानों पर दोनों गायब या उनके अवशेष हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि बुंदेलखंड की मूल समस्या पानी है, बुंदेलखंड पैकेज की राशि से जितनी संरचनाएं कागजों पर बनीं, उतनी धरातल पर होतीं तो तस्वीर कुछ और होती। यहां खुशहाली होती और रोजगार की तलाश में पलायन जैसे दंश को यहां के परिवारों को नहीं भोगना पड़ता। सरकारों ने इस क्षेत्र में पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च किए। चंदेल कालीन तालाब की मरम्मत पर बड़ा बजट साल दर साल खर्च होता रहा, मगर पानी नसीब नहीं हुआ।
बुंदेखलंड पैकेज से कई छोटे बांध और तालाब बनाए गए, मगर उनमें से अधिकांश एक-दो साल की बारिश को ही नहीं झेल पाए। पन्ना जिले में भारी बारिश से दो बांधों के टूटने से बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था, तो कई बांध और तालाब में पानी रुका ही नहीं। वहीं स्टॉपडैम ऐसे हैं, जिनमें लोहे के दरवाजे नहीं हैं, जिससे बारिश का पानी रुकता नहीं है। टीकमगढ़ जिले की हरपुरा नहर परियोजना पर 60 करोड़ से ज्यादा खर्च हुए, मगर इसमें पानी बहुत कम समय नजर आया।
पवन घुवारा का कहना है कि देश में घोटालों की बात होती है तो जनता के मन में 2जी स्पेक्ट्रम ,कोल घोटाला, आदर्श हाउसिग सोसाइटी घोटाला वगैरह आते हैं, लेकिन बुंदेलखंड पैकेज घोटाले की जांच हो तो वह अन्य घोटालों में सबसे आगे रहेगा, क्योंकि यहां पर जल, जंगल, जमीन और मानव जिदगी का घोटाला हुआ है।
उन्होंने कहा कि यहां पर जनता के निवाले को छीना गया है, जिस कारण हजारों लोगों को भूखे रहना पड़ता है, मानसिक प्रताड़ना झेलना पड़ती है। इसका जिम्मेदार कौन होगा? रकम का घोटाला तो सामने आ गया, लेकिन जनता के साथ जो खिलवाड़ हुआ है, उसकी भरपाई कौन करेगा?
(आईएएनएस)
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