Chhath 2019: छठ से जुड़े इस महत्वपूर्ण सामग्री को पिछले 100 साल से बना रहा है बिहार का यह मुस्लिम परिवार

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बिहार में लोक आस्था के सबसे बड़े त्योहार छठ की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। छठ में फलों के अलावे बहुत तरह की सामग्रियों का इस्तेमाल होता है। खास बात यह है कि ये सारी सामग्री स्थानीय स्तर पर तैयार होती हैं। ऐसी ही एक जरूरी सामग्री है- अरता का पात। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इसका निर्माण ज्यादातर मुस्लिम परिवार करते हैं। आज हम एक ऐसे ही गांव की के बारे में बताने जा रहे हैं जहां व्यापक पैमाने पर लोग इसके उत्पादन से जुड़े हुए हैं।

100 साल से बना रहे हैं आरता पात

छपरा के एक गांव के कई मुस्लिम परिवार पिछले 100 साल से छठ पूजन के लिए आरता पात बनाने में लगे हुए हैं। छठ पूजा में प्रयोग होने वाला अरता पात छठ के लिए महत्वपूर्ण पूजन सामग्रियों में से एक है। लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि इसे बनाने वाले अधिकांश लोग मुस्लिम परिवारों के होते हैं। छपरा जिले के झौंवा गांव में अरता पात का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। यहां का बना अरता पात बिहार के साथ-साथ देश के कई अन्य जगहों पर भी जाता है।

पीढ़ियों से इस काम में लगे हैं कई परिवार

झौंवा गांव के ही रहने वाले शमीम अहमद का परिवार कई पीढ़ियों से इस काम में लगा हुआ है। उनके घर की महिलाएं सहित बच्चे भी अरता पात बनाने में जुटे रहते हैं। शमीम अहमद का परिवार पिछले 100 साल से अरता पात बनाने में लगा हुआ है। हिंदुओं के इस महापर्व में इन परिवारों की भूमिका काफी अहम होती है। शमीम अहमद के अलावे इस गांव की एक बड़ी आबादी भी इस काम में सालों भर लगी रहती है। छठ के दौरान जब मांग बढ़ जाती है तब इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। अरता पात निर्माण में कौमी एकता की मिसाल देखने को मिलती है, क्योंकि शमीम अहमद और मजबून खातून तो सिर्फ एक उदाहरण हैं।

बनाने वालों का कष्टकर जीवन

झौंवा गांव छपरा जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है। छठ के आते ही यहां व्यापारियों की चहल-पहल बढ़ जाती है। व्यापारी अनिल बताते हैं कि यहां बनने वाले आरता पात को खरीदने के लिए दूसरे जिलों के लोग भी पहुंचते हैं। लेकिन इस उद्योग के साथ एक काला सच भी जुड़ा हुआ है। दरअसल अरता पात बनाने में जिक अकवन के रुई का इस्तेमाल होता है, उससे सांस संबंधी बीमारियां होती है। इन्ही वजहों से इस गांव में टीवी के मरीज सबसे अधिक पाए जाते हैं।

इन तमाम चुनौतियों के बाद भी झौंवा गांव के लोग इस महापर्व में दशकों से अपना योगदान देकर सामाजिक एकता का संदेश दे रहे हैं।

This post was last modified on October 28, 2019 2:54 PM

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