चीन के बीआरआई से आकर्षित होकर तालिबान ने भी उइगरों से मोड़ा मुंह

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नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (आईएएनएस)। चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का जादू ऐसा है कि इस्लाम की रक्षा के लिए जिहाद की बात करने वाले तालिबान तक ने चीन द्वारा उइगरों का नरसंहार करने और मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को खत्म करने के अत्याचारों से मुंह मोड़ लिया है।

पाकिस्तान के जरिए चीन अपना प्रभाव अफगानिस्तान पर भी फैला रहा है और यह सुनिश्चित कर रहा है कि तालिबान जैसे कठोर आतंकवादी समूह भी चीन द्वारा पूर्वी तुर्कीस्तान (अब शिनजियांग) प्रांत में रहने वाले उइगर मुसलमानों को सांस्कृतिक, जातीय और वैचारिक रूप से बदलने के अभियान पर चुप्पी साधे रहें।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा इस साल के अंत तक अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से हटाने के निर्णय पर चीन इस खाली स्थान को भरने की तैयारी में है।

चीन के तालिबान तक पहुंचने के कई रणनीतिक फायदे हैं। एक तो इससे वह दक्षिण एशिया और मध्य-पूर्व में अपने प्रभाव को बढ़ाने में सक्षम होगा। दूसरा, वह क्षेत्र का विस्तार करने में सक्षम होगा। दूसरा यह आतंकी संगठन शिनजियांग तक न पहुंचे और चीन के काम में हस्तक्षेप न करें।

तालिबान चीनी प्रस्ताव को गंभीरता से ले, इसलिए उसने पाकिस्तान के जरिए एक समूह बनाकर अफगानिस्तान को सुपर-पाकिस्तान चाइना इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) से जोड़ने का प्रस्ताव दिया है। चीन ने तालिबान को हाईवे बनाने का प्रस्ताव दिया है, जो सभी बड़े अफगान शहरों को एक-दूसरे से जोड़ेगा। इसके अलावा एनर्जी प्रोजेक्ट भी शामिल हैं, वहीं इस सबके बदले में तालिबान को बस शांति रखने का वादा करना है।

दरअसल, चीन की नजर अफगानिस्तान की समृद्ध खनिज संपदा पर है। इसके लिए चीनी कंपनियों ने तांबे की खदानों में निवेश करने और तेल का पता लगाने के लिए अनुबंध किए थे लेकिन देश की आंतरिक कलह के कारण यह प्रोजेक्ट संभव नहीं हो पाए। अब फिर से वह इसके लिए कोशिश कर रही है।

इसके अलावा अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति भी दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और मध्य पूर्व के बीच होने के कारण बेहद अहम है, जो चीन को आकर्षित कर रही है।

वहीं वह ईरान से भी लगातार जुड़ रहा है। घटती अर्थव्यवस्था और आर्थिक तंगी झेल रहे ईरान के साथ चीन ने तेल के लिए बड़े पैमाने पर समझौते पर किए हैं, इसके बाद उसने चीन को चाबहार बंदरगाह से जोड़ने वाले रेल नेटवर्क में निवेश करने के लिए भी आमंत्रित किया, जिसे भारत ने बनाया था।

चीन के लिए, अफगानिस्तान को जाल में डालने का मतलब है कि उसकी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के कई बंदरगाहों तक पहुंच हो जाएगी।

भारत के लिए, अफगानिस्तान में चीनी उपस्थिति एक अतिरिक्त सिरदर्द होगी। पहले ही पाकिस्तान और चीन की जोड़ी ने आतंकवाद, सीमा पार से घुसपैठ, गोलाबारी करने, विभिन्न क्षेत्रों में आतंकवादी नेटवर्क का समर्थन करने और यहां कि युद्ध जैसी स्थितियां बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति सौम्य रही है और यह पूरी तरह से विकास और पुनर्निर्माण पर आधारित रही है। हाल ही में विदेश मंत्री जयशंकर ने दोहा में होने वाली वार्ता को संबोधित भी किया था, जिसमें सभी पक्षों पर समाधान खोजने के लिए जोर दिया गया था।

अफगानिस्तान एक अप्रत्याशित स्थान बना हुआ है। यहां से जैसे ही अमेरिका बाहर निकलेगा, चीजें तेजी से बदल जाएंगी।

वहीं पिछले दो दशकों में सभी अफगान सरकारों ने भारत के साथ सकारात्मक संबंध बनाए रखे हैं। ऐसे में अफगानिस्तान में चीन की मौजूदगी के बाद भी इस देश को भारत से अलग करना आसान नहीं होगा।

–आईएएनएस

एसडीजे/एसजीके

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