चीनी पाठ्य पुस्तकों में भारत के बारे में क्या वर्णन है?

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बीजिंग, 28 दिसंबर (आईएएनएस)। किसी भी देश में, सरकारी स्कूल की पाठ्य पुस्तकों में दूसरे देशों के प्रति जिन बातों का वर्णन होता है, वह इस देश का अधिकारिक विचार दर्शाता है। चीन के प्राइमरी व मिडिल स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों में दुनिया के विभिन्न देशों का व्यापक परिचय शामिल है। चीन का सबसे बड़ा पड़ोसी देश होने के नाते, भारत चीनी स्कूलों के इतिहास और भूगोल की पाठ्यपुस्तकों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कहा जा सकता है कि चीन के प्राइमरी व मिडिल स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों में भारत के बारे में जो वर्णित किया गया है, उसने छात्रों पर अच्छी छाप छोड़ी है। पाठ्यपुस्तकों में भारत के सांस्कृतिक स्थलों की सुन्दर तस्वीरें भी छात्रों को बहुत अधिक आकर्षित करती हैं।

चीनी मिडिल स्कूल की पाठ्यपुस्तकों के अनुसार, भारत प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों और उपजाऊ भूमि वाला देश है, जहां कपास, जूट, रबर, चाय, चावल और गेहूं आदि कृषि उत्पाद समृद्ध हैं। और मानसून की जलवायु और प्रचुर वर्षा के कारण भारत में एक वर्ष में तीन बार फसलें तैयार होती हैं। भारत प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश है जो कोयला, लोहा, सोना, रत्न और अन्य खनिज भंडारों में भी समृद्ध है। पाठ्यपुस्तक ने हरित क्रांति के माध्यम से खाद्य समस्या को हल करने और गेहूं का उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत की प्रशंसा की। इसके अलावा श्वेत क्रांति के माध्यम से भारत ने अधिकांश लोगों को दूध पीने में सक्षम बनाया, जिससे राष्ट्रीय स्वास्थ्य में सुधार हुआ।

इतिहास की क्लास में चीनी छात्र यह पढ़ते आए हैं कि भारत के मुगल साम्राज्य में बादशाह अकबर की धार्मिक सहिष्णुता नीति से देश समृद्ध और शक्तिशाली बना। पर बाद में औरंगजेब की धार्मिक उत्पीड़न नीति के कारण, देश अलग हो गया और ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने मौके पर विजय प्राप्त की और भारत पर शासन किया। ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने औद्योगिक वस्तुओं के निर्यात से और कच्चे माल को लूटकर भारत के राष्ट्रीय हस्तशिल्प उद्योग को नष्ट किया। जिससे भारत में बहुत से लोगों को गरीबी और भुखमरी में डाल दिया। साथ ही ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने भारतीय लोगों के राष्ट्रीय गौरव को गंभीर रूप से आहत किया।

चीनी मिडिल स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में आधुनिक भारतीय इतिहास का विस्तृत विवरण किया गया है। इतिहास की पाठ्यपुस्तकमें सन 1857 में हुए राष्ट्रीय विद्रोह के नायकों, जैसे झांसी की रानी की खूब प्रशंसा की गयी है। इसने राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन में तिलक बाल गंगाधर, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और अन्य नेताओं के अद्भुत योगदान, तथा औपनिवेशिक शासन का विरोध करने और राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए प्रयास करने के लिए भारतीय लोगों का उच्च मूल्यांकन किया। पाठ्यपुस्तक ने भारत के राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन की तुलना चीन, कोरिया और इंडोनेशिया जैसे एशियाई देशों में समान अवधि के आंदोलनों के साथ की। इसका मानना है कि ये सभी आंदोलन सामंतवाद और उपनिवेशवाद के खिलाफ थे। एशिया भर में राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों ने एक दूसरे का समर्थन किया और भारतीय राष्ट्रीय विद्रोह ने उस समय अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए दूसरे अफीम युद्ध को दबा दिया।

पाठ्यपुस्तकों ने इस बात पर ब्रिटिश उपनिवेशवादियों की आलोचना की कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के विभाजन के जरिये उपमहाद्वीप में जातीय और धार्मिक संघर्षों को तेज किया। इतिहास की पाठ्यपुस्तक ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन और गुटनिरपेक्ष आंदोलन में जवाहरलाल नेहरू के योगदान की प्रशंसा की। और पाठ्यपुस्तकों ने बांडुंग सम्मेलन में चीनी प्रधानमंत्री चाओ एनलाई और भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कूटनीतिक गतिविधियों और उन के द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तावित शांति व सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का उल्लेख किया।

चीनी पाठ्यपुस्तकों में चीन और भारत के बीच विवादों का कोई उल्लेख नहीं है। शायद पाठ्यपुस्तकों के संपादकों का मानना है कि भारत और चीन दोनों लंबे इतिहास, समृद्ध संसाधन और महान भविष्य के साथ आशाजनक देश हैं, और दोनों देशों के बीच जो मतभेद व समस्याएं मौजूद हैं, छात्रों के वयस्क बनने के बाद ही उन्हें समझाया जाना चाहिये।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

— आईएएनएस

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