चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र का अध्ययन करेगा चंद्रयान-2 (राउंडअप)

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 श्रीहरिकोटा, 22 जुलाई (आईएएनएस)| भारत के दूसरे चंद्रमा अभियान चंद्रयान-2 को बाहुबली रॉकेट (जीएसएलवी-मार्क-3) के साथ सोमवार की दोपहर बाद सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया।

 यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र का अध्ययन करेगा जोकि अभी तक दुनिया के किसी भी अंतरिक्ष मिशन में नहीं किया गया है। 375 करोड़ रुपये के जियोसिंक्रोनाइज सैटेलाइट लांच व्हीकल मार्क-3 (जीएसएलवी एम-3) रॉकेट ने 3.8 टन वजनी व 603 करोड़ रुपये की कीमत के चंद्रयान-2 को लेकर अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी।

कुल 43.4 मीटर लंबे और 640 टन वजनी जीएसएलवी एम-3 का उपनाम कामयाब रही बाहुबली फिल्म के सुपर हीरो के नाम पर रखा गया है। यह रॉकेट भारत के दूसरे मिशन को अंजाम देने के लिए 3.8 टन वजनी चंद्रयान-2 को अपने साथ लेकर गया।

चंद्रयान-2 पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की लगभग 384,400 किमी की यात्रा तय करेगा।

लांच के बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन ने कहा, “मुझे यह घोषणा करते हुए बेहद खुशी हो रही है कि जीएसएलवी मार्क-3 ने चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में दाखिल कर दिया है। यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत है। मैं चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण में शामिल सभी लोगों को सलाम करता हूं।”

उन्होंने कहा, “हमने एक गंभीर तकनीकी खराबी का सामना किया था, लेकिन हमने इसे ठीक कर लिया। टीम इसरो ने 24 घंटे में खराबी के मुख्य कारण का पता लगा लिया। सिस्टम की जांच के लिए विशेषज्ञ टीम पिछले सात दिनों से काम पर थी।” सिवन ने कहा कि पिछले डेढ़ वर्षो से, उपग्रह टीम ने चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान के लिए दिन-रात काम किया है।

लांच के तुरंत बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, “चंद्रयान-2 अद्वितीय है क्योंकि यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र का अध्ययन करेगा। पिछले किसी भी मिशन में इस तरह का काम नहीं किया गया है। यह मिशन चांद के बारे में नई जानकारी प्रदान करेगा।”

मोदी ने एक अन्य ट्वीट में लिखा, “चंद्रयान-2 जैसे प्रयास युवाओं को विज्ञान, उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान और नवाचार की ओर प्रोत्साहित करेंगे। भारत के चंद्रमा कार्यक्रम को काफी बढ़ावा मिलेगा। इससे चंद्रमा के हमारे मौजूदा ज्ञान में काफी वृद्धि होगी।”

इसरो के रॉकेट जियोसिंक्रोनाइज सैटेलाइट लांच व्हीकल मार्क-3 (जीएसएलवी एम-3) ने श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रमा के लिए सोमवार की दोपहर बाद ठीक 2:43 बजे उड़ान भरी।

चंद्रयान-2 में कुल तीन खंड हैं। इसमें ऑर्बिटर (2,379 किग्रा, आठ पेलोड), लैंडर ‘विक्रम’ (1,471 किग्रा, चार पेलोड) और रोवर ‘प्रज्ञान’ (27 किग्रा, दो पेलोड) शामिल हैं।

वैसे इस मिशन के लिए रॉकेट को 15 जुलाई की सुबह 2:51 बजे उड़ान भरनी थी। मगर तकनीकी गड़बड़ के कारण रॉकेट प्रक्षेपण से लगभग एक घंटा पहले इसे स्थगित कर दिया गया। इसके बाद इसरो ने तकनीकी खराबी को ठीक करने के बाद 22 जुलाई को प्रक्षेपण का दिन तय किया।

इसरो के एक अधिकारी के अनुसार, लैंडर विक्रम सात सितंबर को चंद्रमा की सतह पर उतरेगा।

इसरो के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, “चंद्रमा पर उतरने के लिए यह इसरो का पहला मिशन है।”

इसरो के अनुसार, लैंडिंग के दिन सात सितंबर को लैंडर विक्रम ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा।

विक्रम से अपेक्षा की जा रही है कि वह दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊंचाई से नरम भूमि पर पहुंच जाएगा। इसरो के अनुसार, इससे पहले कोई भी यहां नहीं पहुंच पाया है। यहां पर कुल तीन वैज्ञानिक प्रयोग किए जाने हैं।

इसके बाद, छह पहियों वाला रोवर प्रज्ञान चांद की सतह पर दो प्रयोग करेगा। यह प्रयोग चांद की एक दिन की अवधि के लिए होगा, जोकि 14 पृथ्वी दिनों के बराबर होती है।

इसके अलावा आठ वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ ऑर्बिटर एक वर्ष की अवधि के लिए अपने मिशन को जारी रखेगा। इस मिशन में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का एक प्रयोग भी शामिल है।

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि मिशन चंद्रमा की उत्पत्ति को उजागर करने का भी प्रयास करेगा।

रोवर के साथ-साथ दोनों लैंडर के पास भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अंकित है जबकि रोवर के पहियों पर अशोक चक्र अंकित किया गया है।

उल्लेखनीय है कि भारत ने अपना पहला चंद्रमा मिशन चंद्रयान -1 अक्टूबर 2008 में अपने हल्के रॉकेट पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) का उपयोग कर लॉन्च किया था।

चंद्रयान-2 मिशन की सफलता के बाद भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा की यात्रा व उसकी सतह पर उतरने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा।

अब तक कुल 38 लैंडिंग के प्रयास किए गए हैं, जिनमें सफलता की दर 52 फीसदी रही है।

जीएसएलवी एम-3 का उपयोग 2022 में भारत के मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन के लिए किया जाएगा।

भारत में वर्तमान में पूरी तरह से परिचालन वाले दो रॉकेट हैं। इनमें पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) और जियोसिंक्रोनाइज सैटेलाइट लांच व्हीकल मार्क-3 (जीएसएलवी एम-3) शामिल हैं। इनमें उड़ान की शुरुआत में 415 टन के द्रव्यमान के सात 2.5 टन की वहन क्षमता है।

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