देश के ज्यादातर लोग 20 हजार रुपये मासिक आय से खुश- सर्वेक्षण

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नई दिल्ली | देश के अधिकांश लोग 20 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन पर खुशी महसूस कर रहे हैं। एक फरवरी को पेश होने वाले केंद्रीय बजट से पहले आईएएनएस-सीवोटर सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। 72 फीसदी भारतीय मानते हैं कि नरेंद्र मोदी के शासनकाल में महंगाई बढ़ी है और इसके चलते आम आदमी की दिक्कतें भी। 40 फीसदी भारतीयों का मानना है कि महंगाई का बुरा असर उनके जीवन की गुणवत्ता पर पड़ा है। 65.8 फीसदी का कहना है कि उनके लिए रोजाना का खर्च संभालना अब मुश्किल हो गया है। 2014 में यूपीए के समय में भी 65.9 फीसदी लोगों ने यही बात कही थी, जबकि 2015 में यह संख्या 46.1 फीसदी थी।

इनकम टैक्स

सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर लोगों को लगता है कि उनकी अपने परिवार के लिए एक औसत गुणवत्ता के साथ जीवनयापन करने के लिए प्रति वर्ष 4.3 लाख रुपये तक की कर मुक्त आय होनी चाहिए। वर्तमान में 2.5 लाख रुपये तक की वार्षिक कमाई को ही आयकर से छूट प्राप्त है।

पिछले 10 वर्षो से मांग की जा रही है कि कर की छूट चार लाख रुपये प्रति वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। यह सर्वेक्षण जनवरी 2020 के आखिरी दो हफ्तों के दौरान किया गया, जिसमें देशभर से कुल 4,292 लोगों से बातचीत की गई।

मासिक आय

इस दौरान 51.5 फीसदी लोगों ने कहा कि चार लोगों के परिवार के लिए औसत जीवनयापन करने के लिए महीने में 20,000 रुपये की आय आवश्यक है। जबकि 23.6 फीसदी लोगों का मानना है कि चार लोगों का परिवार चलाने के लिए 20 से 30 हजार रुपये मासिक आय होनी चाहिए।

वहीं 2019 में 50.2 फीसदी लोगों ने 20,000 रुपये मासिक आय को औसत जीवनयापन के लिए पर्याप्त माना था। इसका मतलब है कि चार लोगों के परिवार में प्रत्येक व्यक्ति के लिए महीने में पांच हजार रुपये होने जरूरी हैं।

अगर देखा जाए तो पांच हजार रुपये भोजन, आश्रय और कपड़ों जैसी सबसे बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में ही खर्च हो जाएंगे। फिर गंभीर सवाल है कि शिक्षा, चिकित्सा, सामाजिक सुरक्षा आदि अन्य जरूरतों को कैसे पूरा किया जाएगा। सर्वेक्षण का परिणाम एक समान आय और बढ़ते खर्च की जमीनी हकीकत को दर्शाता है।

लोगों द्वारा उनकी आय को लेकर की जाने वाली उम्मीद कम होने से पता चलता है कि ज्यादातर लोग अपनी नौकरी को बचाए रखने की चुनौती से जूझ रहे हैं और अगर वह खुद का कोई व्यापार कर रहे हैं तो उनके सामने अपनी वर्तमान आय को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। वे अपनी बुनियादी जरूरतों और आवश्यक खर्चो के बारे में अधिक चिंतित हैं।

दिसंबर 2019 में एक आरबीआई सर्वेक्षण में पाया गया कि लोगों ने अपने गैर-जरूरी खर्च में कटौती की जैसे कि छुट्टियों पर जाना, बाहर खाना और कार खरीदना।

एक अर्थशास्त्री का कहना है कि नोटबंदी के बाद बाजार में लिक्विडिटी या नकदी की कमी है, इसलिए लोगों ने अपने गैर जरूरी खर्चो में कटौती की, क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि वे इस तरह के खर्च किए बिना अपने जीवन को चला सकते हैं। उन्होंने कहा, “नोटबंदी ने लोगों के व्यवहार में स्थायी बदलाव लाया है।”


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This post was last modified on January 31, 2020 3:00 PM

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