आज ‘धूमावती जयंती’ है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह ज्येष्ठ माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। कहा जाता है, आज ही के दिन माता धूमावती पृथ्वी पर आई थी। इस बार यह 10 जून को मनाई जा रही है।
माता धूमावती को महाविद्या भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, धुमावती स्वयं में दस तांत्रिक देवियों का समूह हैं। यह मां दुर्गा का सबसे उग्र रूप हैं। कहा जाता है देवी धूमावती एक शिक्षक हैं, जो भ्रामक कथाओं से बचने का संदेश देती हैं। इसके अलावा उन्हें अलौकिक शक्तियां भी माना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, धूमावती की पूजा करने से शत्रुओं का विनाश होता है।
माता धुमावती का वर्णन
कहा जाता है कि माता धुमावती एक रथ पर सवार होती हैं। इस रथ को कौआ खींचता है। इसके अलावा देवी धूमावती को एक बुजुर्ग और बदसूरत विधवा के रूप में दर्शाया जाता है। कहा जाता है वह हमेशा पापियों एवं दुष्ट राक्षसों का संहार करने के लिए इस पृथ्वी पर अवतरित होती हैं। आज के दिन देवी माता धूमावती पूजा से प्रसन्न होकर जीवन में आये सारे कष्ट दूर कर देती हैं और जीवन को सुखमय बनती हैं।
पूजा विधि
आज के दिन धूमावती जयंती पर सुबह सूर्योदय से पूर्व ही स्नान-ध्यान करने के बाद पूरे दिन उपवास रखा जाता है और देवी का अऩुष्ठान किया जाता है। देवी माता धुमावती की पूजा धूप, अगरबत्ती और ताजे फूलों से की जाती है। पूजा के दौरान ही देवी को काला तिल काले कपड़े में बांध कर चढ़ाया जाता है। कहते हैं ऐसा करने से सारी मनोकामना पूरी होती हैं।
माता धूमावती की पूजा में विशेष प्रसाद चढ़ाया जाता है और मंत्रों का शुद्ध रूप से उच्चारण किया जाता है। इसके बाद आरती कर प्रसाद बांटा जाता है। पूजा के अलावा इस दिन माता के जुलूस का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि इस पूजा-अनुष्ठान में विवाहित लोगों को शामिल नहीं होना चाहिए, क्योंकि उनकी पूजा-अर्चना से एकांत की इच्छा जागृत होती है और सांसारिक चीजों से मोह भंग होने लगता है।
माता धूमावती की पौराणिक कथा
हिंदू मान्यता के अनुसार, एक बार माता पार्वती को बहुत तेज भूख लगी थी। उन्होंने शिव जी से कहा और शिव जी ने आश्वासन दिया कि शीघ्र ही वह भोजन की व्यवस्था करेंगे। लेकिन जब काफी देर होने के बाद भी शिव भगवान भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाये, तो माता पार्वती ने संपूर्ण शिव जी को ही निगल लिया। लेकिन भगवान शिव के गले में तीव्र विष होने से जब माता पार्वती के गले में तीव्र धुंआ निकलने लगा तो धूमावती का जन्म हुआ।
शिव जी ने माता पार्वती के इस भयावह रूप को धूमावती का नाम दिया। माता पार्वती ने अपने पति को ही निगल लिया था, इसलिए शिव जी ने उन्हें श्राप दिया और माता धूमावती विधवा के रूप में पूजी जाती हैं।
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