Bakrid 2020: बकरीद का त्योहार क्यों मनाया जाता है? जानें कैसे शुरू हुई कुर्बानी की परंपरा

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देशभर में बकरीद (Bakrid) का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। बकरीद को बकरा ईद (Bakra Eid), ईद-उल-अजहा (Eid-Al-Adha) भी कहा जाता है। बकरीद का त्योहार इस्लाम धर्म में काफी महत्व रखता है। रमजान का महीना खत्म होने के करीब 70 दिन बाद मनाए जाने वाले बकरीद को मुख्य रूप से कुर्बानी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

इस्लाम में इस दिन अल्लाह के नाम पर कुर्बानी देने के परंपरा निभाई जाती है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा करने के बाद अल्लाह की इबादत में बकरे की कुर्बानी देते हैं। इस साल बकरीद का त्योहार 31 जुलाई से शुरु होगा और 1 अगस्त की शाम को खत्म होगा।

बकरीद का महत्व और इससे जुड़ी कहानी-

इस्लामिक चंद्र कैलेंडर के बारहवें महीने जु-अल-हज्जा की पहली तारीख को चांद नजर आता है, इसलिए इस महीने के दसवें दिन ईद-उल-अजहा (बड़ी ईद) का त्योहार मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, तारीख हर साल बदलती है और पिछली तारीख से 11 दिन पहले इस त्योहार को मनाया जाता है।

कैसे शुरू हुई कुर्बानी की परंपरा

पैगंबर हजरत इब्राहिम से इस्लाम धर्म में कुर्बानी देने की परंपर शुरूआत मानी गई है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इब्राहिम अलैय सलाम को कई भी संतान नहीं थी और जब अल्लाह से काफी मिन्नतों के बाद उन्हें एक संतान हुई तो उसका नाम इस्माइल रखा गया।

इब्राहिम अपने बेटे से बेहद प्यार करते थे। एक रात अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। उन्होंने एक-एक कर अपने सभी प्यारे जानवरों की कुर्बानी दे दी, लेकिन सपने में फिर अल्लाह से उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का आदेश मिला।

इब्राहिम को उनका बेटा सबसे ज्यादा प्यारा था, लेकिन अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए वे अपने बेटे की कुर्बानी देने पर तैयार हो गए और उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देते समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली और कुर्बानी के बाद जब आंखे खोली तो उनका बेटा जीवित था।

अल्लाह इब्राहिम की निष्ठा से बेहद खुश हुए और उनके बेटे की जगह कुर्बानी को बकरे में बदल दिया. कहा जाता है कि उसी समय से बकरीद पर कुर्बानी की देने की यह परंपरा चली आ रही है। बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरों की कुर्बानी देकर हजरत इब्राहिम की दी हुई कुर्बानी को याद करते हैं।

बकरों की कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं। जिसमें से पहला हिस्सा परिवार वालों, दूसरा हिस्सा दोस्तों- रिश्तेदारों और तीसरा हिस्सा समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिया जाता है। इस दिन सेवई जैसे कई लजीज पकवान घर-घर में बनाए और खाए जाते हैं।

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