बिहार में मिथिला संस्कृति का केंद्र दरभंगा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र एकबार फिर से नया सांसद चुनने को तैयार है। 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के कीर्ति आजाद ने जीत दर्ज की थी। दूसरे स्थान पर राष्ट्रीय जनता दल के मो. अली अशरफ़ फ़ातमी रहे थे। जनता दल (यूनाइटेड) के संजय कुमार झा तीसरे तो शिव सेना के केदार केशव चौथे स्थान पर रहे थे। इस बार कीर्ति आजाद ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है और वह धनबाद से चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार एनडीए में हुए सीट शेयरिंग में दरभंगा सीट भाजपा के पास आई है और पार्टी ने यहां से पूर्व विधायक गोपालजी ठाकुर को मैदान में उतारा है। वहीं, महागठबंधन में यहां से बिहार सरकार के पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी को टिकट दिया है।
दरभंगा लोकसभा सीट पर चौथे चरण में 29 अप्रैल को वोट डाले जाने हैं।
दरभंगा बिहार का एक प्रमुख लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है। बागमती नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र जिला एवं प्रमंडलीय मुख्यालय है। यह क्षेत्र 16वीं सदी में दरभंगा राज की राजधानी था। यह इलाका रामायण की महत्वपूर्ण घटनाओं का केंद्र माना जाता है। यहां देवी सीता के पिता जनक का राज था। बाद में मगध, शुंग, कण्व और गुप्त, मुसलमान शासक ने राज किया। इस क्षेत्र में ही कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गदाधर पंडित, शंकर, वाचास्पति मिश्र, विद्यापति, नागार्जुन आदि महान विद्वानों ने अपना लेखनस्थली बनाया। यह क्षेत्र आम और मखाना के उत्पादन के लिए मशहूर है। यहां के शैक्षिक संस्थानों में मिथिला शोध संस्थान, मखाना राष्ट्रीय शोध केंद्र, दरभंगा कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग, महिला अभियंत्रण महाविद्यालय आदि प्रमुख हैं।
दरभंगा सीट पर आपातकाल से पहले कांग्रेस का दबदबा था। 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में अपनी ही रियासत के तहत आने वाले दरभंगा नॉर्थ से राजा कामेश्वर सिंह चुनाव हार गए थे। कांग्रेस से चुनाव लड़ने वाले श्याम नंदन प्रसाद ने उन्हें हराया था। 1952 से 1971 तक हुए सभी चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई थी। 1977 में सुरेंद्र झा भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते। इमरजेंसी के बाद कांग्रेस इस सीट पर सिर्फ एक बार जीत दर्ज कर सकी है। 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निधन के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस के हरि नाथ मिश्रा चुनाव जीते थे।
1989 में शकीउल रहमान दरभंगा मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति बनकर यहां आए थे। उन्होंने शिक्षा सुधार के लिए कई काम किए। इससे युवाओं के बीच उनकी बेहतर छवि बन गई। उन्होंने लीव लेकर चुनाव में दांव आजमाया। रहमान ने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस के नागेंद्र झा को हराकर लोकसभा पहुंचे। वह चुनाव तो जीत गए, लेकिन क्षेत्र में दोबारा लौटकर नहीं आए।
शकीउल रहमान के चुनाव प्रचार की कमान मोहम्मद अली अशरफ फातमी के हाथ में थी। फातमी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते थे और छात्र राजनीति छोड़कर दरभंगा आए थे। रहमान के साथ फातमी उनके साए की तरह जुड़े रहते थे। इससे लोग फातमी को भी अच्छी तरह पहचानने लगे और जनता के बीच उनकी गहरी पैठ बन गई। 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता दल ने फातमी को टिकट दिया और वे जीतकर संसद पहुंचे। इस सीट से सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड भी मोहम्मद अली अशरफ फातमी के नाम है। वह यहां से दो बार जनता दल और दो बार राजद के टिकट पर सांसद रहे।
दरभंगा से कीर्ति ने भाजपा को पहली जीत दिलाई थी। वह 1999 में चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे। आजाद इस सीट से 2009 और 2014 में भी सांसद बने। तीनों बार उन्होंने राजद प्रत्याशी मोहम्मद अली अशरफ फातमी को शिकस्त दी थी। 16वीं लोकसभा के लिए 2014 में हुए चुनाव में दरभंगा सीट से कीर्ति आजाद को 314949 वोट मिले थे। दो नंबर पर रहे आरजेडी के मोहम्मद अली अशरफ फातमी जिन्हें 279906 वोट मिले।
दरभंगा संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की 6 सीटें आती हैं- गौरा बौरम, बेनीपुर, अलीनगर, दरभंगा ग्रामीण, दरभंगा और बहादुरपुर। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में से 3 सीट आरजेडी के खाते में गए, 2 जेडीयू और एक सीट बीजेपी ने जीती। इस क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 1,307,067 है। इसमें महिला मतदाताओं की संख्या 601,794 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 705,273 है।
दरभंगा यादव, मुसलमान और ब्राह्मणों का प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है। इस सीट पर मुसलमान वोटरों की संख्या साढ़े तीन लाख है, जबकि यादव व ब्राह्मण वोटरों की संख्या तीन-तीन लाख के करीब है। सवर्ण जातियों में राजपूत व भूमिहार वोटरों की आबादी एक-एक लाख के करीब है।
इस चुनाव में दरभंगा पर एक दशक से चल रहे कब्जे को बरकरार रखने के लिए भाजपा ने जहां पूरी ताकत झोंक रखी है, वहीं अपनी परंपरागत सीट को पुन: पाले में करने के लिए राजद ने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी है। भाजपा और राजद दोनों ने स्थानीय उम्मीदवारों पर दांव लगाया है। भाजपा ने बिरौल अनुमंडल के पररी गांव निवासी पूर्व विधायक गोपालजी ठाकुर को मैदान में उतारा है, तो राजद अपने वर्तमान विधायक बेनीपुर अनुमंडल के रूपसपुर गांव निवासी अब्दुलबारी सिद्दिकी को चुनावी जंग में उतारकर मुकाबले को कांटे का बना दिया है।
उल्लेखनीय है कि फातमी ने जहां राजद छोड़कर अलग राह पकड़ ली है, वहीं आजाद भाजपा को छोड़कर कांग्रेस के टिकट पर झारखंड के धनबाद से चुनाव लड़ रहे हैं।
निवर्तमान सांसद: कीर्ति आजाद
कीर्ति आज़ाद (बीजेपी) – 3,14,949
मो. अली आशिफ फातमी (राजद) – 2,79,906
संजय कुमार झा (जदयू) – 1,04,494
अधिसूचना जारी | 2 अप्रैल |
नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि | 9 अप्रैल |
नामांकन पत्र की जांच | 10 अप्रैल |
नामांकन वापसी की अंतिम तिथि | 12 अप्रैल |
मतदान की तारीख | 29 अप्रैल |
मतगणना की तारीख | 23 मई |
लोकसभा चुनाव 2019: चौथे चरण में 29 अप्रैल को इन सीटों पर होगी वोटिंग, देखें राज्यवार सूची
This post was last modified on April 27, 2019 1:38 AM
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